रविवार, 28 मई 2017

गजल

बाग नै पूरा बस एक टा गुलाब चाही
हो भरल नेहक खिस्सासँ से किताब चाही

लोक जिनगी कोना एसगर बिता दए छै
एक संगीके हमरा तँ संग आब चाही

दर्दमे सेहो मातल हिया रहै निशामे
साँझ पडिते बोतलमे भरल शराब चाही

मोनमे मारै हिलकोर किछु सवाल नेहक
वास्तविक अनुभूतिसँ मोनके जवाब चाही

सोचमे ओकर कुन्दन समय जतेक बीतल
आइ छन-छनके हमरा तकर हिसाब चाही


2122-2221-212-122

© कुन्दन कुमार कर्ण

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गजल

नौकर बनलै गरीब बच्चा
होटल मोटल ईंटा भट्ठा

रसगुल्ले सन के जीवन छै
दुइए दिनमे खट्टा खट्टा

अपना अपनी केलहुँ बड़ाइ
अपने कहलहुँ अच्छा अच्छा

अइ नेहक मारल हमहूँ छी
दुनियाँ लागै फिक्का फिक्का

किछु परसादी हमरो भेटल
हमहूँ खेलहुँ फक्के फक्का

सभ पाँतिमे 22-22-22-22 मात्राक्रम अछि
दू टा अलग-अलग लघुकेँ दीर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

शुक्रवार, 26 मई 2017

गजल

कियो हँसलै कोनो बातपर
कियो कनलै कोनो बातपर

कियो उठि गेलै बड़ ऊँच आ
कियो खसलै कोनो बातपर

कियो चुप्पे रहलै देर धरि
कियो बजलै कोनो बातपर

कियो पाथर बनि जिंदा रहल
कियो गललै कोनो बातपर

कियो रहलै तहिआएल सन
कियो भजलै कोनो बातपर

सभ पाँतिमे 1222-22-212 मात्राक्रम अछि
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

सोमवार, 22 मई 2017

गजल

रस रंग साधना काम्य हमर
मधु सिक्त वासना काम्य हमर

अछि हियमे राखल नेह मधुर
विष रिक्त भावना काम्य हमर

छोट छीन जीवन रहै मुदा
सही प्रस्तावना काम्य हमर

अहाँ जपैत रहू विनाशकेँ
नीक संभावना काम्य हमर

संग रही स्वस्थ रही अतबे
छोट शुभकामना काम्य हमर

सभ पाँतिमे 22-22-22-22 मात्राक्रम अछि (बहरे मीर)
दू टा अलग-अलग लघुकेँ दीर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि
सुझाव सादर आमंत्रित अछि



रविवार, 21 मई 2017

विश्व गजलकार परिचय शृंखला-6

अवधी भाषा उत्तर प्रदेशक 19 टा जिला- सुल्तानपुर, अमेठी, बाराबंकी, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, कौशांबी, फतेहपुर, रायबरेली, उन्नाव, लखनऊ, हरदोई, सीतापुर, खीरी, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, फैजाबाद आ अंबेडकर नगरमे अवधी पूरा बाजल जाइ छै। जखन कि 6 टा जिला- जौनपुर, मिर्जापुर, कानपुर, शाहजहांबाद, बस्ती और बांदा केर किछु क्षेत्रमे एकर सेहो प्रयोग होइत छै। बिहारक किछु भाग आ नेपालक किछु जिलामे सेहो अवधी बाजल जाइ छै। एक अतिरिक्त मॉरिशस, त्रिनिदाद एवं टुबैगो, फिजी, गयाना, सूरीनाम सहित आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आ हॉलैंड देशमे सहो अवधी बाजल जाइ छै। आइ अवधी भाषाक गजलकार बजरंग बिहारी "बजरू" जीसँ परिचय प्राप्त करी।
















बजरंग बिहारी "बजरू"

मूल नाम-- बजरंग बिहारी तिवारी आ एही नामसँ हिंदीमे सेहो लेखन। खास कऽ हिंदीमे दलित विमर्शपर हिनक काज छनि।
विधा : गजल, आलोचना, विमर्श
जन्म : 1 मार्च 1972केँ उत्तर प्रदेशक गोंडा जिलामे भेल छनि।


