सितम्बर-१९मे कुल २टा पोस्ट अछि जाहिमे १टा आशीष अनचिन्हारक गजल आ १टा अपने एना अपने मूँह अछि।
अक्टूबर-१९मे कुल १टा पोस्ट अछि जाहिमे १टा आशीष अनचिन्हारक गजल अछि।
नवम्बर-१९मे कुल १टा पोस्ट अछि जाहिमे आशीष अनचिन्हारक १टा हिंदी फिल्मी गीतमे बहर अछि।
दिसम्बर-१९मे कुल ३टा पोस्ट अछि जाहिमे १टा आशीष अनचिन्हारक गजल, १टा हिंदी फिल्मी गीतमे बहर आ १ टा अपने एना अपने मूँह अछि।
मात्र मैथिली गजलपर केंद्रित सम्मान "गजल कमला-कोसी-बागमती-महानंदा सम्मान" अछि जे किछु कारणवश स्थगित छल। 2011-2014 धरि ई चलल तकर बाद ठमकि गेल। मुदा ई फेरसँ शुरू हएत एवं एहिमे आब राशिक प्रावधान सेहो रहत जे कि 15000 रहत। योग्य रचना चुनबाक नियम पुरने सन अछि किछु संसोधनक संग। ई सम्मान दू चरणमे पूरा कएल जाएत जकर विवरण एना अछि--------
पहिल चरण-----------हरेक मासमे प्रकाशित गजल, बाल गजल, भक्ति गजल, रुबाइ, बाल रुबाइ, भक्ति रुबाइ, कता, फर्द, समीक्षा, आलोचना, समालोचना, इतिहासमेसँ एकटा रचना चूनल जाएत जे सालक बारहो मास चलत (साल मने 1 जनवरी सँ 31 दिसम्बर) । एहि तरहें चयन कर्ता लग अंतिम रूपसँ बारह रचना प्राप्त हेतन्हि। गजल बहरयुक्त हेबाक चाही। बिना बहर बला गजल मान्य नै हएत। सरल वार्णिक बहर बला गजल गजलक नवसिखुआ सभ लेल छै तँइ एहू बहर बला गजलकेँ हम बारब।
दोसर चरण------ चयनकर्ता अंतिम रूपमेसँ प्राप्त रचनाकेँ ओकर भाव, व्याकरण आदिक आधारपर एकटा रचना चुनताह, जे अंतिम रुपसँ मान्य हएत आ ओकरे ई पुरस्कार देल जाएत। रचना चुनबाक नियम-------------
1) रचना अनिवार्य रुपें "अनचिन्हार आखर" पर प्रकाशित होएबाक चाही। जँ कोनो रचनाकारक रचना अन्य द्वारा प्रस्तुत कएल गेल छैक सेहो मान्य हएत। कोनो अन्य पत्रिकामे प्रकाशित गजल सेहो मान्य हेतै मुदा ताहि लेल ओकर कटिंग आ अनापत्ति प्रमाण पत्र सेहो देल जाए पोस्टमे। चयन भेल रचनाकारक प्रतिबद्धता गजल ओ शेरो-शाइरीक विधा संग छनि वा नै सेहो देखल जाएत। संगहि संग चयन भेल रचनाकारक लेखन आ जीवनक आचरणमे कतेक साम्यता छनि सेहो देखल जाएत।
2) रचना मौलिक होएबाक चाही। जँ कोनो रचनाक अमौलिकता पुरस्कार प्राप्त भेलाक बाद प्रमाणित हएत तँ रचनाकार सँ अबिलंब पुरस्कार आपस लए लेल जाएत आ भविष्य मे एहन घटना के रोकबाक लेल " अनचिन्हार आखर" कानूनी कारवाइ सेहो कए सकैत अछि।
3) रचना चयन प्रकियाकेँ चुनौती नहि देल जा सकैए।
4) एहन रचनाकार जे मैथिलीक रचना के अन्य भाषाक संग घोर-मठ्ठा कए लिखैत छथि से एहि पुरस्कारक लेल सवर्था अयोग्य छथि, हँ ओहन रचनाकार जे मैथिली आ अन्य भाषा मे फराक-फराक लिखैत छथि तिनकर रचनाकेँ पुरस्कार देल जा सकैए, बशर्ते कि ओ अन्य पात्रता रखैत होथि।
