आइसँ 5 बर्ख पहिने गंगेश गुंजन जी दुष्यंत कुमारक एकटा शेर दऽ कऽ कहने रहथिन जे मनोरथ
अछि मैथिलीमे एहि 'मिजाज' ओ एहि वज्नक शेर हो। कहिया धरि एहन शेर एतै सेहो पुछने रहथिन।
वज्न मने बहर भेल आ से मैथिली गजलमे पहिनेसँ अछि। रहलै दुष्यंत कुमारक शेर सनक मिजाज
केर बात तँ हम तथ्यात्मक गिनती केलहुँ जे कहिया धरि एहन शेर लिखेतै मैथिलीमे। गिनती
हम करब ताहिसँ पहिने दुष्यंतजीक ओ शेर हम प्रस्तुत करी जे गुंजनजी देने रहथि--
"उनकी अपील है कि उन्हें हम मदद करें
चाकू की पसलियों से गुज़ारिश तो देखिये"
निश्चित तौरपर नीक आ उत्तम शेर छै ताहिमे
संदेह नै। तँइ गुंजनजी सेहो प्रस्तुत करबा लेल बाध्य भेलाह। तँ आब हम मूल बात दिस चली।
हम अपन गिनती लेल दू टा मानक लेलहुँ अछि। पहिल दुष्यंतजीक गजल संग्रह प्रकाशन आ दोसर
आधुनिक खड़ी बोली हिंदीमे लिखल शुरूआती गजल आ से हमरा भारतेंदु हरिश्चंद्रजी लगसँ भेटैए
(जन्म- 9 सितंबर 1850- मृत्यु 6 जनवरी 1885)। भारतेन्दुजीक गजल सेहो छनि मुदा कोन बर्खमे
प्रकाशित भेलनि से हमरा ज्ञात नै ताही लेल हम हुनकर मृत्यु वर्षकेँ अंतिम मानि आगू
बढ़ि रहल छी। आब जानी दुष्यंत कुमारजीकेँ। दुष्यंतजीक जन्म- 01 सितम्बर 1933 आ मृत्यु-
30 दिसम्बर 1975 केँ भेलनि। एही बर्ख (1975) मे हिनक गजल संग्रह- 'साये में धूप' केर
प्रकाशन भेलनि। एहि ठाम कने रुकि हम भारतेंदु आ हुनकर ठीक बादक किछु चूनल हिंदी
गजलकारक किछु शेर देखी—
अजब जोबन है गुल पर आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी है
शिताब आ साक़िया गुल-रू कि तेरी यादगारी है
एकर बहर अछि 1222-1222-1222-1222
आ गई सर पर क़ज़ा लो सारा सामाँ रह गया
ऐ फ़लक क्या क्या हमारे दिल में अरमाँ रह गया
एकर बहर अछि 2122-2122-2122-212
आब सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जीक शेर देखू-
भेद कुल खुल जाए वह सूरत हमारे दिल में है
देश को मिल जाए जो पूँजी तुम्हारी मिल में है
एकर बहर अछि 2122-2122-2122-212
आब जयशंकर प्रसाद जीक ई शेर देखू--
सरासर भूल करते हैं उन्हें जो प्यार करते हैं
बुराई कर रहे हैं और अस्वीकार करते हैं
एकर बहर अछि 1222-1222-1222-1222 आ ठीक एही बहरमे शमशेर बहादुर सिंहजीक ई शेर देखू--
जहाँ में अब तो जितने रोज अपना जीना होना है,
तुम्हारी चोटें होनी हैं हमारा सीना होना है।
पं.कृष्णानंद चौबीजीक ई शेर देखू--
आपका मक़सद पुराना है मगर खंज़र नया
मेरी मजबूरी है मैं लाऊँ कहाँ से सर नया
एकर बहर अछि 2122-2122-2122-212 आ ठीक एही सभहक बीचमे दुष्यंत कुमारजीक गजल छल। दुष्यंतजीक
गजल संग्रहक हरेक गजल बहरमे अछि मुदा एकटा गजलक बहरपर बेर-बेर ओझराहटि हिंदी ओ मैथिलीक
