भेष हुनक भगवान सन
काज मुदा सैतान सन
बेटा बला के पंडित बूझू
बेटी बला जजमान सन
मँहगाइ बढ़ल छै तेना ने
सोहर लगैए समदाउन सन
तैआर नहि केओ राम बनबा लेल
मुदा सेवक तकैए हनुमान सन
देहे ने जिंदा छै भावना त मरि गेलै
सुआइत संसार लगैए श्मसान सन
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सोमवार, 26 जुलाई 2010
गजल
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गजल
भेष हुनक भगवान सन
काज मुदा सैतान सन
बेटा बला के पंडित बूझू
बेटी बला जजमान सन
मँहगाइ बढ़ल छै तेना ने
सोहर लगैए समदाउन सन
तैआर नहि केओ राम बनबा लेल
मुदा सेवक तकैए हनुमान सन
देहे ने जिंदा छै भावना त मरि गेलै
सुआइत संसार लगैए श्मसान सन
काज मुदा सैतान सन
बेटा बला के पंडित बूझू
बेटी बला जजमान सन
मँहगाइ बढ़ल छै तेना ने
सोहर लगैए समदाउन सन
तैआर नहि केओ राम बनबा लेल
मुदा सेवक तकैए हनुमान सन
देहे ने जिंदा छै भावना त मरि गेलै
सुआइत संसार लगैए श्मसान सन
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गुरुवार, 22 जुलाई 2010
गजल
मोन नहि भरैए मिलनक बेर मे
अनचिन्हार कहैए मिलनक बेर मे
जेहन विरह हो तेहन सिनेह
अनचिन्हार मोन पड़ैए मिलनक बेर मे
हमर देहक भाषा-अभिलाषा
अनचिन्हार बुझैए मिलनक बेर मे
भगवानो जनैत छथिन्ह मोनक बात
अनचिन्हार अबैए मिलनक बेर
हुनकर रीत हुनकर प्रीत हुनकर गीत
अनचिन्हार लगैए मिलनक बेर मे
अनचिन्हार कहैए मिलनक बेर मे
जेहन विरह हो तेहन सिनेह
अनचिन्हार मोन पड़ैए मिलनक बेर मे
हमर देहक भाषा-अभिलाषा
अनचिन्हार बुझैए मिलनक बेर मे
भगवानो जनैत छथिन्ह मोनक बात
अनचिन्हार अबैए मिलनक बेर
हुनकर रीत हुनकर प्रीत हुनकर गीत
अनचिन्हार लगैए मिलनक बेर मे
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सोमवार, 12 जुलाई 2010
मैथिली गजलशास्त्र- ९
कविवर जीवन झाक नाटक सुन्दर संयोगसँ लेल मैथिलीक पहिल गजल
सुन्दर संयोग चतुर्थ अंकमे लेखक स्वयं (गजल) कहि एकरा सम्बोधित कएने छथि।
(गजल)
आइ भरि मानि लिअऽ नाथ ने हट जोर करू।
देहरी ठाढ़ि सखी हो न एखन कोर करू ॥१॥
हाय रे दैव! इ ककरासँ कहू क्यो न सुनै।
सैह खिसिआइए जकरा कनेको सोर करू ॥२॥
लाथ मानै ने क्यो सभ लोक करैए हँसी।
बाजऽ भूकऽ ले जँ कनेक जकर सोझ ओठ करू ॥३॥
जाइ एखन ने धनी एक कहल मोर करू।
आन संगोर करू एहि ठाम भोर करू ॥४॥
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गजेन्द्र ठाकुर,
मैथिली गजल शास्त्र
गजल
गप्प हमरा संग अहाँ करैत रहू
एहिना मोन हमर जुरबैत रहू
मोन कहिओ नहि भरतैक केकरो
हम अहाँ के छूब अहाँ हमरा छूबैत रहू
बरसि जेतै सभतरि अमरित केर बरखा
कनी कनडेरिए अहाँ देखैत रहू
चलू दोस्त नहि दुश्मने बनि जाउ हमर
आ करेज सँ करेज भिरा लड़ैत रहू
अनचिन्हार लिखत प्रेमक पाँति
करेज पर हाथ राखि एकरा पढ़ैत रहू
एहिना मोन हमर जुरबैत रहू
मोन कहिओ नहि भरतैक केकरो
हम अहाँ के छूब अहाँ हमरा छूबैत रहू
बरसि जेतै सभतरि अमरित केर बरखा
कनी कनडेरिए अहाँ देखैत रहू
चलू दोस्त नहि दुश्मने बनि जाउ हमर
आ करेज सँ करेज भिरा लड़ैत रहू
अनचिन्हार लिखत प्रेमक पाँति
करेज पर हाथ राखि एकरा पढ़ैत रहू
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