घुमि अहाँ कनखीसँ कनि जे ताकि देलहुँ
अपन तन मन एहि पर हम हारि देलहुँ
आब नहि बैकुंठकेँ रहि गेल इच्छा
‘मनु’ अहाँके लेल सगरो बारि देलहुँ
© जगदानन्द झा ‘मनु’
घुमि अहाँ कनखीसँ कनि जे ताकि देलहुँ
अपन तन मन एहि पर हम हारि देलहुँ
आब नहि बैकुंठकेँ रहि गेल इच्छा
‘मनु’ अहाँके लेल सगरो बारि देलहुँ
© जगदानन्द झा ‘मनु’
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