अपने सँ आगि लगबैत छी आ मिझबैत छी
अपने सँ पीबि कए खसैत छी आ सम्हरैत छी
आँखि मे पड़ल नोरक धन लकथक देखू
अपने जमा करैत छी आ लुटबैत छी
शांत पूर्णिमाक राति मे अशांत करेज हमर
अपने सँ हकार दैत छी आ नोंत पुड़ैत छी
एहि टूटल करेज के एक बेर फेर टुटबाक इच्छा
अपने सँ करेज तोड़ैत छी आ कुहरैत छी
के बूझत हमर दुख आ दर्द एहि ठाम
अपने सँ चिन्हार होइत अनचिन्हार रहैत छी
क्या कहूँ... आज की ग़ज़ल पढ़. बहुत ही दार्शनिक भाव समेटे हुए है.
जवाब देंहटाएंमुझे क्रोध आता है स्वयं पर जब मैथिली भाषाज्ञान की कमी के कारण मैं इसके कुछ शेर समझ नहीं पाता हूँ.
धन्यवाद, उत्साह बढ़ेबाक लेल। बेर-बेर मैथिली भाषा के देखैत-पढ़ैत रहबै त अनायास सभ शेर आ पाति बुझबा मे आबि जाएत। मैथिलीक अन्य ब्लाग सेहो छैक, आशा जे ओहू पर जाइत हबैक।
जवाब देंहटाएंसुलभजी, मैथिलीमे कमेन्ट देबै तँ नीक लागत, भाषाज्ञानक कमीक बहन्ना नै चलत। जे अहाँ बाजै छी सएह मैथिली छिऐ आ से लिखि दियौ तँ लेखकोक मेहनति सफल हेतन्हि।
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