5) पहिल चरणक प्रकिया हरेक मासक 5 सँ 10 तारीखके बीच आ दोसर चरण हरेक तिला-संक्रान्ति के पूरा कएल जाएत।
गजलक मतलामे जे रदीफ-काफिया-बहर लेल गेल छै तकर पालन पूरा गजलमे हेबाक चाही मुदा नज्ममे ई कोनो जरूरी नै छै। एकै नज्ममे अनेको काफिया लेल जा सकैए। अलग-अलग बंद वा अंतराक बहर सेहो अलग भ' सकैए संगे-संग नज्मक शेरमे बिनु काफियाक रदीफ सेहो भेटत। मुदा बहुत नज्ममे गजले जकाँ एकै बहरक निर्वाह कएल गेल अछि। मैथिलीमे बहुत लोक गजलक नियम तँ नहिए जानै छथि आ ताहिपरसँ कुतर्क करै छथि जे फिल्मी गीत बिना कोनो नियमक सुनबामे सुंदर लगैत छै। मुदा पहिल जे नज्म लेल बहर अनिवार्य नै छै आ जाहिमे छै तकर विवरण हम एहि ठाम द' रहल छी-----------------
एक रात में दो दो कोबर बनी एक नैहर में एक सासुर में
मिथिलांचलमे ई कोबर गीत कहियो धूम मचेने छल। ई कोबर गीत एकटा हिंदी फिल्मी गीतक पैरोडी अछि। मूल बोल एना छै " एक रात में दो-दो चाँद खिले, एक घूँघट में एक बदली में"। फिल्म "बरखा" केर ई नज्म जे कि मुकेश ओ लता मंगेशकर जी द्वारा गाएल गेल अछि। नज्म लिखने छथि राजेन्द्र कृष्ण। संगीतकार छथि चित्रगुप्त। ई फिल्म 1 January 1960 मे रिलीज भेलै। एहिमे जगदीप, नंदा, लीला चिटनिस आदि कलाकार छलथि। एहि नज्म वा गीतमे ठीकसँ बहरक पालन नै भेल अछि मुदा बहरक बहुत लग-लगीचमे अछि आ गायनमे एकरा एक मीटरमे बैसा देल गेल छै तँइ हम एहि गीतक चयन केलहुँ। पाठक एकरा पढ़ि अनुमान लगा सकै छथि जे नीक गजल-गीत लेल बहर कतेक अनिवार्य होइत छै। दू टा अलग-अलग लघुकेँ दीर्घ मानि लेबाक जे उर्दू परंपरा छै गजलमे तकरे मैथिलीमे लेल गेल छै आ से प्रायः सभ जनिते हेता।
एक रात में दो-दो चाँद खिले (9 दीर्घ)
एक घूँघट में एक बदली में (9 दीर्घ)
अपनी अपनी मंज़िल से मिले (9 दीर्घ आ 1 लघु)
एक घूँघट में एक बदली में (9 दीर्घ)
बदली का वो चाँद तो सबका है (9 दीर्घ आ 1 लघु)
घूँघट का वो चाँद तो अपना है (9 दीर्घ आ 1 लघु)
मुझे चाँद समझने वाले बता (7 दीर्घ आ 1 लघु)
ये सच है या सपना है (7 दीर्घ)
मालूम नहीं दो अंजाने (8 दीर्घ)
राही कैसे मिल जाते हैं (8 दीर्घ)
फूलों को अगर खिलना हो (7 दीर्घ आ 1 लघु)
वीराने में भी खिल जाते हैं (9 दीर्घ)
आब एहि गीतक मैथिली पैरोडी पढ़ू--
एक रात में दो दो कोबर बनी (9 दीर्घ आ 1 लघु)
एक नैहर में एक सासुर में (9 दीर्घ)
नहिरा के कोबर में डिबिया जरी (9 दीर्घ आ 1 लघु)
ससुरा के कोबर में बलब लगी (9 दीर्घ)
नहिरा के कोबर में पटिया सजी (9 दीर्घ आ 1 लघु)
ससुरा के कोबर में पलंगा सजी (10 दीर्घ)
नहिरा के कोबर में अम्मा मिली (9 दीर्घ आ 1 लघु)
ससुरा के कोबर सासू मिली (8 दीर्घ आ 1 लघु)
नहिरा के कोबर में भाभी मिली (9 दीर्घ आ 1 लघु)
ससुरा के कोबर जेठानी मिली (9 दीर्घ आ 1 लघु)
एहि कोबर गीतमे वर्णित भौतिक साधनपर देखबै तँ खाँटी मैथिल अवस्थाक दर्शन हएत। पहिल कोबरमे कनियाँकेँ डिबिया आ पटिया भेटलै से कोबर निश्चित रूपें नैहराक कमजोर आर्थिक स्थितिक वर्णन करैत छै तँ दोसर कोबर (सासुर बला)मे क्रमशः बल्ब आ पलंगसँ कनियाँक पति ओ ससुरक मजबूत आर्थिक स्थितिकेँ उजागर करैत छैक। संबंधमे अम्मा आ सासु केर वर्णन तँ ठीक मुदा मैथिल समाजक हिसाबें भाउजक संग ननदि हेबाक चाही छलै कारण लड़की अपन सासुरमे जेठ दियादिनी बदला ननदि केर संग सहज रहैत छै से ओ ननदि चाहे अपन हो कि पड़ोसिया बला।
गजलक मतलामे जे रदीफ-काफिया-बहर लेल गेल छै तकर पालन पूरा गजलमे हेबाक चाही मुदा नज्ममे ई कोनो जरूरी नै छै। एकै नज्ममे अनेको काफिया लेल जा सकैए। अलग-अलग बंद वा अंतराक बहर सेहो अलग भ' सकैए संगे-संग नज्मक शेरमे बिनु काफियाक रदीफ सेहो भेटत। मुदा बहुत नज्ममे गजले जकाँ एकै बहरक निर्वाह कएल गेल अछि। ओना उर्दू केर पुरान नज्ममे निश्चित रूपे बहर भेटत मुदा अंग्रेजी प्रभावसँ सेहो उर्दू प्रभावित भेल आ बिना बहरक नज्म सेहो लिखाए लागल। मैथिलीमे बहुत लोक गजलक नियम तँ नहिए जानै छथि आ ताहिपरसँ कुतर्क करै छथि जे फिल्मी गीत बिना कोनो नियमक सुनबामे सुंदर लगैत छै। मुदा पहिल जे नज्म लेल बहर अनिवार्य नै छै आ जाहिमे छै तकर विवरण हम एहि ठाम द' रहल छी-----------------
फिल्म "बाबुल" केर ई नज्म जे कि तलत महमूद ओ शमशाद बेगम जी द्वारा गाएल गेल अछि। नज्म लिखने छथि शकील बदायूँनी। संगीतकार छथि नौशाद। ई फिल्म 1950 मे रिलीज भेलै। एहिमे दिलीप कुमार, नरगिस, सुलताना आदि कलाकार छलथि। एहि नज्मक सभ पाँतिक मात्राक्रम 22-22-22-22-22-22-2 अछि। पूरा नज्म प्रेम-विरह आ गेयतासँ भरल अछि मुदा हरेक पाँतिमे बहरक पूरा पालन भेल छै।ई नज्म ओहन-ओहन लोकक मूँहपर थापर अछि जे कहै छथि जे बहरक पालनसँ कथ्य आ गेयता घटि जाइ छै।
मिलते ही आँखें दिल हुआ दीवाना किसी का
अफ़साना मेरा बन गया, अफ़साना किसी का
पूछो ना मोहब्बत का असर, हाय न पूछो
दम भर में कोई हो गया, परवाना किसीका
हँसते ही न आ जायें कहीं, आँखों में आँसू
भरते ही छलक जाये ना, पैमाना किसीका
एकर तक्ती उर्दू हिंदी नियमपर कएल गेल अछि। ई गीत निच्चा सुनि सकैत छी--
