सोमवार, 12 मार्च 2018

हिंदी फिल्मी गीतमे बहर-10

गजलक मतलामे जे रदीफ-काफिया-बहर लेल गेल छै तकर पालन पूरा गजलमे हेबाक चाही मुदा नज्ममे ई कोनो जरूरी नै छै। एकै नज्ममे अनेको काफिया लेल जा सकैए। अलग-अलग बंद वा अंतराक बहर सेहो अलग भ' सकैए संगे-संग नज्मक शेरमे बिनु काफियाक रदीफ सेहो भेटत। मुदा बहुत नज्ममे गजले जकाँ एकै बहरक निर्वाह कएल गेल अछि। मैथिलीमे बहुत लोक गजलक नियम तँ नहिए जानै छथि आ ताहिपरसँ कुतर्क करै छथि जे फिल्मी गीत बिना कोनो नियमक सुनबामे सुंदर लगैत छै। मुदा पहिल जे नज्म लेल बहर अनिवार्य नै छै आ जाहिमे छै तकर विवरण हम एहि ठाम द' रहल छी-----------------

आइ देखू "शराबी" फिल्म केर ई नज्म जे कि किशोर कुमारजी द्वारा गाएल गेल अछि। नज्म लिखने छथि प्रकाश मेहारा। संगीतकार छथि बप्पी लाहिड़ी। ई फिल्म 1984 मे रिलीज भेलै। एहिमे अमिताभ बच्चन, जयाप्रदा आदि कलाकार छलथि।

मंज़िलों पे आ के लुटते, हैं दिलों के कारवाँ
कश्तियाँ साहिल पे अक्सर, डूबती है प्यार की

मंज़िलें अपनी जगह हैं, रास्ते अपनी जगह
जब कदम ही साथ ना दे, तो मुसाफिर क्या करे
यूं तो है हमदर्द भी और हमसफ़र भी है मेरा
बढ़ के कोई हाथ ना दे, दिल भला फिर क्या करे

डूबने वाले को तिनके का सहारा ही बहुत
दिल बहल जाए फ़क़त इतना इशारा ही बहुत
इतने पर भी आसमां वाला गिरा दे बिजलियाँ
कोई बतला दे ज़रा ये डूबता फिर क्या करे

प्यार करना जुर्म है तो, जुर्म हमसे हो गया
काबिले माफी हुआ, करते नहीं ऐसे गुनाह
तंगदिल है ये जहां और संगदिल मेरा सनम
क्या करे जोशे जुनूं और हौसला फिर क्या करे

एहि नज्मक सभ पाँतिक मात्राक्रम 2122 2122 2122 212 अछि। बहुत काल शाइर गजल वा नज्मसँ पहिने माहौल बनेबाक लेल एकटा आन शेर दैत छै ओना ई अनिवार्य नै छै। एहि नज्मसँ पहिने एकटा शेर "मंज़िलों पे आ के लुटते, हैं दिलों के कारवाँ" (एहू शेरमे इएह बहर छै) माहौल बनेबाक लेल देल गेल छै।  एकर तक्ती उर्दू हिंदी नियमपर कएल गेल अछि। उर्दूमे "और" शब्दक मात्रा निर्धारण दू तरीकासँ कएल जाइत छै "और मने 21" आ "औ मने 2"। एहि नज्मक संगे आन नज्म लेल ई मोन राखू। जरूरी नै जे ई नियम मैथिली लेल सेहो सही हएत।अंतिम बंदक दोसर पाँतिक अंतिम शब्द अछि "गुनाह" जाहिमे एकटा लघु अतिरिक्त अछि। ई छूट उर्दू गजलक संग मैथिली गजलमे सेहो अछि।


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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों