प्रस्तुत अछि मैथिलीक व्यंग्य सम्राट प्रो. हरिमोहन
झाजीक लिखल ई गजल जे कि हुनक रचनावली (कविता खंड)सँ पृष्ठ-87सँ साभार अछि। तकर बाद
हम एकर तक्ती कऽ देखाएब जे ई वास्तवमे गजल थिक की नै थिक--
ने लड़लहुँ फौजदारी जौं
त रुपया केर धाहे की
खसौलक नोर नहि बापक
त ओ कन्याक विवाहे की
ने आधा ऐंठ फेकल गेल
त फेर ओ भोज भाते की
ने बहराएल एको बन्दूक
त ओ थिक बराते की
ने लगला जोंक बनि कय जे
तेहन दुलहाक बापे की
जौं लस्सा बनि कुटुम सटला
त ओहिसँ बढ़ि पापे की
पड़ल नहि खेत सुदभरना
त ओ बापक सराधे की
ने फनकल जौं देयादे सन
त ओ गहुमन दराधे की
1972मे लिखल (प्रकाशित) आब एकर तक्ती देखू--
पहिल शेरक पहिल पाँतिक मात्राक्रम अछि--1222-1222
पहिल शेरक दोसर पाँतिक मात्राक्रम अछि--1222-1222
दोसर शेरक पहिल पाँतिक मात्राक्रम अछि--
1222-1222 दोसर शेरक दोसर पाँतिक मात्राक्रम अछि-1222-11222 जे कि मतलाक हिसाबें नै
अछि।
तेसर शेरक पहिल पाँतिक मात्राक्रम अछि-
1222-12221 दोसर पाँतिक मात्राक्रम अछि--12122-1222 जे कि मतलाक हिसाबें नै अछि।
चारिम शेरक पहिल पाँतिक मात्राक्रम अछि
1222-122221 दोसर पाँतिक मात्राक्रम अछि--122-1222 जँ कथित तौरपर "ए"केँ लघु मानी (जे कि
गलत अछि) तखन एहि चारिम शेरक मात्राक्रम एना हएत-- पहिल पाँति -1222-12221 दोसर पाँति-122-1222
दूनू व्यवस्थाकमे मात्राक्रम मतलाक हिसाबें नै अछि।
पाँचम शेरक पहिल पाँतिक मात्राक्रम अछि--
1222-1222 दोसर पाँतिक मात्राक्रम अछि- 2222-1222 जे कि मतलाक हिसाबें नै अछि।
छठम शेरक पहिल पाँतिक मात्राक्रम अछि--
1222-1222 दोसर पाँतिक मात्राक्रम अछि-1222-222 जे कि मतलाक हिसाबें नै अछि।
सातम शेरक पहिल पाँतिक मात्राक्रम अछि--
1222-1222 दोसर पाँतिक मात्राक्रम अछि-1222-1222 जे कि मतलाक हिसाबें अछि।
आठम शेरक पहिल पाँतिक मात्राक्रम अछि- 1222-2222
दोसर पाँतिक मात्राक्रम अछि-1222-1222 जे कि मतलाक हिसाबें नै अछि।
उपरक विवेचनासँ स्पष्ट अछि जे ई गजल नै अछि। ओना हरिमोहन झाजी अपन आत्मकथा "जीवन यात्रा" मे लिखै छथि जे
ओ पटना आबि मोशायरा सभमे सेहो भाग लेबए लगलाह। भऽ सकैए जे मात्र लौलवश ई कथित गजल हरिमोहनजी
लिखने होथि। जे किछु हो मुदा ई गजल गजल इतिहासमे उल्लेख करबा योग्य नै अछि मुदा ओइ
बाबजूद मात्र अइ कारणसँ हम विवरण देलहुँ जे काल्हि कियो उठि कऽ कहि सकै छथि जे हरिमोहन
झा सन महान हास्य-व्यंग्यकार गजल लिखने छथि आ सही लिखने छथि। बस एही कारणसँ हम एतेक
मेहनति केलहुँ अन्यथा एहि गजलमे कोनो एहन बात नै। हरिमोहन झाजी गजलक संबंधमे की सोचैत
छलाह तकर बानगी "कहू की औ बाबू" नामक कविताक पहिले खंडमे देने छथि--
बसाते तेहन छै जे गोष्ठी मे कवियो
गजल दादरा आ कव्वाली गबैये
किछु दिन मे एहो देखब औ बाबू
जे कविताक संग-संग तबला बजैए
हरिमोहन झा रचनावली (कविता खंड) पृष्ठ-120
(11-11-1978 मे प्रकाशित)। भऽ सकैए जे हरिमोहनजीकेँ उर्दू शाइर सभहँक संग घनिष्ठता
होइन मुदा ओ घनिष्ठता शाइरी ज्ञानमे नै बदलि सकल से उपरक हुनक विचारसँ परिलक्षित भऽ
जाइए।
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