दुभि धान जान हमर फुल पान जान हमर लय ताल भास सरस सुर तान जान हमर प्रत्यक्ष आस रहल अनुमान जान हमर छै सीता राम लखन हनुमान जान हमर कमजोर देह मुदा बलवान जान हमर
पेटक लड़ाइमे हारत के खेतक लड़ाइमे हारत के वचन हुनकर महामिलन केर भेंटक लड़ाइमे हारत के फरिया ने सकलै जीवन भरि नेहक लड़ाइमे हारत के टेटर कहाँ कियो देखि सकल घेघक लड़ाइमे हारत के अनचिन्हारक विरुद्ध समाज जीतक लड़ाइमे हारत के
सभ पाँतिमे 222 222 22मात्राक्रम अछि। दूटा अलग अलग लघुकेँ दीर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि। सुझाव सादर आमंत्रित अछि।
अपने जन्मल इफ आ बट चुप्पे पसरल इफ आ बट किंतु परंतु के फेरमे पित्ते लहरल इफ आ बट संबंधक नकली मुँहपर बहुते चमकल इफ आ बट बाहर बाहर मिलजुल मन भीतर उपजल इफ आ बट
ईगो संदेहक संगे
सजि धजि निकलल इफ आ बट
सभ पाँतिमे 222 2222मात्राक्रम अछि। "मिलजुल मन" हिंदीक एकटा प्रसिद्ध पोथीक नाम सेहो छै। दूटा अलग अलग लघुकेँ दीर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि। सुझाव सादर आमंत्रित अछि।
गजलक मतलामे जे रदीफ-काफिया-बहर लेल गेल छै तकर पालन पूरा गजलमे हेबाक चाही मुदा नज्ममे ई कोनो जरूरी नै छै। एकै नज्ममे अनेको काफिया लेल जा सकैए। अलग-अलग बंद वा अंतराक बहर सेहो अलग भ' सकैए संगे-संग नज्मक शेरमे बिनु काफियाक रदीफ सेहो भेटत। मुदा बहुत नज्ममे गजले जकाँ एकै बहरक निर्वाह कएल गेल अछि। ओना उर्दू केर पुरान नज्ममे निश्चित रूपे बहर भेटत मुदा अंग्रेजी प्रभावसँ सेहो उर्दू प्रभावित भेल आ बिना बहरक नज्म सेहो लिखाए लागल। मैथिलीमे बहुत लोक गजलक नियम तँ नहिए जानै छथि आ ताहिपरसँ कुतर्क करै छथि जे फिल्मी गीत बिना कोनो नियमक सुनबामे सुंदर लगैत छै। मुदा पहिल जे नज्म लेल बहर अनिवार्य नै छै आ जाहिमे छै तकर विवरण हम एहि ठाम द' रहल छी-----------------
फिल्म "हाँ मैंने भी प्यार किया" केर ई नज्म जे कि उदित नारायण जी द्वारा गाएल गेल अछि। नज्म लिखने छथि समीर। संगीतकार छथि नदीम-श्रवण। ई फिल्म 2002 मे रिलीज भेलै। एहिमे अक्षय कुमार, करिश्मा कपूर, अभिषेक बच्चन आदि कलाकार छलथि। एहि नज्मक सभ पाँतिक मात्राक्रम 122-122-122-122 अछि। पूरा नज्म प्रेम-विरह आ गेयतासँ भरल अछि मुदा हरेक पाँतिमे बहरक पूरा पालन भेल छै।ई नज्म ओहन-ओहन लोकक मूँहपर थापर अछि जे कहै छथि जे बहरक पालनसँ कथ्य आ गेयता घटि जाइ छै। एहि नज्मक रुबाइ "तेरे माथे की बिंदिया चमकती रहे...." माहौल बनेबाक लेल देल गेल छै। संगे-संग नज्मक अंतिम पाँति "जा मैंने भी प्यार किया है" फिल्मी सिचुएशनकेँ देखेबाक लेल छै।
