"बुंदेली" बुंदेलखंडक भाषा थिक। वर्तमानमे उत्तर प्रदेशक जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर, बाँदा आ महोबा एवं मध्य-प्रदेशक सागर, दमोह, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, दतियाक अलावे भिंड, ग्वालियर, रायसेन आ विदिशा जिलाक किछु भाग बुंदेलखंड कहल जाइत छै। आइ बुंदेली भाषाक गजलकार सुगमजीसँ परिचय प्राप्त करी--
महेश कटारे ‘सुगम’
बुन्देली भाषाक सशक्त गजलकार छथि।
जन्म-24 जनवरी 1954
वर्तमान संपर्क- बीना, म.प्र. mobile : 097130 24380 , mahesh.katare_sugam@yahoo.in
कृति-- प्यास (कहानी संग्रह), गाँव के गेंवड़े (बुन्देली ग़ज़ल संग्रह) हरदम हँसता गाता नीम (बाल-गीत संग्रह), तुम कुछ ऐसा कहो (नवगीत संग्रह), वैदेही विषाद (लम्बी कविता), आवाज़ का चेहरा (ग़ज़ल संग्रह)
हरेक प्रांतीय भाषाक गजलक ई दुर्भाग्य छै जे ओ बहरक पालन देरीसँ करैत अछि। कटारेजीक गजल सेहो अपवाद नै मुदा एतेक कहबामे संकोच नै जे मैथिलीक कथित गजल (सियाराम झा सरस एवं राजेन्द्र विमलजी गुट बला)सँ बेसी बहरक पालन बुंदेली गजलमे अछि। प्रस्तुत अछि कटारेजीक किछु बुंदेली गजल--
1
नेंनन के जे बान रामधई
हँस हँस लै रये प्रान रामधई
सुघर सलोंनी सूरत मारै
ऊपर सें मुस्कान रामधई
तुमें देख कें सुख सें सोवौ
है नईंयाँ आसान रामधई
उनकी मीठी बातें सुनवे
तरस जात हैं कान रामधई
जीनें देखौ तुमें ओइकौ
कट जावै चालान रामधई
2
करवे वारे राज कका जू
सब हैं धोखेबाज कका जू
कभऊँ दार पै पथरा पर रये
कभऊँ रुआ रई प्याज कका जू
अब तौ गतें बुरईं होनें हैं
लग रऔ है अंदाज़ कका जू
कर्ज़ा मूड़ ऊपरौ हो गऔ
बढ़ तई जा रऔ ब्याज कका जू
मौ खोलौ तौ मार मार कें
दबा देत आवाज़ कका जू
मरे ढोर सी जनता हो गयी
नेता बन गए बाज़ कका जू
रुआ =रुला /गतें =हालत /ढोर =जानवर /
3
अब तौ आर पार की हुइयै
ज़ोर ज़बर लाचार की हुइयै
एक लड़ाई अस्पताल सें
अब तौ हर बीमार की हुइयै
पैरी सें जो बेइज़्ज़त हैं
उनसें इज़्ज़त दार की हुइयै
बने भिखारी ठाढ़े रत जो
उनकी अब दरबार सें हुइयै
आँखें कान सबई खुल जैहैं
जब जनता सरकार की हुइयै
सुगम फैसला हो केँ रैहै
हुइयै लट्ठ मार की हुइयै
4
चलनी रै रईं सूपा रै रये
उतई कछू कुड मूता रै रये
रै रये साँचे भले आदमी
ओई गाँव में झूठा रै रये
बनीं झुपड़ियाँ दुखयारन कीं
बंगलन में आसूदा रै रये
एक तरफ श्याबासी रै रई
एक तरफ खौं ठूंसा रै रये
सुनत सहत हैं उतई रहत ,जां
गारीं लातें घूँसा रै रये
गाँव-गाँव बस्ती-बस्ती में
बिना कूत के खूँटा रै रये
पढ़े लिखन पै धौंस जमावे
देखौ छाप अँगूठा रै रये
रै रये पथरा बन कें हीरा
ककरा बन कें मूँगा रै रये
5
उडो खेत कौ आद कका जू
बीज मिलौ नें खाद कका जू
