हमर विषपानसँ जुनि होउ प्रमुदित हम ने एसगर छी
अहँ केर शान ू हम ने एसगर छी।
अहँक बारूद हमरा शब्दसँ नहि लड़ि सकत कहिओ
रहू कलमच नुका कहुना कतहु जा, हम ने एसगर छी।
कोनो दुर्भिक्ष, दुर्दिनमे जकर धधरा ने भेलै क्षीण
सभटा से लपट मिलि कए कहैए हम ने एसगर छी।
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शनिवार, 26 दिसंबर 2009
गजल
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देवशंकर नवीन
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