गजलक मतलामे जे रदीफ-काफिया-बहर लेल गेल छै तकर पालन पूरा गजलमे हेबाक चाही मुदा नज्ममे ई कोनो जरूरी नै छै। एकै नज्ममे अनेको काफिया लेल जा सकैए। अलग-अलग बंद वा अंतराक बहर सेहो अलग भ' सकैए संगे-संग नज्मक शेरमे बिनु काफियाक रदीफ सेहो भेटत। मुदा बहुत नज्ममे गजले जकाँ एकै बहरक निर्वाह कएल गेल अछि। मैथिलीमे बहुत लोक गजलक नियम तँ नहिए जानै छथि आ ताहिपरसँ कुतर्क करै छथि जे फिल्मी गीत बिना कोनो नियमक सुनबामे सुंदर लगैत छै। मुदा पहिल जे नज्म लेल बहर अनिवार्य नै छै आ जाहिमे छै तकर विवरण हम एहि ठाम द' रहल छी-----------------
आइ देखू "आप आये बहार आई" फिल्म केर ई नज्म जे कि मो. रफीजी ओ लता मंगेशकरजी द्वारा गाएल गेल अछि। नज्म लिखने छथि आनन्द बक्षी। संगीतकार छथि लक्ष्मीकांत प्यारेलाल। ई फिल्म 1971 मे रिलीज भेलै। एहिमे राजेंद्र कुमार, साधना आदि कलाकार छलथि।
दिल शाद था कि फूल खिलेंगे बहार में
मारा गया ग़रीब इसी इंतज़ार में
मुझे तेरी मुहब्बत का सहारा मिल गया होता
अगर तूफ़ाँ नहीं आता किनारा मिल गया होता
न था मंज़ूर क़िस्मत को न थी मर्ज़ी बहारों की
नहीं तो इस गुलिस्ताँ में कमी थी क्या नज़ारों की
मेरी नज़रों को भी कोई नज़ारा मिल गया होता
ख़ुशी से अपनी आँखों को मै अश्को से भिगो लेता
मेरे बदलें तू हँस लेती तेरे बदलें मैं रो लेता
मुझे ऐ काश तेरा दर्द सारा मिल गया होता
मिली है चाँदनी जिनको ये उनकी अपनी क़िस्मत है
मुझे अपने मुक़द्दर से फ़क़त इतनी शिकायत है
मुझे टूटा हुआ कोई सितारा मिल गया होता
एहि नज्मक सभ पाँतिक मात्राक्रम 1222 1222 1222 1222 अछि। बहुत काल शाइर गजल वा नज्मसँ पहिने माहौल बनेबाक लेल एकटा आन शेर दैत छै ओना ई अनिवार्य नै छै। एहि नज्मसँ पहिने एकटा शेर "दिल शाद था कि फूल खिलेंगे बहार में मारा गया ग़रीब इसी इंतज़ार में" (एहू शेरमे बहर छै) माहौल बनेबाक लेल देल गेल छै। एकर तक्ती उर्दू हिंदी नियमपर कएल गेल अछि।
आइ देखू "आप आये बहार आई" फिल्म केर ई नज्म जे कि मो. रफीजी ओ लता मंगेशकरजी द्वारा गाएल गेल अछि। नज्म लिखने छथि आनन्द बक्षी। संगीतकार छथि लक्ष्मीकांत प्यारेलाल। ई फिल्म 1971 मे रिलीज भेलै। एहिमे राजेंद्र कुमार, साधना आदि कलाकार छलथि।
दिल शाद था कि फूल खिलेंगे बहार में
मारा गया ग़रीब इसी इंतज़ार में
मुझे तेरी मुहब्बत का सहारा मिल गया होता
अगर तूफ़ाँ नहीं आता किनारा मिल गया होता
न था मंज़ूर क़िस्मत को न थी मर्ज़ी बहारों की
नहीं तो इस गुलिस्ताँ में कमी थी क्या नज़ारों की
मेरी नज़रों को भी कोई नज़ारा मिल गया होता
ख़ुशी से अपनी आँखों को मै अश्को से भिगो लेता
मेरे बदलें तू हँस लेती तेरे बदलें मैं रो लेता
मुझे ऐ काश तेरा दर्द सारा मिल गया होता
मिली है चाँदनी जिनको ये उनकी अपनी क़िस्मत है
मुझे अपने मुक़द्दर से फ़क़त इतनी शिकायत है
मुझे टूटा हुआ कोई सितारा मिल गया होता
एहि नज्मक सभ पाँतिक मात्राक्रम 1222 1222 1222 1222 अछि। बहुत काल शाइर गजल वा नज्मसँ पहिने माहौल बनेबाक लेल एकटा आन शेर दैत छै ओना ई अनिवार्य नै छै। एहि नज्मसँ पहिने एकटा शेर "दिल शाद था कि फूल खिलेंगे बहार में मारा गया ग़रीब इसी इंतज़ार में" (एहू शेरमे बहर छै) माहौल बनेबाक लेल देल गेल छै। एकर तक्ती उर्दू हिंदी नियमपर कएल गेल अछि।