साल तेर अब कैसें हुइयै
का खैहै औलाद कका जू
दरखासें दै,दै केन मर गए
सुनी न गयी फ़रयाद कका जू
ढोरन खों चारौ तक नईंयाँ
झरी डरी है नाद कका जू
भाव भूल गए नोंन तेल कौ
कछू न रै गऔ याद कका जू
भरनें हतौ बैंक कौ कर्ज़ा
निकर गयी है म्याद कका जू
अधिकारी नेतन खों समझौ
गू कौ भैया पाद कका जू
मर गए हैं ,जीवन की अब तौ
हल गयी है बुनयाद कका जू
आद=आद्रता /तेर =गुजर ,बसर / गू =पाखाना /पाद =वायु विसर्जन /
6
बातन सें तौ बादर फारौ जा रऔ है
मूरख मौ सें ज्ञान बघारो जा रऔ है
खुशहाली को जज्ञ रचानें हतौ इतै
मनौ महूरत हर दिन टारौ जा रऔ है
झूठी कैवे वारन की पाँचई घी में
सांची जीनें कई वौ मारौ जा रऔ है
बूढी अम्मा प्यासी बैठीं हैं घर में
मंदर में जाकें जल ढारौ जा रऔ है
बुद्धि हो गयी भृष्ट लड़त हैं आपस में
घर कौ नोंनों रूप बिगारौ जा रऔ है
दंगा ,हत्या ,लूट ,जला कें बस्ती खों
'सुगम' दूध कौ क़र्ज़ उतारौ जा रऔ है
7
पढ़े लिखे सब ढोर चरा रये देखौ तौ
बिना पढ़े कुर्सी हतया रये देखौ तौ
बदमाशी सीना तानें घूमत फिर रई
ऊसें सांचे लोग डरा रये देखौ तौ
पैरें कारौ कोट कचैरी में बैठे
एक दूसरे खों उरझा रये देखौ तौ
कुर्सी बैठे चोर दरोगा ठांडे हैं
हिलमिल कें कैसे बतया रये देखौ तौ
दारू पी रये ,गुटका खा रये दिन दिन भर
ज्वानी में कैसे बुढया रये देखौ तौ
कित्तन के संग नेंन लड़े कित्ती छोड़ीं
हँस हँस कें वे सबै सुना रये देखौ तौ
काम तनक सौ सुगम करावे के लानें
बजन फाइलन पै धरवा रये देखौ तौ
8
बड़े घरन के छोरा नईंयाँ
हम रेशम के डोरा नईंयाँ
इज़्ज़त सें हम जीवौ सीखे
टुकड़खोर हथजोरा नईंयाँ
हम चाहत सब सुख सें रैवें
तुम जैसे घरफोरा नईंयाँ
दुनिया की दौलत मिल जावै
ऐसे सोई अघोरा नईंयाँ
गुनन भरे झोला हैं हम तौ
सड़े भुसा के बोरा नईंयाँ
साँची सुगम कैत है मौ पै
मिठबोला मौजोरा नईंयाँ
9
नंगे सपरें ,धोवें और निचोवें का
सतुआ नईंयाँ घर में बोलौ घोरें का
घी होतौ तौ हलुआ तनक बना लेती
चून ख़तम है भूँजें और अकोरें का
नईंयाँ एक छदाम मुठी में मुद्द्त सें
धुतिया के पल्लू में बांधें छोरें का
रूख निखन्नौ डरौ आम वारी रुत में
अमियाँ नईंयाँ एक डार पै टोरें का
ओछी होती अगर गुज़ारौ कर लेते
चददर नईंयाँ अपने पाँव ककोरें का
सपरना =नहाना /घोरना=घोलना /धुतिया =धोती /रूख =पेड़ /निखन्नौ =खाली/टोरें
=तोडना /ओछी =छोटी
ककोरें =समेटना /
10
बातें कर रये बड्डी,ठड्डी
खेलत फिर रये झूठ कबड्डी
राजनीत में कान काट रये
पढ़वे में जो हते फिसड्डी
नें उगलत ,नें लीलत बन रई
गरे फंसी लालच की हड्डी
इक्का धरें तुरुप को फिर रये
लयें फिर रये ताशन की गड्डी
खोटे सिक्का दौड़ लगा रये
जीवन भर जो रहे उजड्डी
सड़कन पै तौ सांड बनत्ते
पद पा कें भई गीली चड्डी
बड्डी =बड़ी /फिसड्डी =पिछड़े हुए /गरे =गले /उजड्डी =झगड़ालू /
महेश कटारे ‘सुगम’
बुन्देली भाषाक सशक्त गजलकार छथि।
जन्म-24 जनवरी 1954
वर्तमान संपर्क- बीना, म.प्र. mobile : 097130 24380 , mahesh.katare_sugam@yahoo.in
कृति-- प्यास (कहानी संग्रह), गाँव के गेंवड़े (बुन्देली ग़ज़ल संग्रह) हरदम हँसता गाता नीम (बाल-गीत संग्रह), तुम कुछ ऐसा कहो (नवगीत संग्रह), वैदेही विषाद (लम्बी कविता), आवाज़ का चेहरा (ग़ज़ल संग्रह)
हरेक प्रांतीय भाषाक गजलक ई दुर्भाग्य छै जे ओ बहरक पालन देरीसँ करैत अछि। कटारेजीक गजल सेहो अपवाद नै मुदा एतेक कहबामे संकोच नै जे मैथिलीक कथित गजल (सियाराम झा सरस एवं राजेन्द्र विमलजी गुट बला)सँ बेसी बहरक पालन बुंदेली गजलमे अछि। प्रस्तुत अछि कटारेजीक किछु बुंदेली गजल--
1
नेंनन के जे बान रामधई
हँस हँस लै रये प्रान रामधई
सुघर सलोंनी सूरत मारै
ऊपर सें मुस्कान रामधई
तुमें देख कें सुख सें सोवौ
है नईंयाँ आसान रामधई
उनकी मीठी बातें सुनवे
तरस जात हैं कान रामधई
जीनें देखौ तुमें ओइकौ
कट जावै चालान रामधई
2
करवे वारे राज कका जू
सब हैं धोखेबाज कका जू
कभऊँ दार पै पथरा पर रये
कभऊँ रुआ रई प्याज कका जू
अब तौ गतें बुरईं होनें हैं
लग रऔ है अंदाज़ कका जू
कर्ज़ा मूड़ ऊपरौ हो गऔ
बढ़ तई जा रऔ ब्याज कका जू
मौ खोलौ तौ मार मार कें
दबा देत आवाज़ कका जू
मरे ढोर सी जनता हो गयी
नेता बन गए बाज़ कका जू
रुआ =रुला /गतें =हालत /ढोर =जानवर /
3
अब तौ आर पार की हुइयै
ज़ोर ज़बर लाचार की हुइयै
एक लड़ाई अस्पताल सें
अब तौ हर बीमार की हुइयै
पैरी सें जो बेइज़्ज़त हैं
उनसें इज़्ज़त दार की हुइयै
बने भिखारी ठाढ़े रत जो
उनकी अब दरबार सें हुइयै
आँखें कान सबई खुल जैहैं
जब जनता सरकार की हुइयै
सुगम फैसला हो केँ रैहै
हुइयै लट्ठ मार की हुइयै
4
चलनी रै रईं सूपा रै रये
उतई कछू कुड मूता रै रये
रै रये साँचे भले आदमी
ओई गाँव में झूठा रै रये
बनीं झुपड़ियाँ दुखयारन कीं
बंगलन में आसूदा रै रये
एक तरफ श्याबासी रै रई
एक तरफ खौं ठूंसा रै रये
सुनत सहत हैं उतई रहत ,जां
गारीं लातें घूँसा रै रये
गाँव-गाँव बस्ती-बस्ती में
बिना कूत के खूँटा रै रये
पढ़े लिखन पै धौंस जमावे
देखौ छाप अँगूठा रै रये
रै रये पथरा बन कें हीरा
ककरा बन कें मूँगा रै रये
5
उडो खेत कौ आद कका जू
बीज मिलौ नें खाद कका जू
साल तेर अब कैसें हुइयै
का खैहै औलाद कका जू
दरखासें दै,दै केन मर गए
सुनी न गयी फ़रयाद कका जू
ढोरन खों चारौ तक नईंयाँ
झरी डरी है नाद कका जू
भाव भूल गए नोंन तेल कौ
कछू न रै गऔ याद कका जू
भरनें हतौ बैंक कौ कर्ज़ा
निकर गयी है म्याद कका जू
अधिकारी नेतन खों समझौ
गू कौ भैया पाद कका जू
मर गए हैं ,जीवन की अब तौ
हल गयी है बुनयाद कका जू
आद=आद्रता /तेर =गुजर ,बसर / गू =पाखाना /पाद =वायु विसर्जन /
6
बातन सें तौ बादर फारौ जा रऔ है
मूरख मौ सें ज्ञान बघारो जा रऔ है
खुशहाली को जज्ञ रचानें हतौ इतै
मनौ महूरत हर दिन टारौ जा रऔ है
झूठी कैवे वारन की पाँचई घी में
सांची जीनें कई वौ मारौ जा रऔ है
बूढी अम्मा प्यासी बैठीं हैं घर में
मंदर में जाकें जल ढारौ जा रऔ है
बुद्धि हो गयी भृष्ट लड़त हैं आपस में
घर कौ नोंनों रूप बिगारौ जा रऔ है
दंगा ,हत्या ,लूट ,जला कें बस्ती खों
'सुगम' दूध कौ क़र्ज़ उतारौ जा रऔ है
7
पढ़े लिखे सब ढोर चरा रये देखौ तौ
बिना पढ़े कुर्सी हतया रये देखौ तौ
बदमाशी सीना तानें घूमत फिर रई
ऊसें सांचे लोग डरा रये देखौ तौ
पैरें कारौ कोट कचैरी में बैठे
एक दूसरे खों उरझा रये देखौ तौ
कुर्सी बैठे चोर दरोगा ठांडे हैं
हिलमिल कें कैसे बतया रये देखौ तौ
दारू पी रये ,गुटका खा रये दिन दिन भर
ज्वानी में कैसे बुढया रये देखौ तौ
कित्तन के संग नेंन लड़े कित्ती छोड़ीं
हँस हँस कें वे सबै सुना रये देखौ तौ
काम तनक सौ सुगम करावे के लानें
बजन फाइलन पै धरवा रये देखौ तौ
8
बड़े घरन के छोरा नईंयाँ
हम रेशम के डोरा नईंयाँ
इज़्ज़त सें हम जीवौ सीखे
टुकड़खोर हथजोरा नईंयाँ
हम चाहत सब सुख सें रैवें
तुम जैसे घरफोरा नईंयाँ
दुनिया की दौलत मिल जावै
ऐसे सोई अघोरा नईंयाँ
गुनन भरे झोला हैं हम तौ
सड़े भुसा के बोरा नईंयाँ
साँची सुगम कैत है मौ पै
मिठबोला मौजोरा नईंयाँ
9
नंगे सपरें ,धोवें और निचोवें का
सतुआ नईंयाँ घर में बोलौ घोरें का
घी होतौ तौ हलुआ तनक बना लेती
चून ख़तम है भूँजें और अकोरें का
नईंयाँ एक छदाम मुठी में मुद्द्त सें
धुतिया के पल्लू में बांधें छोरें का
रूख निखन्नौ डरौ आम वारी रुत में
अमियाँ नईंयाँ एक डार पै टोरें का
ओछी होती अगर गुज़ारौ कर लेते
चददर नईंयाँ अपने पाँव ककोरें का
सपरना =नहाना /घोरना=घोलना /धुतिया =धोती /रूख =पेड़ /निखन्नौ =खाली/टोरें
=तोडना /ओछी =छोटी
ककोरें =समेटना /
10
बातें कर रये बड्डी,ठड्डी
खेलत फिर रये झूठ कबड्डी
राजनीत में कान काट रये
पढ़वे में जो हते फिसड्डी
नें उगलत ,नें लीलत बन रई
गरे फंसी लालच की हड्डी
इक्का धरें तुरुप को फिर रये
लयें फिर रये ताशन की गड्डी
खोटे सिक्का दौड़ लगा रये
जीवन भर जो रहे उजड्डी
सड़कन पै तौ सांड बनत्ते
पद पा कें भई गीली चड्डी
बड्डी =बड़ी /फिसड्डी =पिछड़े हुए /गरे =गले /उजड्डी =झगड़ालू /
विश्व गजलकार परिचय शृंखलाक अन्य भाग पढ़बाक लेल एहि ठाम आउ-- विश्व गजलकार परिचय
bahut bahut aabhar bhai ashish ji [sugam ]
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