तेरे माथे की बिंदिया चमकती रहे
तेरे हाथों की मेंहदी महकती रहे
तेरे जोड़े की रौनक सलामत रहे
तेरी चूड़ी हमेशा खनकती रहे
मुबारक हो तुम को ये शादी तुम्हारी
सदा खुश रहो तुम दुआ है हमारी
तुम्हारे कदम चूमे ये दुनिया सारी
तुम्हारे लिए है बहारों के मौसम
न आये कभी ज़िन्दगी में कोई गम
हमारा है क्या यार हम है दिवाने
हमारी तड़प तो कोई भी न जाने
मिले ना तुम्हें इश्क़ में बेक़रारी
के जन्मो के रिश्ते नहीं तोड़े जाते
सफर में नहीं हमसफ़र छोड़े जाते
न रस्मों रिवाजो को तुम भूल जाना
जो ली है कसम तो इसे तुम निभाना
के हमने तो तन्हा उमर है गुजारी
जा मैंने भी प्यार किया है
हाँ मैंने भी प्यार किया है
एकर तक्ती उर्दू हिंदी नियमपर कएल गेल अछि। ई गीत निच्चा सुनि सकैत छी--
गजलक मतलामे जे रदीफ-काफिया-बहर लेल गेल छै तकर पालन पूरा गजलमे हेबाक चाही मुदा नज्ममे ई कोनो जरूरी नै छै। एकै नज्ममे अनेको काफिया लेल जा सकैए। अलग-अलग बंद वा अंतराक बहर सेहो अलग भ' सकैए संगे-संग नज्मक शेरमे बिनु काफियाक रदीफ सेहो भेटत। मुदा बहुत नज्ममे गजले जकाँ एकै बहरक निर्वाह कएल गेल अछि। ओना उर्दू केर पुरान नज्ममे निश्चित रूपे बहर भेटत मुदा अंग्रेजी प्रभावसँ सेहो उर्दू प्रभावित भेल आ बिना बहरक नज्म सेहो लिखाए लागल। मैथिलीमे बहुत लोक गजलक नियम तँ नहिए जानै छथि आ ताहिपरसँ कुतर्क करै छथि जे फिल्मी गीत बिना कोनो नियमक सुनबामे सुंदर लगैत छै। मुदा पहिल जे नज्म लेल बहर अनिवार्य नै छै आ जाहिमे छै तकर विवरण हम एहि ठाम द' रहल छी-----------------
फिल्म "बहारें फिर भी आएंगी" केर ई नज्म जे कि महेन्द्र कपूर जी द्वारा गाएल गेल अछि। नज्म लिखने छथि कैफी आजमी। संगीतकार छथि ओ.पी.नैयर। ई फिल्म 1966 मे रिलीज भेलै। एहिमे धर्मेंद्र, तनुजा, माला सिन्हा आदि कलाकार छलथि। एहि नज्मक सभ पाँतिक मात्राक्रम 1222-1222-1222-1222 अछि। पूरा नज्म जीवन-दर्शन आ गेयतासँ भरल अछि मुदा हरेक पाँतिमे बहरक पूरा पालन भेल छै।ई नज्म ओहन-ओहन लोकक मूँहपर थापर अछि जे कहै छथि जे बहरक पालनसँ कथ्य आ गेयता घटि जाइ छै।
बदल जाये अगर माली चमन होता नहीं खाली
बहारें फिर भी आती हैं बहारें फिर भी आयेंगी
थकन कैसी घुटन कैसी चल अपनी धुन में दीवाने
खिला ले फूल काँटों में सजा ले अपने वीराने
हवाएं आग भड़काएं फ़िज़ाएं ज़हर बरसाएं
बहारें फिर भी आती हैं बहारें फिर भी आयेंगी
अँधेरे क्या उजाले क्या ना ये अपने ना वो अपने
तेरे काम आएँगे प्यारे तेरे अरमां तेरे सपने
ज़माना तुझसे हो बरहम ना आये राह पर मौसम
बहारें फिर भी आती हैं बहारें फिर भी आयेंगी