वीनस केसरी
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अंजुमन प्रकाशनक महत्वपूर्ण संस्थानक कर्ता छथि आ कम दामपर ई पाठककेँ पोथी उपल्बध कराबै छथि।जश्ने-गजल आ अंतरराष्ट्रिय गजल सम्मेलनक सफल आयोजन कऽ कऽ वीनसजी गजलकेँ एक परिधिसँ बाहर आनि देने छथि।
प्रकाशित पोथी- गजल की बाबत। ऐ पोथीमे गजलक व्याकरणकेँ नीक तरीकासँ बुझाएल गेल छै आ ई हिंदीमे सरलतम तरीकासँ लिखल गेल पोथी छै। वीनसजी जेना व्याकरणकेँ प्रस्तुत करै छथि तैसँ भाव बेसी सरल भऽ जाइत छै। आ इएह चीज हुनक गजलकेँ महत्वपूर्ण बनबैत अछि।
पहिने हिनकर एकटा शेरक तेवर देखू--
बड़े हुए थे जो छोटा हमें बताने से
चुरा रहे हैं नज़र आज वो ज़माने से
आ आब हिनके दू टा गजल पढ़ू-
गजल
1
हर समंदर पार करने का हुनर रखता है वो
फिर भी सहरा पे सफ़ीने का सफ़र रखता है वो
बादलों पर खाहिशों का एक घर रखता है वो
और अपनी जेब में तितली के पर रखता है वो
हमसफ़र वो, रहगुज़र वो, कारवां, मंज़िल वही,
और खुद में जाने कितने राहबर रखता है वो
चिलचिलाती धूप हो तो लगता है वो छाँव सा,
धुँध हो तो धूप वाली दोपहर रखता है वो
उससे मिल कर मेरे मन की तीरगी मिट जाए है,
अपनी भोली बातों में ऐसी सहर रखता है वो
जानता हूँ कह नहीं पाया कभी मैं हाले दिल,
पर मुझे मालूम है सारी खबर रखता है वो
2
ये कैसी पहचान बनाए बैठे हैं
गूँगे को सुल्तान बनाए बैठे हैं
मैडम बोली थीं, घर का नक्शा खींचो
बच्चे हिन्दुस्तान बनाए बैठे हैं
आईनों पर क्या गुजरी है, क्यों ये सब,
पत्थर को भगवान बनाए बैठे हैं
धूप का चर्चा फिर संसद में गूँजा है
हम भी रौशनदान बनाए बैठे हैं
जंग न होगी तो होगा नुक्सान बहुत
हम कितना सामान बनाए बैठे हैं
वो चाहें तो खुद को और कठिन कर लें
हम खुद को आसान बनाए बैठे हैं
पल में तोला, पल में माशा हो कर वो
महफ़िल को हैरान बनाए बैठे हैं
आप को सोचें, दिल को फिर गुलज़ार करें
क्यों खुद को वीरान बनाए बैठे हैं