आइ हम पढ़लहुँ बाबा बैद्यनाथ कृत " पहरा इमानपर " जे की 1989मे प्रकाशित भेल आ ऐमे कुल मिला तीस टा गजल अछि। धेआन देबै विभक्ति शब्दमे सटल अछि आ ई गजलकारे द्वारा कएल गेल अछि आ हमरा लोकनि सेहो ऐ परम्पराक अनुयायी छी। तीसटा गजलकेँ छोड़ि ऐ संग्रहमे आरसी प्रसाद सिंह, गोपाल जी झा गोपेश, सोमदेव, मार्कण्डेय प्रवासी, जीवकान्त, रमानंद झा रमण, छात्रानंद सिंह झा ओ विभूति आनंद जीक संक्षिप्त टिप्पणी सेहो अछि। ई गजल संग्रह मात्र 32 पन्नाक अछि। आश्चर्य ऐ गप्पक जे 1989मे प्रकाशित भेलाक बाबजूदो ओहि समयक आन गजलकार ( जे की एखनो जीवित आ रचनारत छथि ) ऐ गजल संग्रह कोनो चर्चा नै केने छथि। जँ गौरसँ अहाँ 1989-2008 बला कालखण्ड देखब तँ बहुत कम्मे ठाम हिनक वा हिनकर पोथीक चर्च भेटत आ ओहूमे अधिकांश चर्च अ-गजलकार ( मुदा अपना विधामे प्रतिष्ठित ) रचनाकार द्वारा भेल अछि।
की कारण छै जे एकटा गजलकार दोसर गजलकारक चर्चा नै करए चाहैत अछि। खराप वा नीक बादक विषय भेल मुदा चर्चा तँ हेबाक चाही। हमर गजल एहन, हमर गजल ओहन ऐ तरहँक चर्चा बहुत भेटत मुदा एकटा गजलकार दोसर गजलकारक चर्चा नै करत। आखिर किए ? वा एना कहू जे गजलकारक चर्चा के करत कथाकार की नाटककार आ की आन। जँ ई सभ करबो करता तँ ओहन समयमे जखन की गजल पूर्णरूपेण विकसित भ' क' देखार भ' जाएत तखन। मुदा प्रारम्भिक कालमे तँ स्वयं एक गजलकारकेँ दोसर गजलकारक चर्चा कर' पड़तन्हि, आलोचना आ समीक्षा कर' पड़तन्हि तखने आनो आलोचक सभ गजलपर लिखबाक प्रयास करता। जँ प्रारम्भिके कालमे अहाँ सोचि लेबै मात्र हमरे गजल चर्चा योग्य दोसरक नै तखन अहाँ गजल लीखू की आन कोनो विधा ओकर विकास नै हएत। मात्र पुरने गजलकार सभमे एहन बेमारी छै से नै नव गजलकार सभ सेहो ऐ बेमारीकेँ पोसने छथि। नवमे देखी तँ चंदन झा, राजीव रंजन मिश्र, पंकज चौधरी नवल श्री,जगदानंद झा मनु, अमित मिश्र आदिमे आलोचना-समालोचना-समीक्षा लिखबाक प्रतिभा छनि मुदा ओकरा उपयोग नै करै छथि। आब हमरा लग ई प्रश्न अछि जे जँ ई सभ केकरो चर्च नै करथिन्ह तँ हिनका लोकनिक चर्च के करत। आब ई सभ जरूर कहता जे हम सभ स्वानतः सुखाय रचना करै छी तँए हमर समीक्षाक कोनो जरूरति नै मुदा हमरो बूझल अछि, हुनको बूझल छन्हि आ सभकेँ बूझल छै जे साहित्यकार केखनो स्वानतः सुखाय रचना नै करै छै। केकरो ने केकरो लेल ओ रचना जरूर रचै छै.................खास क' एहन समयमे जखन की हरेक रचनाकार अपना आपकेँ प्रगतिशील आ जनवादी घोषित करै अछि। हमरा बुझने कथित स्वानतः सुखाय बला रचना जनवादी आ प्रगतिशील भैए नै सकैए। कारण प्रगतिशील आ जनवादी रचना जनता लेल लिखल जाइ छै स्वानतः सुखाय लेल नै। हमरा बुझने आने विधाकार जकाँ प्रारम्भिक दौरमे गजलकारकेँ गजलक दिशा बनाब' पडतै। हँ बादमे बहुत सम्भव जे आनो विधाकार सभ गजल आलोचनापर हाथ चलाबथि मुदा शुरू तँ गजलकारेकेँ कर' पड़तै। सभ नव-पुरान गजलकारकेँ ऐ दिशामे सोचबाक चाही। हरेक पोथीमे नीक वा खराप रहै छै मुदा जँ चर्चे नै करबै तँ ओ सोंझा कोना आएत। हमरा जनैत एक गजलकार द्वारा दोसर गजलकारक आलोचना नै करबाक परंपरा जे सियाराम झा सरस जी द्वारा शुरू कएल गेल तकरा चंदन झा, राजीव रंजन मिश्र, पंकज चौधरी नवल श्री, अमित मिश्र आदि नीक जकाँ बढ़ा रहल छथि। आ अंततः ई भविष्य लेल खतरनाक साबित हएत। मुदा ओमप्रकाश जी हमर कथनक अपवाद छथि। ओ जतबा मनोयोगसँ अपन गजल लीखै छथि ततबा मनोयोगसँ ओ दोसरक गजल पढ़ि ओकर आलोचना समीक्षा करै छथि। हमरा जनैत ओमप्रकाश जी मैथिली गजलक पहिल आलोचक-समालोचक-समीक्षक छथि ( बहरयुक्त कालखण्ड बला )। चंदन झा, राजीव रंजन मिश्र, पंकज चौधरी नवल श्री,जगदानंद झा मनु, अमित मिश्र आदि ओमप्रकाश जीसँ प्रेरणा ल' क' कमसँ कम बर्खमे एकटा गजल पोथीक आलोचना लिखथि तँ मैथिली गजल नीक दिशामे आबि जाएत। नव गजलकारकेँ बहुत बेसी दायित्व लेब' पड़तन्हि तखने गजलक दिशा सही हेतै। आ जँ गजलक दिशा सही भेलै तँ बूझू जे गजलकारक दिशा सेहो सही भ' गेलै। ओना हम ई जरूर कह' चाहब जे हरा लोकनि ऐ बहसमे समय नै बरबाद करी जे के आलोचना केलाह आ के नै केला। जे भेलै से भेलै मुदा आबसँ शुरू भ' जेबाक चाही।
आब हमरा लोकनि आबी बाबा बैद्यनाथ जीक कृतिपर। कृति थिक गजल आ तँए हम एकरा तीन भागमे बाँटब--
१) व्याकरण पक्ष २) भाषा पक्ष, आ ३) भाव पक्ष
तँ पहिले देखी व्याकरण पक्ष। ऐ संग्रहक कोनो गजलमे वर्णवृत नै अछि। मने पूरा-पूरी ई संग्रह बेबहर गजल संग्रह थिक। किछु उदहारण देखू। पहिने ऐ संग्रहक पहिल गजलक मतला आ तकर बाद ओकर दोसर शेर देखू----
एक बेर फेरु नजरि शरण हम आयल छी
२१२-१२२-१२-१२२२२२
वा २१२-१२-२२१२-१२२२२२
सौंसे संसारसँ हम सदति सताएल छी
२२२२२२-१२-१२२२
वा २२२२११-२२१-१२२२
ई छल मतला आ एकर दूनू तरहें होमए बला मात्रा क्रम अहाँ सभहँक सामनेमे अछि। कहबाक मतलब जे मतलामे वर्णवृत नै अछि। आब कने एही गजलक दोसर शेर देखी---
सभ दिन हम मोह निशामे सूतल रहलौं
२२२११-२२२२२२२
व्यर्थ-जंजालमे हम जन्म गमायल छी
२१२२-१२२२-११२२२
वा २१-२२१२२१२-१२२२
तँ हरा लोकनि ई देखि रहल छी जे गजलमे वर्णवृत नै अछि मने गजल बहर युक्त नै अछि।
आ ई हालति प्रायः तीसो गजलमे अछि। कोनो गजलक कोनो शेरक दुन्नू पाँतिमे तँ वर्णवृत आबि जाइए मुदा ओकर आगू-पाछू बलामे नै। जेना एकटा उदाहरण देखू। ई उनतीसम गजलक मतला थिक--
भोर भागल जेना दूपहर देखि कs
२१२२-२२२-१२२-११
गाम गामो ने रहलै शहर देखि कs
२१२२-२२२-१२२-११
तँ हमरा लोकनि ई देखलहुँ जे ऐ मतलामे तँ वर्णवृत अछि। मुदा एही गजलक आगूक शेर देखू---
आयत गरमी जखन नहि पानियें पड़त
२२२२-१२२२-१२-१२
हेतै खेती ने छुच्छे नहर देखि कs
२२२२२२२-१२२-१२
आब अहाँ सभ अपने बूझि सकै छिऐ जे गड़बड़ी कत' छै। संग्रहक तीसो गजलमे ई बेमारी छै। किछु लोक कहि सकै छथि जे भ' सकैए जे शाइर ओहि समयमे हिन्दी गजलमे प्रचलित मात्रिक छन्दमे लिखने हेता। तँ हमर कहब जे मात्रिक छन्द गजलक छन्द होइते नै छै आ दोसर गप्प जे ओ उदाहरणमे देल शेरक मात्राकेँ जोड़ि ईहो देखि लेथु जे मात्रिक छै की नै।
व्याकरणमे मात्र बहरे ( वर्णवृते ) नै होइ छै काफिया आ रदीफ सेहो होइत छै। ऐ संग्रहक रदीफ ठीक अछि ( कारण रदीफ अपरिवर्तित होइ छै तँए --) । ऐ संग्रहक अधिकांश काफिया ठीक अछि मात्र किछुए काफिया गलत अछि। आ हमरा बुझैत ओइ समय ( १९८९क ) केर हिसाबसँ ई बहुत बड़का उपल्बधि अछि। जखन की आइ २०१३मे एहन स्थिति अछि जे गजलपर एतेक चर्चाक बादों महान गजलकार सभ काफिया एहन सरल वस्तुमे गलती करै छथि। हमरा हिसाबें बाबा बैद्यनाथ जी ऐ लेल बधाइ केर पात्र छथि। आब देखी किछु गलत काफियाक सूची जे ऐ संग्रहमे अछि---
दोसर गजलक मतला---
झगड़ा कियै बझल छै गामक सिमानपर
पहरा कोना लगयबै लोकक इमानपर
ऐ मतलामे काफिया शास्त्रक हिसाबें काफिया भेल--- " इ " स्वरक संग "मानपर"। मुदा एकर बाद आन-आन शेर सभमे क्रमशः " गुमानपर ", " जानपर", "पुरानपर " ," दलानपर " , " कुरानपर ", " नादान पर", " तूफानपर" आ "कृपाणपर" अछि। (जँ ऐ गजलमे पर विभक्ति नै रहतै तँ काफिया ऐ मतलामे काफिया शास्त्रक हिसाबें काफिया होइतै--- " इ " स्वरक संग "मान" संगे-संग जँ मतलामे "सिमानपर" केर बाद जँ " जानपर" आबि जइतै तखन ऐ गजलक सभ काफिया एकदम्म सही भ' जइतै। आब हमरा विश्वास अछि जे गजलक जानकारक संग पाठक सभ सेहो बुझि गेल हेता जे गड़बड़ी कत' छै )| ठीक इएह गड़बड़ी ऐ संग्रहक गजल संख्या 16,13,19 आ 27मे सेहो अछि। तहिना गजल संख्या दसकेँ देखू। ई गजल बिना रदीफक अछि ( बिना रदीफकेँ तँ गजल भ' सकैए मुदा बिना काफियाक नै )---
पहिल शेर अछि--
क्यो एकरा दयौक नहि टोक
ई अछि बहिरा ओ अछि बौक
आन शेरक काफिया अछि--झोंक, थोक, नोक, आलोक आदि। काफिया शास्त्रक हिसाबें टोक केर काफिया, थोक, नोक, आलोक , आदि। मुदा ऐ शेरमे टोक केर काफिया अछि बौक जे की गलत अछि।
आब आबी कने ऐ संग्रहक भाषा पक्षपर। भाषा तँ ऐ संग्रहक मैथिली थिक मुदा गजल संख्या ६मे काफिया बैसाब' के चक्करमे एहनो काफिया ल' लेलथि जे की हिन्दीक क्रिया अछि आ मैथिलीमे मान्य नै अछि। गजल संख्या ६ केर मतला देखू---
बन्धुवर कोन बाट दुनियाँ जा रहल छै
सत्य कानय झूठ कीर्तन गा रहल छै
ऐ गजलक आन शेरक काफिया सभ अछि-- पा, खा, छा, बा ( मूँह बा ), आ ....
आब ई देखू जे एतेक हिन्दी क्रियामेसँ मात्र टूइएटा क्रिया मैथिलीमे मान्य छै-- जा एवं खा। बाद बाँकी एखन धरि मान्य नै छै। हमरा हिसाबें अग्राह्य हिन्दी क्रियाकेँ प्रयोग करब भाषाकेँ दूषित करबाक चेष्टा अछि। तथाकथित प्रगतिशील गजलकार नरेन्द्र एही प्रकारक भाषाक प्रयोग करै छथि आ ऐ लेल हम ने बाबा बैद्यनाथ जीक समर्थन करै छी आ ने नरेन्द्र जीक। हँ, एतबा कहबामे हमरा कोनो संकोच नै जे नरेन्द्र जी अपन १००मेसँ ९५टा गजलमे एहन भाषा प्रयोग करै छथि तँ बाबा बैद्यनाथ १००मेसँ १टामे। ओना ऐ ठाम ई जानब रोचक हएत जे एहन काफियाक प्रयोग करब अनुचित नै छै बशर्ते की भाषा बदलि जेबाक चाही। जँ नरेन्द्र जी वा बाबा बैद्यनाथ जी ऐ काफिया सभहँक प्रयोग अपन गामक वा पड़ोसी गामक मैथिलीक जोलहा रूपमे गजल लीखि करथि तँ ई काफिया सभ बिल्कुल सही होइत। हम बाबा बैद्यनाथ जीक उपरमे लेल गेल गजल संख्या ६क मतलाकेँ ऐ रूपमे देखा रहल छी---
भाइ केन्ने दुनियाँ जा रहलइय'
साँच कानै झुट्ठा गा रहलइय'
( आन शेर पाठकक कल्पनापर छोड़ल जाइए)
