जखन कखनो जे सोचब हमरा
अपन लअगेमे पायब हमरा
गजल हमर शव्द बनि तनमनमे
कचोटत तँ अहाँ ताकब हमरा
बहुत दुर छी कोनो बाते नै
अपन मोनेमे देखब हमरा
दुनू दू तन एक्के जिनगी छी
अहाँ कखनो नै बिसरब हमरा
अहाँकेँ हम छी कहलौं जे ‘मनु’
कि मुइला बादो मानब हमरा
(बहरे गोविंद, मात्राक्रम : 12 22 22 22 2, सभ पाँतिमे। दोसर शेरकेँ दोसर पाँतिमे दूटा अलग-अलग लघुकेँ दिर्ध मानक छुट लेल गेल अछि)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
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