गजल- 3 डॉ. नरेश कुमार ‘विकल’
तन भिंजा कए मन जराबए आबि गेल साओन केर दिन।
विरह-वेदन तान गाबए आबि गेल साओन केर दिन।
खेलि कऽ बरसात अप्पन वस्त्र फेंकल सूर्यपर
चानकेँ सेहो लजाबए आबि गेल साओन केर दिन।
मधुर फूही भरल अमृत सँ प्लावित ई धरा
पान महारकेँ कराबए आबि गेल साओन केर दिन।
ई बसातक बात की हो अनल-कन-रंजित बहए
मोनकेँ पाथर बनाबए आबि गेल साअोन केर दिन।
खोहमे खोंताक खूजल द्वारिपर विधुआएल सन
विरहिणीकेँ बस डराबए आबि गेल साअोन केर दिन।
बाध हरियर, बोन हरियर हरियरे चहुँ दिस छै
धूरसँ आङन सुखाबए आबि गेल साअोन केर दिन।
बांसुरीपर टेरि रहलै के एहन रस-रोग राग
भेल भुम्हूरकेँ पजारए आबि गेल साअोन केर दिन।
सिमसिमाहे नूआ-सन झपसीमे लागए सहज-मन
सतलकेँ आओरो सताबए आबि गेल साअोन केर दिन।
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शनिवार, 1 जनवरी 2011
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