गजल-4
जौं बूझी तऽ जहरी जर्दा जड़ा रहल
अछि लोकक जिनगी
सिगरेट चीलम गांजा गला रहल अछि लोकक जिनगी
चौक-चौबट्टी दारु केर भट्टी बनल बिनाशक बीखशाला
चिखना कटिया तारी में लुटा रहल अछि लोकक जिनगी
रंग-बिरही पुरिया पाकिट धऽ नवतुरियाक रंग देखू
चिबा-चिबा बिख गुटका चिबा रहल अछि लोकक
जिनगी
नोतल केंसर आबि रहल छै फोंक करै लेल जिनगी कऽ
धन-संम्पति लुटा लुटा कना रहल अछि लोकक जिनगी
नशाखोरक जिनगी देखियौ भरल जुआनी बूढ बनल
दांत टूटि आ डांड़ लीबि लिबा रहल अछि लोकक जिनगी
फेर न भेटत जिनगी बाबू जौं एकरा बरबाद करब
तोरियौ नशाक जाल जे फंसा रहल अछि लोकक जिनगी
लय संकल्प करू दृढ़ निश्चय फेकी सभटा दुर्गुन ‘राम’
देखू सोचू बूझू कोनाकऽ हरा रहल अछि लोकक जिनगी
वर्ण – २२
तिथि: ३१/१०/२०१३
© राम कुमार मिश्र
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