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मंगलवार, 29 दिसंबर 2009
गजल
चुप्प अछि मनुख गिद्दर भुकबे करतैक
निर्जीव तुलसी-चौरा कूकूर मुतबे करतैक
वीरता सीमित रहि जाए जँ गप्प धरि
लात दुश्मनक छाती पर पड़बे करतैक
विद्रोह आ अधिकार के अधलाह बुझनिहार
आइ ने काल्हि अपटी खेत मे मरबे करतैक
बसात दैत रहिऔ क्रांतिक आगि के
नहुँए-नहु सही कहिओ धुधुएबे करतैक
लिखैत रहू गजल विद्रोहक अनचिन्हार
केओ ने केओ एकरा गेबे करतैक
खोजबीनक कूट-शब्द:
अनचिन्हार,
बिना छंद-बहरक
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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों
nik lagait achhi ahan san utsahi yuvak ke sarthak prayas karait dekh. hridayak kor san aseem shubhkamna!
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