गजल
चलू देखब हे बहीना शिवकेँ
अपन गौरीकेँ सजनमा शिवकेँ
सभक ई खाली भरै छथि झोली
सरण आइब जे सुमरला शिवकेँ
गरीबोकेँ छथि इहे सुननाहर
दियौ जल भरि एक लोटा शिवकेँ
मनुख दानव देव भूत प्रेतो
सगर दुनिया मिल मनेला शिवकेँ
सिया रामोकृष्ण हुनके पुजलनि
बनेलनि सगरो अराध्या शिवकेँ
कृपानिधि कैलाशवासी जय भव
चरण वंदन जग रचैता शिवकेँ
मनोरथ सब पूर्ण करता शम्भू
कहल ‘मनु’ जे मनसँ भजता शिवकेँ
(मात्राक्रम- 1222-2/ 1222-2)
सुझाव, मार्गदर्शन व आलोचना सादर आमंत्रित अछि। की एही मात्राक्रमकेँ बहरे गोविंद मानल ज सकै छै ?
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
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