हरेक प्रांतीय भाषा जकाँ अवधीमे सेहो बहुत गजल लिखल कहल गेल अछि। मुदा एखन धरि अवधी गजलमे सेहो बहरक समानता नै देखबामे आबै आ आने प्रांतीय भाषा जकाँ उच्चारणक आघात महत्वपूर्ण कारक अछि। मैथिली आ भोजपुरीमे गजलक व्याकरण पूरा स्थापित भऽ गेल अछि। उम्मेद अछि जे आनो प्रांतीय भाषामे गजलक व्याकरण जल्दिये स्थापित हएत।अवधी गजलमे बजरू जीक गजलक भाषा (जबान) बेसी प्रखर आ मारुक अछि। त पढ़ू बजरू जीक किछु गजल--


1

हेरित है इतिहास जौन दिन झूठ बदलि कै फुर होइगा
झूर आँख अंसुवात जौन दिन झूठ बदलि कै फुर होइगा

हंडा चढ़ा सिकार मिले बिनु राजाजी बेफिकिर रहे
बोटी जब पहुंची थरिया मा झूठ बदलि कै फुर होइगा

बिन दहेज सादी कै चर्चा पंडित जी आदर्स बने
कोठी गाड़ी परुआ1 पाइन झूठ बदलि कै फुर होइगा

“खाली हाथ चले जानाहै” साहूजी उनसे बोले
बस्ती खाली करुआइन जब झूठ बदलि कै फुर होइगा

‘बजरू’ का देखिन महंथ जी जोरदार परबचन भवा
संका सब कपूर बनि उड़िगै झूठ बदलि कै फुर होइगा


2

चढ़ेन मुंडेर मुल नटवर न मिला काव करी
भयी अबेर मुल नटवर न मिला काव करी

रुपैया तीस धरी जेब, रिचार्ज या रासन
पहिलकै ठीक मुल नटवर न मिला काव करी

जरूरी जौन है हमरे लिए हमसे न कहौ
होत है देर मुल नटवर न मिला काव करी

माल बेखोट है लेटेस्ट सेट ई एंड्राइड
नयी नवेल मुल नटवर न मिला काव करी

रहा वादा कि चटनी चाटि कै हम खबर करब
बिसरिगा स्वाद मुल नटवर न मिला काव करी


3

गजल मामूली है लेकिन लिहेबा सच्चाई
बिथा किसान कै खोली कि लाई गहराई

इस्क से उपजै इसारा चढ़ै मानी कै परत
बिना जाने कसस बोली दरद से मुस्काई

तसव्वुर दुनिया रचै औ’ तसव्वुफ अर्थ भरै
न यहके तीर हम डोली न यहका लुकुवाई

धरम अध्यात्म से न काम बने जानित है
ककहरा राजनीति कै, पढ़ी औ’ समझाई

समय बदले समाज बोध का बदल डारे
बिलाये वक्ती गजल ई कहैम न सरमाई

चुए ओरौनी जौन बरसे सब देखाए परे
‘बजरू’ कै सच न छुपे दबै कहाँ असनाई

4

चले लखनऊ पहुंचे दिल्ली,
चतुर चौगड़ा बनिगा गिल्ली

हाटडाग सरदी भय खायिन,
झांझर8 भये सुरू मा सिल्ली

समझि बूझि कै करो दोस्ती,
नेक सलाह उड़ावै खिल्ली

बब्बर सेर कार मा बैठा ,
संकट देखि दुबकि भा बिल्ली

‘बजरू’ बचि कै रह्यो सहर मा,
दरकि जाय न पातर झिल्ली


5

का बेसाह्यो कस रहा मेला
राह सूनी निकरि गा रेला

बरफ पिघली पोर तक पानी
मजा–खैंहस संग– संग झेला

के उठाए साल भर खर्चा
जेबि टोवैं पास ना धेला

गे नगरची औ मुकुटधारी
मंच खाली पूर  भा खेला

बहुत सोयौ राति भर ‘बजरू‘
अब न लपक्यो भोर की बेला


6

जियै कै ढंग सीखब बोलिगे काका
भोरहरे तीर जमुना डोलिगे काका

आँखि  अंगार  कूटैं  धान  काकी,
पुरनका घाव फिर से छोलिगे काका

झरैया  हल्ल  होइगे  मंत्र  फूंकत
जहर अस गांव भीतर घोलिगे काका

निहारैं   खेत   बीदुर  काढ़ि  घुरहू,
हंकारिन पसु पगहवा खोलिगे काका

बिराजैं   ऊँच   सिंघासन   श्री   श्री
नफा नकसान आपन तोलिगे काका

भतीजा हौ तौ पहुंचौ घाट ‘बजरू‘
महातम कमलदल कै झोरिगे काका


7

उठाए बीज कै गठरी सवाल बोइत है
दबाए फूल कै मोटरी बवाल पोइत है

इन्हैं मार्यौ उन्हैं काट्यौ तबौं न प्यास बुझी
रकत डरि कै कहां छिपिगा नसै नसि टोइत है

