जिनगी छैक अनमोल रे मन
माटि मे नहि तू रोल रे मन
बंद कोठरी गुमसि उठइ छै
द्वार हृदय के खोल रे मन
नेना क अधबोलिया बाजब
कान मे मिसरी घोल रे मन
चोरिक धुन पर गाबि रहल सब
गीतोक अटपट बोल रे मन
भेल चुनाव क गहमा-गहमी
फूजि रहल आब पोल रे मन
घरक झगड़ा आयल चौक पर
पसरल आब भरि टोल रे मन
मलिन मोन आ रूप सजाबै
गुदरी पर जना ख़ोल रे मन
घोघ छै तनने बीत भरि के
बजै छै पटपट लोल रे मन
बरिसय मेघबा झिहिर झिहिर क
पपिहा करय अनघोल रे मन
सोना सन के काया पाबि क
बोल छै कबकब ओल रे मन
✍️✍️✍️जयंती कुमारी
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मंगलवार, 21 जुलाई 2020
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