गजलकार दिससँ देखल जाइए आ ओहि गजलक मतला छै--
होने लगी है जिस्म में जुम्बिश तो देखिए
इस परकटे परिंदे की कोशिश तो देखिए
अही गजलक एकटा शेर गुंजनजी देने रहथिन
जकरा हम उपरमे देने छी। जखन कोनो हिंदी-उर्दू गजल देवनागरीमे लिखाइ छनि तखन ओझराहटि
आर बेसी बढ़ि जाइत छै। कमसँ कम हिंदीमे तँ बहुत घमर्थन छै जे हिंदी गजल लेल उर्दू शब्दक
मूल ध्वनि लेल जाए कि हिंदी ध्वनि। हिंदीक बहुत गजलकार उर्दू ध्वनिक आग्रही छथि तँ
बहुत हिंदीक ध्वनिक। दुष्यंतजी अपने सेहो एही ध्वनिक ओझरीमे छलाह तँइ बहुत बेर ओ अपन
गजलमे शहर केर मूल ध्वनि शह्र=21 लेने छथि तँ हिंदी ध्वनि श-हर=12 सेहो। अही कारणसँ
उर्दू गजलकार सभ दुष्यंत कुमार केर आलोचना केलकनि आ हिंदी बला सभ बुझलकै जे दुष्यंतजीकेँ
नीचा देखाबए लेल उर्दू बला सभ एना कऽ रहल छै। एहि गजलक बहर बूझब हुनका लेल आसान हेतनि
जे कि मुजाइफ बहर बुझि गेल छथि आ जे नै बुझने छथि से निच्चाक दूटा शेरक तक्ती देखथि-
होने लगी है जिस्म में जुम्बिश तो देखिए=2212-12-11-22-12-12
इस परकटे परिंदे की कोशिश तो देखिए=2212-12-11-22-12-12
उनकी अपील है कि उन्हें हम मदद करें=2212-12-11-22-12-12
चाकू की पसलियों से गुज़ारिश तो देखिये=2212-12-11-22-12-12
अहाँ सभ चाही तँ पूरा गजल एहि बहरपर बैसा कऽ देखि सकैत छी। कुल मिला कऽ साबित
भेल जे दुष्यंतजीक ईहो गजलमे बहर अछि। बिना बहरक गजल भइए ने सकैए। हमरा गुंजनजीक उद्येश्यपर
संदेह नै मुदा हमर पापी मोन सोचलक जे कहीं गुंजनजी एहि शेरकेँ अही दुआरे तँ प्रस्तुत
नै केलाह जे हुनको बुझाइत छलनि जे एहि गजलमे बहर नै भऽ सकैए। माफी चाहब ई हमर पापी
मोनक संदेह छल वा अछि। आब एहि संदेह सभकेँ कात करैत मूल बातपर आबी। जेना कि देखलहुँ
जे भारतेंदु आ हुनक बाद काँच-पाकल कथ्यक संग मुदा अनिवार्य रूपे बहरयुक्त हिंदी गजल
दुष्यंत सन परिपक्व गजलकार धरि यात्रा केलक आ ताहिमे ओकरा लगभग 90 बर्ख समय लगलै (भारतेंदुजीक
मृत्युसँ दुष्यंतजीक गजल संग्रहक प्रकाशन)। एहन नै छलै जे दुष्यंतजीसँ पहिने जे नाम
देलहुँ से हिंदीमे अनाम छलाह ओ सभ स्थापित आ युगांतकारी साहित्यकार छलाह , गजलक सभ
नियम पालन करैत छलाह, हिंदी गजलकार मानसिक रूपें सचेष्ट छलाह तकर बादो हिंदी गजलकेँ
दुष्यंत सन मिजाज पेबामे 90 बर्ख लागि गेलै। एकर विपरीत मैथिलीक शुरूआती गजल बहरयुक्त
रहल मुदा बादक अज्ञानी पीढ़ी प्रचारित केलक जे मैथिलीमे गजल भइए ने सकैए, गजलमे बहर
होइते नै छै, बहुत बादक पीढ़ी सभ तँ ईहो कहए लागल जे दुष्यंत कुमार बहर तोड़ि देलाह,
तँ अदम गोंडवी बहर फोड़ि देलाह आदि। आ एहि चक्करमे लगभग 1950क बाद मैथिलीमे बिना बहरक
गजल चलल जे 2008 मे विजयनाथ झाजीक गीत-कविता-गजल संग्रह 'अहींक लेल' संग बंद भेल संगे-संग
2008हि मे गजल लेल समर्पित शोध पत्रिका 'अनचिन्हार आखर' केर स्थापना भेल। आ तकर बाद
लगातार मैथिलीमे बहरयुक्त गजल लिखा रहल अछि। एहिठाम ई कहब अनुचित नै जे पछिला पीढ़ीक
बिना बहर बला सभ बहुत प्रयास केला जे युवा बहरयुक्त गजल नै लीखए आ ताहि लेल ओ पुरस्कार,
लिस्टमे नाम देब, एक पन्नाक समीक्षा लीखि देब प्रलोभन देबाक सन काज सेहो केलाह आ किछु
अंशमे सफल सेहो भेलाह मुदा जेना-जेना मैथिलीक युवा लग उर्दू-हिंदी गजलक तक्ती होइत
गेलै तेना-तेना ओ सभ मानए लगलाह जे बिना बहरक गजल नै होइत छै आ ओ सभ अपन गजलमे बहर
लेबाक लेल आवश्यक मेहनति करए लगलाह। चूँकि शुरूआती गजलक बाद लगभग 50 साल मैथिलीमे
बिना बहर बला गजल रहलै तँइ हम 2008केँ मानक बर्ख मानि रहल छी आ एकरे आधार मानि रहल
छी। आबि मानि लिअ मैथिलीक गजलकार हिंदिए गजलकार सन बहुपठित, नियमक पालन करए बला. प्रयोगी
हेताह तइयो लगभग बर्ख 2090 सँ लऽ कऽ बर्ख 2100 धरिक बीचमे मैथिलीमे दुष्यंत कुमार सनक
गजलकार हेबाक संभावना अछि वा कही जे ओहने मिजाजक गजल लिखल जेबाक संभावना अछि। एहिठाम
गंगेशजी आपत्ति कऽ सकै छथि जे हम दुष्यंत नै दुष्यंतक गजलक मिजाज कहने छी। मुदा पहिने
दुष्यंत तखन ने हुनकर मिजाज। बहुत गोटे प्रश्न उठा सकै छथि जे एतेक समय किए लगतै।
मुदा हमरा जनैत ओ सभ कोनो विधाक विकाससँ अपरिचित छथि। विधाक विकास एक-दू सालक खेल नै
छै। हम ईहो मानै छी जे वर्तमान समयक सभ मैथिली बहरयुक्त गजलकार प्रतिभाशाली छथि मुदा
भारतेंदु, जयशंकर प्रसाद, निराला आदिक दसो प्रतिशत नै छथि। जखन भारतेंदु, जयशंकर प्रसाद,
निराला सभकेँ रहैत 90 बर्ख लगलै तँ इम्हर बलाकेँ कतेक लगतै। बहुत संभव जे किछु
लोक हमर आकलनकेँ गलत मानथि। हुनका बुझाइत हेतनि जे मैथिलीक गजलकार सभ बहुत प्रतिभाशाली
छथि मुदा हमरा मोनमे एहन कोनो खुशफहमी नै अछि। ई 90-100 बर्खक गैप सदिखन रहत। मानू
जे जँ एखनो जँ बहरयुक्त गजल बंद भऽ जाए आ फेर बीस बर्ख बाद फेरसँ बहरयुक्त गजल चालू
हुअए तँ ओहि समयमे ई 90-100 बर्ख जोड़ल जेतै। तँ जेहन भाव हो काँच-पाकल से सभ बहरमे
लीखी आ प्रतीक्षा करी निश्चित तौरपर मैथिलीमे सेहो दुष्यंतक गजलक मिजाज सन गजल लिखेतै।
2030 धरिक कोनो बहरयुक्त गजलकारमे दुष्यंतक मिजाज धारण करबाक क्षमता आएत से बहुत संभव।
एखनुक कोनो-कोनो बहरयक्त गजलकार सेहो दुष्यंतक मिजाजमे आबि जाइत छथि मुदा ओ स्थायी
नै भऽ पबै छै, भइयो नै सकैए कारण ओहि मिजाज लेल जे भूमि चाही से एखन दूर अछि। खुशीक
बात अतबे जे बेसी दूर नै अछि। जँ ई मिजाज स्थायी भऽ जाए तँ बहुत संभव जे एखुनके कोनो
बहरयुक्त गजलकार दुष्यंतक मिजाज गजलमे आनि लेताह।
जँ हिंदी गजलमे दुष्यंतक गजलक मिजाज केर पृष्ठभूमि ताकल जाए तँ ओ निरालाक गजल हेतै।
दुष्यंत कुमार शेर यथा--
सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद
नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
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यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा
आ एहने सन बहुत रास शेर केर पृष्ठभूमि निरालाक ओ शेर अछि जे हम उपर देलहुँ। जँ मैथिलीमे
देखल जाए तँ निरालाक समानांतर कविवर सीताराम झाजीक ई शेर अछि--
हम की मनाउ चैती सतुआनि जूड़शीतल
भै गेल माघ मासहि धधकैत घूड़ तीतल
मतलाक बहर अछि 2212+ 122+2212+ 122 मुदा
अफसोच जे एहि पृष्ठभूमिक समुचित उपयोग मैथिलीक कथित गजलकार सभ नै कऽ सकलाह। भावक कोन
कमी छै एहि शेरमे आ सेहो बहर सहित। जखन हिंदीक शीर्ष रचनाकार सभ बहरक पालन कऽ सकैत
छलाह तखन ई मैथिली बला सभ कोन देवताक अवतार छलाह? आ तँइ सीतारामजीक भाव केर आधारपर
मैथिलीमे एखन धरि दुष्यंतक गजलक मिजाज नै आबि सकल अछि आ ताहि लेल ओ कथित गजलकार सभ
दोषी छथि जे कहलाह मैथिलीमे गजल भइए ने सकैए, गजलमे बहर होइते नै छै, दुष्यंत कुमार
बहर तोड़ि देलाह, तँ अदम गोंडवी बहर फोड़ि देलाह आदि। एहन कहए बला सभ मैथिली गजलकेँ
कतेक नोकसान केलाह से आकलन करब बहुत कठिन तँ नै मुदा दुखदायी छै। दुख होइत छै ई देखि
जे एकटा नीक विधाकेँ मैथिलीमे कोना भुस्साथरि बैसाएल गेलै।
गंगेशजी अपन पोस्टमे आशंका जतेने छथि जे दुष्यंतक गजलक मिजाजक शेर पढ़ि सकब आ कि............
हम जँ ॠषि रहितहुँ तँ हम अपन बाँचल उम्र हुनका नामे कऽ दितियिन ई दिन देखबाक लेल मुदा
से संभव नै। हम बस शुभकामने टा दऽ सकैत छियनि जे ओ देखि कऽ जाथि। हलाँकि नव गजलकार
सभ ई जरूर सोचथि जे जँ हमर पूर्वज लगातार बहरमे लिखने रहितथि तँ निश्चित तौरपर 90 केर
दशकमे मैथिलीयोमे दुष्यंतक मिजाज सन गजल आबि गेल रहितै। भावक कमी मैथिलीमे कहियो नै
रहलै आ ने भावकेँ पकड़बाक कलामे। मुदा दोष केकर................. हमरा लेल केकरो दोष
निरूपति करबासँ बेसी आसान रहैए अपन हिस्साक काज कऽ लेब से एहू ठाम हम केलहुँ। आब पाठक
आ सचेष्ट गजलकार जानथि।
परिशिष्ट (एहिमे गुंजनजीक मूल पोस्ट
दऽ रहल छी)—
" उनकी अपील है कि उन्हें हम मदद करें
चाकू की पसलियों से गुज़ारिश तो देखिये"
(दुष्यंत कुमार)
हमर बड़ मनोरथ जे एहि मिज़ाज आ वज़नक शे'र अपन मैथिलीओ मे होइत ! कहि सकितय कोय । आस तँ नव तुरिये मे क' सकैत छी। देखी, से दिन पढ़ि क' जाइ छी कि ...
ई आलेख 'विदेह' ३०७ म अंक ०१ अक्टूबर २०२० केर अंकमे प्रकाशित भेल
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