जुआठा कांधे पर धारे जबां पर कीर्ति–कथा
सभे जानै कि हम जागी असल मा सोइत है

कहूं खोदी कहूं तोपी सिवान चालि उठा
महाजन देखि कै सोची मजूरी खोइत है

ई घटाटोप अन्हेंरिया उजाड़ रेह भरी
अहेरी भक्त दरोरैं यही से रोइत है

8

देस–दाना भवा दूभर राष्ट्र–भूसी अस उड़ी
कागजी फूलन कै अबकी साल किस्मत भै खड़ी

मिली चटनी बिना रोटी पेट खाली मुंह भरा
घुप अमावस लाइ रोपिन तब जलावैं फुलझड़ी

नरदहा दावा करै खुसबू कै हम वारिस हियां
खोइ हिम्मत सिर हिलावैं अकिल पर चादर पड़ी

कोट काला बिन मसाला भये लाला हुमुकि गे।
बीर अभिमन्यू कराहै धूर्तता अब नग जड़ी

मिलैं ‘बजरू’ तौ बतावैं रास्ता के रूंधि गा
मृगसिरा मिरगी औ’ साखामृग कै अनदेखी कड़ी


शब्दार्थ---

परुआ= यूँ ही, मुफ्त में
मुल= लेकिन
नटवर= नेटवर्क
बिथा= व्यथा, पीड़ा
लुकुआई= छिपाना
चौगड़ा= खरगोश
गिल्ली= गिलहरी
झांझर= जीर्ण-शीर्ण, कमज़ोर
सिल्ली= शिला, चट्टान

एहि शृंखला केर स्रोत अवधी भाषाक पत्रिका "अवधी कै अरघान" अछि।

विश्व गजलकार परिचय शृंखलाक अन्य भाग पढ़बाक लेल एहि ठाम आउ--  विश्व गजलकार परिचय 

बुधवार, 10 मई 2017

रुबाइ

नवका सीसोक नव पात समान चेहरा
गैंची माछसँ भरल खेतक धान चेहरा
केकरो लेल किछु नै मुदा हमरा लेल
हमर मोन हमर देह हमर जान चेहरा

बाल गजल

गामक बूढ हमर नानी
छै ममतासँ भरल खानी

पूजा पाठ करै नित दिन
दुखिया लेल महादानी

खिस्सा खूब सुनाबै ओ
राजा कोन रहै रानी

भोरे भोर उठा दै छै
सुधरै जैसँ हमर बानी

नम्हर छोट सभक आगू
कहलक बनि क' रहू ज्ञानी

2221-1222

© कुन्दन कुमार कर्ण

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मंगलवार, 9 मई 2017

गजल

एखन हारल नै छी खेल जितनाइ बाकी छै
इतिहासक पन्नामे नाम लिखनाइ बाकी छै

गन्तव्यक पथ पर उठलै पहिल डेग सम्हारल
अन्तिम फल धरि रथ जिनगीक घिचनाइ बाकी छै

विद्वानक अखड़ाहामे करैत प्रतिस्पर्धा
बनि लोकप्रिय लोकक बीच टिकनाइ बाकी छै

लागल हेतै कर्मक बाट पर ठेस नै ककरा
संघर्षक यात्रामे नोर पिबनाइ बाकी छै

माए मिथिला नै रहितै तँ के जानितै सगरो
ऋण माएके सेवा करि कऽ तिरनाइ बाकी छै

सब इच्छा आकांक्षा एक दिन छोडिकेँ कुन्दन
अन्तर मोनक परमात्मासँ मिलनाइ बाकी छै

2222-2221-221-222

© कुन्दन कुमार कर्ण

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सोमवार, 8 मई 2017

गजल

जे अछि जयकार विरोधी
से अछि दरबार विरोधी

ई मानू या नै मानू
सभ छै अधिकार विरोधी

संसारे खातिर देखू
भेलै संसार विरोधी

खाली संगे भरलाहा
बनतै अवतार विरोधी

चारू दिस बंदूक मुदा
कहलक हथियार विरोधी

सभ पाँतिमे 222-222-2 मात्राक्रम अछि
दू टा अलग-अलग लघुकेँ दीर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों