गजल - तीन
जिनगीक बाट पर कांट गरबे करत
दरदक टीस सं करेज जरबे करत
जिनगी मे भेटत बसंत केर मधुवन
पतझर केर पात मुदा झरबे करत
जिनगी मे जितब हजार मगर तगमा
हरबऽक जोगार दुनिया करबे करत
मेहनति केर घाम सं पाटि लेब जिनगी
सफलता केर बखारी त भरबे करत
कर्मठ बनल रहबै जौ सदिखन ‘राम’
दरिद्रता केर दानव त मरबे करत
(सरल
वार्णिक बहर) वर्ण
- १६
© राम
कुमार मिश्र
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