आब अहाँ अपने अनुभव क' सकै छिऐ जे काफिया तँ वएह हिन्दीक छै मुदा फिट एवं प्रवाहपूर्ण भ' गेल छै। शाइरकेँ मात्र बस एतबा देखबाक छै। नै तँ भाषाकेँ दूषित होइत देरी नै लागत। जँ ऐ काफिया सभहँक प्रयोग मैथिली क जोलहा रूपमे वा चंपारण, मुज्जफरपुर, सीतामढ़ी, बेगूसराय, वैशाली एँ झारखंड बाल मिथिला क्षेत्रक भाषाक संग करबै तँ गजलक कल्याण सेहो हेतै आ मैथिलीक सेहो। भाषाक सम्बन्धमे एकटा आर गप्प ऐ संग्रहक अधिकांश गजलमे मैथिलीक चलंत रूप ( मने गाम-घरमे बाज' बला रूप ) प्रयोग भेल अछि जे की मैथिली गजल लेल शुभ अछि। हँ, एतेक अपेक्षा हम बाबा बैद्यनाथ जीसँ जरूर केने छलहुँ जे ओ पूर्णियाक छथि तँ हुनक रचनामे पूर्णियामे बाजल जाइत मैथिलीक स्वरूप रहत । जँ ऐ अधारपर देखी ई संग्रह कने हमरा निराश केलक ( ई हमर व्यतिगत आलोचना अछि, गजलक व्याकरणसँ फराक देखल जाए एकरा )। जेना की उपरे इंगित क' चुकल छी जे गजलकार स्वयं शब्दमे विभक्ति सटेबाक पक्षमे छथि आ हमरा हिसाबें ई मैथिलीक लेल नीक। आ अन्तमे आउ ऐ संग्रहक भाव पक्षपर। मैथिली साहित्यमे " भाव " सभसँ सस्ता छै। जकरा देखू से भाव केर नाङरि पकड़ि साहित्यिक वैतरणी पार करै छथि। तँए ऐ संग्रहक सभ गजलक भाव पक्ष उन्नत अछि। आ ऐ पक्षपर हमर कोनो कथन नै रहत। कारण जखन सभ पक्ष हमहीं कहि देब तखन तँ पाठकक रूचि खत्म भ' जेबाक डर रहत तँए पाठक संग आन सभ गोटासँ अनुरोध जे बाबा बैद्यनाथ कृत " पहरा इमानपर " नामक गजल संग्रह पठथि आ अपन-अपन विचार देथि। जिनका ई पोथी कोनो कारणवश नै उपल्बध भ' रहल छनि से ऐ लिंकपर जा क' एकर पी.डी.एफ फाइल डाउनलोड क' एकरा पठथि https://dbb13891-a-96a2f0ab-s-sites.googlegroups.com/a/videha.com/videha-pothi/Home/Pahra_Iman_Par.pdf?attachauth=ANoY7cqrLAai8QAw-5s2DKPbDbL7tkHkNm21JzW7JHpvcnMWa4eUTBj1upJeipTdGs5Ktg9FNASU7n1e23fURUkX_RGJ71_vvSGXUY_jCYzAoJL4WNpIi5YRY-krxar5gRQH8bbqGR7PJznA3E4jjZ3p_n8mZob_0_evLolQsqCFMQFI0tK9CAQplBo3fiCIwMurjrvuSmUoaMS3fj98oxyqnZnnb65L3iOIQwe3rykiAnOw3nyPYQA%3D&attredirects=0 । ई डाउनलोड बिल्कुल फ्री अछि मने साहित्यमे प्रयोग होमए बला " भाव "सँ बहुत बेसी सस्ता।
कने रुकू, जे गोटा भाव लेल तरसैत हेता तिनका लेल मात्र किछु शेर हम देखाबए चाहब ( उनतीसम गजलक आठम शेर )
राति-दिन बउआ खाली कमेन्ट्री सुनए
कियैक पढ़तै क्रिकेटक लहर देखि कs
ऐ शेरकेँ पढ़ू आ तखनुक संग एखुनका समयकेँ देखू। कोनो फर्क नै भेलैए। पहिने रेडियोमे बैट्री नै देल जाइ छलै क्रिकेटक समयमे आब केबल लाइन कटबा देल जाइ छै। पढ़ाइपर क्रिकेटक की असर छै से एकै शेरमे देखा गेल छथि शाइर। पढ़ाइए किए ई क्रिकेट तँ आन छोट-छोट खेलकेँ सेहो नाश क' देलक। शाइर ऐ शेरक माध्यमे सेहो धेआन दिअबैत छथि। एही प्रकारक ज्वलंत मुद्दा सभकेँ बाबा बैद्यनाथ अपन गजलमे लेने छथि जे की आन शाइरक गजलमे दुलर्भ अछि। भाव केर ऐ चर्चामे ११म गजलक अंतिम शेर कहने बिना पूरा नै हएत---
कहियो जँ मोन पड़य अप्पन अतीत जीवन
बस आँखि मूनि दूनू कनियें लजा लिय
ऐ शेरकेँ पढ़ू आ एकर मतलब निकालू। झटहा फेकेलै कहीं आ लगलै कहीं। इएह भेलै गजलत्व जकरा बारेमे कहल जाइ छै जे गजलक शेर सीधा करेजमे लगै छै। जँ एकैसम गजलकेँ देखी तँ निश्चित रूपसँ ई बाल गजल अछि ( बाल गजल रहितों व्यस्क लेल ओतेबे प्रासंगिक अछि ) आ ओजपूर्ण सेहो अछि-
छोड़ू अपन कपटकेँ आ उदार बनू भैया
गाँधी सुभाष नेहरुक अवतार बनू भैया
अइ संग्रहमे श्रृंगार रसक गजल सेहो अछि जे की पाठकक लेल छोड़ल जाइए। तँ आसा अछि जे आब अहाँ सभ जरूर एकरा पढ़बै।
की कारण छै जे एकटा गजलकार दोसर गजलकारक चर्चा नै करए चाहैत अछि। खराप वा नीक बादक विषय भेल मुदा चर्चा तँ हेबाक चाही। हमर गजल एहन, हमर गजल ओहन ऐ तरहँक चर्चा बहुत भेटत मुदा एकटा गजलकार दोसर गजलकारक चर्चा नै करत। आखिर किए ? वा एना कहू जे गजलकारक चर्चा के करत कथाकार की नाटककार आ की आन। जँ ई सभ करबो करता तँ ओहन समयमे जखन की गजल पूर्णरूपेण विकसित भ' क' देखार भ' जाएत तखन। मुदा प्रारम्भिक कालमे तँ स्वयं एक गजलकारकेँ दोसर गजलकारक चर्चा कर' पड़तन्हि, आलोचना आ समीक्षा कर' पड़तन्हि तखने आनो आलोचक सभ गजलपर लिखबाक प्रयास करता। जँ प्रारम्भिके कालमे अहाँ सोचि लेबै मात्र हमरे गजल चर्चा योग्य दोसरक नै तखन अहाँ गजल लीखू की आन कोनो विधा ओकर विकास नै हएत। मात्र पुरने गजलकार सभमे एहन बेमारी छै से नै नव गजलकार सभ सेहो ऐ बेमारीकेँ पोसने छथि। नवमे देखी तँ चंदन झा, राजीव रंजन मिश्र, पंकज चौधरी नवल श्री,जगदानंद झा मनु, अमित मिश्र आदिमे आलोचना-समालोचना-समीक्षा लिखबाक प्रतिभा छनि मुदा ओकरा उपयोग नै करै छथि। आब हमरा लग ई प्रश्न अछि जे जँ ई सभ केकरो चर्च नै करथिन्ह तँ हिनका लोकनिक चर्च के करत। आब ई सभ जरूर कहता जे हम सभ स्वानतः सुखाय रचना करै छी तँए हमर समीक्षाक कोनो जरूरति नै मुदा हमरो बूझल अछि, हुनको बूझल छन्हि आ सभकेँ बूझल छै जे साहित्यकार केखनो स्वानतः सुखाय रचना नै करै छै। केकरो ने केकरो लेल ओ रचना जरूर रचै छै.................खास क' एहन समयमे जखन की हरेक रचनाकार अपना आपकेँ प्रगतिशील आ जनवादी घोषित करै अछि। हमरा बुझने कथित स्वानतः सुखाय बला रचना जनवादी आ प्रगतिशील भैए नै सकैए। कारण प्रगतिशील आ जनवादी रचना जनता लेल लिखल जाइ छै स्वानतः सुखाय लेल नै। हमरा बुझने आने विधाकार जकाँ प्रारम्भिक दौरमे गजलकारकेँ गजलक दिशा बनाब' पडतै। हँ बादमे बहुत सम्भव जे आनो विधाकार सभ गजल आलोचनापर हाथ चलाबथि मुदा शुरू तँ गजलकारेकेँ कर' पड़तै। सभ नव-पुरान गजलकारकेँ ऐ दिशामे सोचबाक चाही। हरेक पोथीमे नीक वा खराप रहै छै मुदा जँ चर्चे नै करबै तँ ओ सोंझा कोना आएत। हमरा जनैत एक गजलकार द्वारा दोसर गजलकारक आलोचना नै करबाक परंपरा जे सियाराम झा सरस जी द्वारा शुरू कएल गेल तकरा चंदन झा, राजीव रंजन मिश्र, पंकज चौधरी नवल श्री, अमित मिश्र आदि नीक जकाँ बढ़ा रहल छथि। आ अंततः ई भविष्य लेल खतरनाक साबित हएत। मुदा ओमप्रकाश जी हमर कथनक अपवाद छथि। ओ जतबा मनोयोगसँ अपन गजल लीखै छथि ततबा मनोयोगसँ ओ दोसरक गजल पढ़ि ओकर आलोचना समीक्षा करै छथि। हमरा जनैत ओमप्रकाश जी मैथिली गजलक पहिल आलोचक-समालोचक-समीक्षक छथि ( बहरयुक्त कालखण्ड बला )। चंदन झा, राजीव रंजन मिश्र, पंकज चौधरी नवल श्री,जगदानंद झा मनु, अमित मिश्र आदि ओमप्रकाश जीसँ प्रेरणा ल' क' कमसँ कम बर्खमे एकटा गजल पोथीक आलोचना लिखथि तँ मैथिली गजल नीक दिशामे आबि जाएत। नव गजलकारकेँ बहुत बेसी दायित्व लेब' पड़तन्हि तखने गजलक दिशा सही हेतै। आ जँ गजलक दिशा सही भेलै तँ बूझू जे गजलकारक दिशा सेहो सही भ' गेलै। ओना हम ई जरूर कह' चाहब जे हरा लोकनि ऐ बहसमे समय नै बरबाद करी जे के आलोचना केलाह आ के नै केला। जे भेलै से भेलै मुदा आबसँ शुरू भ' जेबाक चाही।
आब हमरा लोकनि आबी बाबा बैद्यनाथ जीक कृतिपर। कृति थिक गजल आ तँए हम एकरा तीन भागमे बाँटब--
१) व्याकरण पक्ष २) भाषा पक्ष, आ ३) भाव पक्ष
तँ पहिले देखी व्याकरण पक्ष। ऐ संग्रहक कोनो गजलमे वर्णवृत नै अछि। मने पूरा-पूरी ई संग्रह बेबहर गजल संग्रह थिक। किछु उदहारण देखू। पहिने ऐ संग्रहक पहिल गजलक मतला आ तकर बाद ओकर दोसर शेर देखू----
एक बेर फेरु नजरि शरण हम आयल छी
२१२-१२२-१२-१२२२२२
वा २१२-१२-२२१२-१२२२२२
सौंसे संसारसँ हम सदति सताएल छी
२२२२२२-१२-१२२२
वा २२२२११-२२१-१२२२
ई छल मतला आ एकर दूनू तरहें होमए बला मात्रा क्रम अहाँ सभहँक सामनेमे अछि। कहबाक मतलब जे मतलामे वर्णवृत नै अछि। आब कने एही गजलक दोसर शेर देखी---
सभ दिन हम मोह निशामे सूतल रहलौं
२२२११-२२२२२२२
व्यर्थ-जंजालमे हम जन्म गमायल छी
२१२२-१२२२-११२२२
वा २१-२२१२२१२-१२२२
तँ हरा लोकनि ई देखि रहल छी जे गजलमे वर्णवृत नै अछि मने गजल बहर युक्त नै अछि।
आ ई हालति प्रायः तीसो गजलमे अछि। कोनो गजलक कोनो शेरक दुन्नू पाँतिमे तँ वर्णवृत आबि जाइए मुदा ओकर आगू-पाछू बलामे नै। जेना एकटा उदाहरण देखू। ई उनतीसम गजलक मतला थिक--
भोर भागल जेना दूपहर देखि कs
२१२२-२२२-१२२-११
गाम गामो ने रहलै शहर देखि कs
२१२२-२२२-१२२-११
तँ हमरा लोकनि ई देखलहुँ जे ऐ मतलामे तँ वर्णवृत अछि। मुदा एही गजलक आगूक शेर देखू---
आयत गरमी जखन नहि पानियें पड़त
२२२२-१२२२-१२-१२
हेतै खेती ने छुच्छे नहर देखि कs
२२२२२२२-१२२-१२
आब अहाँ सभ अपने बूझि सकै छिऐ जे गड़बड़ी कत' छै। संग्रहक तीसो गजलमे ई बेमारी छै। किछु लोक कहि सकै छथि जे भ' सकैए जे शाइर ओहि समयमे हिन्दी गजलमे प्रचलित मात्रिक छन्दमे लिखने हेता। तँ हमर कहब जे मात्रिक छन्द गजलक छन्द होइते नै छै आ दोसर गप्प जे ओ उदाहरणमे देल शेरक मात्राकेँ जोड़ि ईहो देखि लेथु जे मात्रिक छै की नै।
व्याकरणमे मात्र बहरे ( वर्णवृते ) नै होइ छै काफिया आ रदीफ सेहो होइत छै। ऐ संग्रहक रदीफ ठीक अछि ( कारण रदीफ अपरिवर्तित होइ छै तँए --) । ऐ संग्रहक अधिकांश काफिया ठीक अछि मात्र किछुए काफिया गलत अछि। आ हमरा बुझैत ओइ समय ( १९८९क ) केर हिसाबसँ ई बहुत बड़का उपल्बधि अछि। जखन की आइ २०१३मे एहन स्थिति अछि जे गजलपर एतेक चर्चाक बादों महान गजलकार सभ काफिया एहन सरल वस्तुमे गलती करै छथि। हमरा हिसाबें बाबा बैद्यनाथ जी ऐ लेल बधाइ केर पात्र छथि। आब देखी किछु गलत काफियाक सूची जे ऐ संग्रहमे अछि---
दोसर गजलक मतला---
झगड़ा कियै बझल छै गामक सिमानपर
पहरा कोना लगयबै लोकक इमानपर
ऐ मतलामे काफिया शास्त्रक हिसाबें काफिया भेल--- " इ " स्वरक संग "मानपर"। मुदा एकर बाद आन-आन शेर सभमे क्रमशः " गुमानपर ", " जानपर", "पुरानपर " ," दलानपर " , " कुरानपर ", " नादान पर", " तूफानपर" आ "कृपाणपर" अछि। (जँ ऐ गजलमे पर विभक्ति नै रहतै तँ काफिया ऐ मतलामे काफिया शास्त्रक हिसाबें काफिया होइतै--- " इ " स्वरक संग "मान" संगे-संग जँ मतलामे "सिमानपर" केर बाद जँ " जानपर" आबि जइतै तखन ऐ गजलक सभ काफिया एकदम्म सही भ' जइतै। आब हमरा विश्वास अछि जे गजलक जानकारक संग पाठक सभ सेहो बुझि गेल हेता जे गड़बड़ी कत' छै )| ठीक इएह गड़बड़ी ऐ संग्रहक गजल संख्या 16,13,19 आ 27मे सेहो अछि। तहिना गजल संख्या दसकेँ देखू। ई गजल बिना रदीफक अछि ( बिना रदीफकेँ तँ गजल भ' सकैए मुदा बिना काफियाक नै )---
पहिल शेर अछि--
क्यो एकरा दयौक नहि टोक
ई अछि बहिरा ओ अछि बौक
आन शेरक काफिया अछि--झोंक, थोक, नोक, आलोक आदि। काफिया शास्त्रक हिसाबें टोक केर काफिया, थोक, नोक, आलोक , आदि। मुदा ऐ शेरमे टोक केर काफिया अछि बौक जे की गलत अछि।
आब आबी कने ऐ संग्रहक भाषा पक्षपर। भाषा तँ ऐ संग्रहक मैथिली थिक मुदा गजल संख्या ६मे काफिया बैसाब' के चक्करमे एहनो काफिया ल' लेलथि जे की हिन्दीक क्रिया अछि आ मैथिलीमे मान्य नै अछि। गजल संख्या ६ केर मतला देखू---
बन्धुवर कोन बाट दुनियाँ जा रहल छै
सत्य कानय झूठ कीर्तन गा रहल छै
ऐ गजलक आन शेरक काफिया सभ अछि-- पा, खा, छा, बा ( मूँह बा ), आ ....
आब ई देखू जे एतेक हिन्दी क्रियामेसँ मात्र टूइएटा क्रिया मैथिलीमे मान्य छै-- जा एवं खा। बाद बाँकी एखन धरि मान्य नै छै। हमरा हिसाबें अग्राह्य हिन्दी क्रियाकेँ प्रयोग करब भाषाकेँ दूषित करबाक चेष्टा अछि। तथाकथित प्रगतिशील गजलकार नरेन्द्र एही प्रकारक भाषाक प्रयोग करै छथि आ ऐ लेल हम ने बाबा बैद्यनाथ जीक समर्थन करै छी आ ने नरेन्द्र जीक। हँ, एतबा कहबामे हमरा कोनो संकोच नै जे नरेन्द्र जी अपन १००मेसँ ९५टा गजलमे एहन भाषा प्रयोग करै छथि तँ बाबा बैद्यनाथ १००मेसँ १टामे। ओना ऐ ठाम ई जानब रोचक हएत जे एहन काफियाक प्रयोग करब अनुचित नै छै बशर्ते की भाषा बदलि जेबाक चाही। जँ नरेन्द्र जी वा बाबा बैद्यनाथ जी ऐ काफिया सभहँक प्रयोग अपन गामक वा पड़ोसी गामक मैथिलीक जोलहा रूपमे गजल लीखि करथि तँ ई काफिया सभ बिल्कुल सही होइत। हम बाबा बैद्यनाथ जीक उपरमे लेल गेल गजल संख्या ६क मतलाकेँ ऐ रूपमे देखा रहल छी---
भाइ केन्ने दुनियाँ जा रहलइय'
साँच कानै झुट्ठा गा रहलइय'
( आन शेर पाठकक कल्पनापर छोड़ल जाइए)
आब अहाँ अपने अनुभव क' सकै छिऐ जे काफिया तँ वएह हिन्दीक छै मुदा फिट एवं प्रवाहपूर्ण भ' गेल छै। शाइरकेँ मात्र बस एतबा देखबाक छै। नै तँ भाषाकेँ दूषित होइत देरी नै लागत। जँ ऐ काफिया सभहँक प्रयोग मैथिली क जोलहा रूपमे वा चंपारण, मुज्जफरपुर, सीतामढ़ी, बेगूसराय, वैशाली एँ झारखंड बाल मिथिला क्षेत्रक भाषाक संग करबै तँ गजलक कल्याण सेहो हेतै आ मैथिलीक सेहो। भाषाक सम्बन्धमे एकटा आर गप्प ऐ संग्रहक अधिकांश गजलमे मैथिलीक चलंत रूप ( मने गाम-घरमे बाज' बला रूप ) प्रयोग भेल अछि जे की मैथिली गजल लेल शुभ अछि। हँ, एतेक अपेक्षा हम बाबा बैद्यनाथ जीसँ जरूर केने छलहुँ जे ओ पूर्णियाक छथि तँ हुनक रचनामे पूर्णियामे बाजल जाइत मैथिलीक स्वरूप रहत । जँ ऐ अधारपर देखी ई संग्रह कने हमरा निराश केलक ( ई हमर व्यतिगत आलोचना अछि, गजलक व्याकरणसँ फराक देखल जाए एकरा )। जेना की उपरे इंगित क' चुकल छी जे गजलकार स्वयं शब्दमे विभक्ति सटेबाक पक्षमे छथि आ हमरा हिसाबें ई मैथिलीक लेल नीक। आ अन्तमे आउ ऐ संग्रहक भाव पक्षपर। मैथिली साहित्यमे " भाव " सभसँ सस्ता छै। जकरा देखू से भाव केर नाङरि पकड़ि साहित्यिक वैतरणी पार करै छथि। तँए ऐ संग्रहक सभ गजलक भाव पक्ष उन्नत अछि। आ ऐ पक्षपर हमर कोनो कथन नै रहत। कारण जखन सभ पक्ष हमहीं कहि देब तखन तँ पाठकक रूचि खत्म भ' जेबाक डर रहत तँए पाठक संग आन सभ गोटासँ अनुरोध जे बाबा बैद्यनाथ कृत " पहरा इमानपर " नामक गजल संग्रह पठथि आ अपन-अपन विचार देथि। जिनका ई पोथी कोनो कारणवश नै उपल्बध भ' रहल छनि से ऐ लिंकपर जा क' एकर पी.डी.एफ फाइल डाउनलोड क' एकरा पठथि https://dbb13891-a-96a2f0ab-s-sites.googlegroups.com/a/videha.com/videha-pothi/Home/Pahra_Iman_Par.pdf?attachauth=ANoY7cqrLAai8QAw-5s2DKPbDbL7tkHkNm21JzW7JHpvcnMWa4eUTBj1upJeipTdGs5Ktg9FNASU7n1e23fURUkX_RGJ71_vvSGXUY_jCYzAoJL4WNpIi5YRY-krxar5gRQH8bbqGR7PJznA3E4jjZ3p_n8mZob_0_evLolQsqCFMQFI0tK9CAQplBo3fiCIwMurjrvuSmUoaMS3fj98oxyqnZnnb65L3iOIQwe3rykiAnOw3nyPYQA%3D&attredirects=0 । ई डाउनलोड बिल्कुल फ्री अछि मने साहित्यमे प्रयोग होमए बला " भाव "सँ बहुत बेसी सस्ता।
कने रुकू, जे गोटा भाव लेल तरसैत हेता तिनका लेल मात्र किछु शेर हम देखाबए चाहब ( उनतीसम गजलक आठम शेर )
राति-दिन बउआ खाली कमेन्ट्री सुनए
कियैक पढ़तै क्रिकेटक लहर देखि कs
ऐ शेरकेँ पढ़ू आ तखनुक संग एखुनका समयकेँ देखू। कोनो फर्क नै भेलैए। पहिने रेडियोमे बैट्री नै देल जाइ छलै क्रिकेटक समयमे आब केबल लाइन कटबा देल जाइ छै। पढ़ाइपर क्रिकेटक की असर छै से एकै शेरमे देखा गेल छथि शाइर। पढ़ाइए किए ई क्रिकेट तँ आन छोट-छोट खेलकेँ सेहो नाश क' देलक। शाइर ऐ शेरक माध्यमे सेहो धेआन दिअबैत छथि। एही प्रकारक ज्वलंत मुद्दा सभकेँ बाबा बैद्यनाथ अपन गजलमे लेने छथि जे की आन शाइरक गजलमे दुलर्भ अछि। भाव केर ऐ चर्चामे ११म गजलक अंतिम शेर कहने बिना पूरा नै हएत---
कहियो जँ मोन पड़य अप्पन अतीत जीवन
बस आँखि मूनि दूनू कनियें लजा लिय
ऐ शेरकेँ पढ़ू आ एकर मतलब निकालू। झटहा फेकेलै कहीं आ लगलै कहीं। इएह भेलै गजलत्व जकरा बारेमे कहल जाइ छै जे गजलक शेर सीधा करेजमे लगै छै। जँ एकैसम गजलकेँ देखी तँ निश्चित रूपसँ ई बाल गजल अछि ( बाल गजल रहितों व्यस्क लेल ओतेबे प्रासंगिक अछि ) आ ओजपूर्ण सेहो अछि-
छोड़ू अपन कपटकेँ आ उदार बनू भैया
गाँधी सुभाष नेहरुक अवतार बनू भैया
अइ संग्रहमे श्रृंगार रसक गजल सेहो अछि जे की पाठकक लेल छोड़ल जाइए। तँ आसा अछि जे आब अहाँ सभ जरूर एकरा पढ़बै।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें