गुरुवार, 28 नवंबर 2013

बहुत किछु बुझबैए : कियो बूझि नहि सकल हमरा

प्रस्तुत अछि चंदन झा जीक ई आलोचना


बहुत किछु बुझबैए : कियो बूझि नहि सकल हमरा
एकैसम शताब्दीक पहिल दशककेँ, मैथिली गजलक इतिहासमे, जँ नवजागरण काल कहल जाए तऽ कोनो अतिशयोक्ति नहि होयत एहि दशकमे मैथिली गजल अपन नवस्वरूप नवीन छटा' संग साहित्य-प्रेमी लोकनिक सोझाँ उपस्थित भेल अछि एहि समयावधिमे मैथिली गजलकेँ अपन फराक गजलशास्त्र भेटलैक जे खाली गजले नहि अपितु रुबाइ, कता, नात आदिक रचना हेतु सेहो व्याकरणिक पृष्ठभूमि तैयार केलक गजलशास्त्र मैथिली गजलकेँ अरबी, फारसी उर्दू गजलक समकक्ष पहुँचेबामे सहायक सिद्ध भऽ रहल अछि मैथिली गजल-लोक' परिधिकेँ विस्तृत सुदृढ़ बना रहल अछि एहिसँ गजल कहबाक (लिखबाक)व्याकरण सम्मत मानक तैयार भेल अछि जाहिसँ सचेष्ट लोक, गजल कहबाक शैली शिल्पक ज्ञान सहजतापूर्वक अर्जित कऽ सकैत छथि
एहि सूचनाक्रांतिक युगमे इंटरनेट मैथिली गजल गजलशास्त्रकेँ मैथिली-साहित्यप्रेमी धरि पहुँचेबामे महत्वपूर्ण माध्यम साबित भऽ रहल अछि संगहि एकर  विभिन्न पक्षपर चर्चा-परिचर्चाक अत्यंत सुभितगर मंच उपलब्ध करा रहल अछि  "अनचिन्हार आखर" नाम्ना ब्लाग मैथिली गजलक विकास विस्तारक हेतु पूर्णतः समर्पित अछि नेपालमे सेहो मैथिली गजलक एहि नवस्वरूप केर विकासक हेतु किछु एहने सन प्रयास भऽ रहल अछि कुल मिलाकऽ कही जे पछिला दसेक बरखसँ किछु सजग नवतुरिया मैथिल साहित्यकार लोकनि, गजल प्रेमी लोकनि , मैथिली गजल'  भाषायी शिल्पगत विकासक मादेँ अभियान चलौने छथि अभियान एकटा ऐतिहासिक प्रयास थिक
वर्तमान समयमे मैथिलीक नवतूरक साहित्यकार लोकनि मैथिली गजलक सर्वांगीण विकास हेतु प्रतिबद्ध छथि एकदिस जतय सभ नव-नव गजलकार लोकनिकेँ प्रशिक्षित-प्रतिष्ठित करबामे लागल भेटैत छथि ततहि दोसर दिस पूर्ववर्ती गजलकार सभक रचना संसारक जोत-कोड़क तकतान सेहो हिनका सभकेँ रहैत छनि पूर्वक एहि रचना सभसँ उपयोगी-अनुपयोगी तत्वकेँ बेरा रहल छथि प्रतिफलस्वरूप मैथिली गजलक विभिन्न ऐतिहासिक पक्षसँ मैथिली साहित्यप्रेमी लोकनि अवगत भऽ रहल छथि नवतुरिया साहित्यकार वर्गकेँ एहिसँ भविष्यक दिशा-निर्देश सेहो भेटिए जाइत छनि तखन एहि नवतुरिया अभियानी लोकनिकेँ अपन पूर्ववर्तीक कृतिक ( गजल / गजलेसन किछु ) समीक्षा करैत काल एतबा अवश्य ध्यान राखय पड़तनि जे हुनकर सभक व्यक्तित्वक मादेँ कोनो तरहक कठोर कि अपमानजनक शब्दावलीक प्रयोगसँ बाँचथि कोनो तरहक पूर्वाग्रहसँ बाँचथि संगहि हिनकर सभक रचनामे जे-जतबा सकारात्मक पक्ष अछि तकर बेसी चर्चा-परिचर्चा करथि एहिसँ एकटा सकारात्मक वातावरण बनत गजल आर लोकप्रिय होयत गजलकार आर बेसी सम्मानित हेताह गजलक परंपरा आर सुदृढ़ हेतैक एतय एहि पूर्ववर्ती साहित्यकार वा एहि पिढ़ीक साहित्य प्रेमी लोकनिकेँ सेहो कनेक उदारता देखबय पड़तनि कदाचित जँ कोनो कटुवचन नवतूर अपन पूर्ववर्ती' प्रतिएँ कहैत अछि  तऽ तकर पाछाँ सेहो गजलक विकासक प्रति हिनकर सभक मोनक निष्ठेक प्रबलता रहैत अछि अतः सकारात्मक वातावरणक निर्माण हेतु सभ पक्षकेँ संयमित हेबय पड़तनि लक्ष्य साधब तखने संभव होयत
बीसम शताब्दीक प्रारंभहिमे पं.जीवन झा अपन सुन्दर संयोग” (“रचनामे छपल डॉ. रामदेवझा' आलेख"मैथिलीमे गजल" अनुसार १९०४ . मे) नाटकमे मैथिली गजल' इतिहासक श्रीगणेश कएलनि तदुत्तर मुंशी रघुनंदन दास, यदुनाथझा 'यदुवर', कविवर सीताराम झा, कविचूडामणि मधुप , आदि एहि परंपराकेँ आगाँ बढौलनि एहि प्रारंभिक गजल सभमे जे सभसँ विशिष्ट तत्व अछि से थिक जे  प्रायः अधिकांश  आरंभिक गजल बहर, काफिया रदीफ संबंधी नियमक अनुपालनमे  अरबी बहर (छंद) विधानक अत्यंत लगीच बुझना जाइत अछि खासकऽ हिनकर सभक गजल केर प्रत्यके चरणमे (शेरमे) अनुप्रास-योजना(काफिया रदीफ) केर विलक्षण प्रयोग भेटैत अछि  उदाहरणस्वरूप १९३२मे मैथिली साहित्य समिति, द्वारा काशीसँ प्रकाशित "मैथिली-संदेश"मे मधुप जीक गजल देखल जा सकैए :-
मिथिलाक पूर्व गौरव नहि ध्यान टा धरै छी
सुनि मैथिली सुभाषा बिनु आगियें जड़ै छी

सूगो जहाँक दर्शन-सुनबैत छल तहीँ ठाँ
हा आइ "आइ गो" टा पढ़ि उच्चता करै छी

हम कालिदास विद्या-पति-नामछाड़ि मुँहमे
बाड़ीक तीत पटुआ सभ बंकिमे धरै छी

भाषा तथा विभूषा अछि ठीक अन्यदेशी
देशीक गेल ठेसी की पाँकमे पड़ै छी?

यत्र-तत्र देखू अछि पत्र सैकड़ो टा
अछि पत्र मैथिलीमे एको तैं डरै छी
(2212-122-2212-122)
कहबाक प्रयोजन नहि जे मैथिली गजल अपन बाल्यकालमे बेस सुरेबगर आकर्षक छल तकर एकटा इहो कारण भऽ सकैत अछि जे मैथिली गजलक जखन बाल्यावस्था छलैक तखन मिथिलामे फारसी एकटा महत्पूर्ण रोजगारपरक भाषा छल संभवतः तकरे प्रभावसँ मैथिलीमे गजलक उत्पति भेल फारसी कचहरीक दस्ताबेजक भाषा, हिसाब-किताबक भाषाक रूपमे प्रचलित छल महाकवि लालदास उपन्यासकार जीवछ मिश्र फारसी' शिक्षा ग्रहण कएने रहथि एहिना मिथिलाक एकटा नमहर वर्ग फारसी पढ़ैत-लिखैत होयत ताहिमे कोनो दू-मत नहि हेबाक चाही तखन पं. जीवन झा कि कविवर सीताराम झा वा मधुप जी 'कि आन-आन विद्वान लोकनि जे गजल लिखबाक प्रयोग केलनि, फारसीसँ विधिवत शिक्षित छलाह वा नहि से नहि जानि मुदा, जँ नहियो शिक्षित हेताह तैयो विद्वानक बिच रहैत-रहैत एहि भाषा' शिल्प विधानसँ परिचित भेल हेताह, तकर प्रयोग अपन-अपन गजलमे कएने हेताह, तकरा अस्वभाविको नहि मानल जा सकैछ  एहि संबंधमे प्रायः जुन १९८४ .मे "रचना"मे छपल डॉ. रामदेवझा अपन आलेख "मैथिलीमे गजल"मे लिखैत छथि-
" गजलक मार्मिकता लयात्मकता कवि हृदयकेँ सहजे आकृष्ट करैत अछि मैथिलीयो कवि लोकनि गजल दिश आकृष्ट भेलाह......अठारहम उनैसम शताब्दीमे गजलक रचना गानक केन्द्र लखनउ,बनारस,इलाहाबाद, दिल्ली, इत्यादि बनि गेल छल उनैसम शताब्दीक उत्तरार्द्ध बीसम शताब्दीक प्रारम्भिक चरणमे पारसी थियेटरक जे प्रवाह चलल, ओही संग गजल सेहो सामान्य लोककेँ श्रुतिगोचर भेल एहन मैथिली कवि जे कोनहु रूपमे फारसी उर्दूसँ संपृक्त छलाह अथवा उपर्युक्त परिगणित केन्द्रमे प्रवासमे रहबाक अवसर प्राप्त एलनि, से सब मैथिलीमे गजल-रचनाक प्रयोग करबाक चेष्टा कयलनि "
किंतु, मैथिली गजलक बाल्यकाल केर शब्द, शिल्प स्वरूप' मर्यादासँ बान्हल सुसंस्कारी स्वभाव एकर किशोरावस्था अबैत-अबैत जेना अल्हड़पनमे बदलि गेल जतय एकर भाषायी व्याकरणक स्वरुपक निर्धारण हेबाक चाही छलैक ततय घोषित भेल जे मैथिलीमे गजल कहब (लिखब) संभवे नहि वैकल्पिक रूपेँ गीतल कहि एकटा नव काव्य संरचना प्रतिपादित कएल गेल दुर्भाग्यवश एहि घोषणा' समर्थनमे सेहो मैथिली साहित्यकार लोकनिक पाँत ठाढ़ भेल तखन एहि मान्यताक विरुद्ध सेहो किछु प्रगतिशील साहित्यकार लोकनि ठाढ़ भेलाह मुदा, इहो लोकनि अरबी बहर-विधान मैथिलीक पारंपरिक छंदशास्त्रक अनुशीलन कए एहि दुनूक मध्य कोनो तरहक सामंजस्य स्थापित नहि कए सकलाह फलतः मैथिली गजल व्याकरणहीन रहल हिनकर सभक गजल काफिया मिलानी धरि सीमित भऽ गेल  एहि संबंधमे उक्त आलेखमे डॉ. रामदेव झाक उक्ति देखू-
"हालक विगत किछु वर्षमे गजल-रचनाक प्रवृतिक पुनर्जन्म भेल अछि से एकटा प्रवाह अथवा फैसनक रूपमे परिवर्तित भऽ गेल अछि एहि क्षेत्रमे किछु प्रौढ़ विशेषतः युवा पीढ़ीक कवि गजल रचना करैत जा रहल छथि.........हिनका लोकनि गजलमेसँ किछुमे अवश्ये गजलत्व अछि परन्तु अधिकांशकेँ गजल-शैलीमे रचित गीत-मात्र कहल जाय तँ अनुपयुक्त नहि होयत  "
उत्तम भावाभिव्यक्तिक अछैतो गजल सभ वर्तमान गजलशास्त्रक आधारपर निंघेस साबित होइत अछि एहीठामसँ मैथिली गजलक दू पिढ़ी' बीच वैमनस्यता सेहो उपजैत अछि ओना एहिमे किछु गजलकार एहनो छथि जे स्वयं स्वीकार करैत छथि जे उचित छंदशास्त्रक अभावमे हुनकर सभक रचनामे एहन त्रुटि रहि गेल मुदा, किछु एहनो व्यक्ति छथि जे एखनो जिद्द अरोपने छथि गजलक नव-विधानकेँ स्वीकार करबा लेल तैयार नहि छथि एहिठाम एहि पिढ़ी' गजलकार' कृतित्वक आलोचनाक मादेँ नवतूरक समालोचककेँ इहो ध्यान रखबाक चाही जे एहि समयमे मैथिलीमे गजल संबंधित व्याकरण उपलब्ध नहि छल संभव जे किछु साहित्यकार वर्ग जीवन झा, सीताराम झा आदिक गजलकेँ प्रेरक स्रोततऽ मानैत रहलाह मुदा, अरबी बहरक प्रयोगसँ मात्र एहि हेतु परहेज कएने रहलाह जे सिद्धांत आन भाषासँ आयातित होयत कारण जे कोनो होउ मुदा परिणाम एतबे अछि जे उत्कृष्ट विषय-वस्तुक अछैतो मैथिली गजल विश्वक आन-आन भाषा' गजलक समकक्षी नहि बनि सकल एक सय बरखक इतिहासक अछैतो मैथिली' अंगनामे अपरिचिते जकाँ जिबैत रहल तखन एहि पूर्ववर्ती (गजलक पक्षधर) सभक एतबा योगदान ' नहि नकारल जा सकैत अछि जे सभ मैथिली-गजलकेँ जियौने रहलाह मैथिलीमे गजलक संभावना बचल रहल
एक सय बरखक इतिहासक बलपर मैथिलीमे गजल कहबाक इएह बाँचल संभावना  "अनचिन्हार युग" अभियानी प्रयासक एकटा सुंदर प्रतिफल थिक ओमप्रकाश जीक पहिल गजल-संग्रह-"कियो बूझि नहि सकल हमरा"  एहि शताब्दी' आरंभहिसँ गजलक विकासक मादेँ जे विरार लगाओल गेल,  पोथी तकरे उपजा थिक नेनपनहिसँ साहित्यक प्रति रूचि रखनिहार गजलकार ओमप्रकाशजी एहि पोथीक भूमिकामे स्वयं गछैत छथि जे मैथिली गजल' विकासे हिनक साहित्य-कर्मक प्राथमिकता छनि हिनक साहित्य-साधनाक मूल साध्य गजले थिकनि गजलक प्रति हिनकर इएह लगावक परिणाम थिक जे अपन एहि संग्रहक माध्यमे मैथिली गजलकेँ उच्चतर स्थानधरि पहुँचेबाक हेतु प्रयासरत बुझना जाइत छथि हिनकर एहि संग्रहमे एक्कहि संग अनेक विषय-वस्तु यथा-सिनेह,संवेदना,श्रृंगार-सौंदर्य,सामाजिक सरोकार, चिंतन, संघर्षक स्वर, आदि समेटल गेल  अछि देश, काल परिवेशजन्य स्थिती-परिस्थितिक सहज अटावेश एहि संग्रहक हरेक मिसरा (पाँति ),हरेक शेर (चरण) मे भेटैत अछि
परिवर्तन सांसारिक नियम थिक समयक परिवर्तनशील स्वभावकेँ जे नहि पकड़ि पबैत अछि सएह समयक संग नहि चलि पबैत अछि पछड़ि जाइत अछि आम जनमानस भलेँ समय एहि गतिकेँ नहि पढ़ि पबैत हो मुदा एकटा संवेदनशील हृदय एकटा सूक्ष्मदृष्टि, एकटा साकांक्ष मानव, एकटा मसिजीवीसँ परिवर्तन-धर्मिता छपित नहि रहि सकैत अछि एकटा साहित्यकारक सोझाँ ओकर असली रूप देखार भइए जाइत छैक ओमप्रकाश जीक कलम समयक चरित्रकेँ उघार करबामे सक्षम छनि वर्तमान समयक चालिकेँ अकानति कहैत छथि जे युग मात्र संघर्षक युग नहि थिक बल्कि युग संघर्षक बलपर अधिकार प्राप्तिक युग थिक हुनकर मानब छनि जे आब लोक-चेतना बढ़ि रहल अछि तेँ व्यवस्थाकेँ सेहो सचेत रहय पड़तैक युग जनता' थिक आब जनते जनार्दन अछि लोककेँ आब खैरात नहि चाही ओकरा अपन कर्मक प्रतिफल चाही प्रतिफलो एहन जाहिमे ओकर स्वाभिमान, ओकर सम्मान नुकाएल होइ ओकरा बोनिमे आत्मीयतासँ भरल उपहार चाही ओमप्रकाश जी एही युगीन जनभावनाकेँ स्वर दैत कहैत छथि-
भीख नहि हमरा अपन अधिकार चाही
हमर कर्मसँ जे बनै उपहार चाही
कान खोलिकऽ राखने रहऽ पड़त हरदम
सुनि सकै जे सभक से सरकार चाही
व्यवस्था लग बल होइत छैक मुदा ओकरा बल जनते-जनार्दनसँ भेटैत छैक व्यवस्था कतबो बलगर होउ मुदा जनबलसँ बलिष्ठ नहि भऽ सकैत अछि कोनो सरकारी मिसाइलमे एतबा ताकति नहि होइत छैक जे भूखक ज्वालाक सामना कऽ सकत तेँ शाइर ओमप्रकाश एहि बदलल युगमे व्यवस्थाकेँ चेतबैत छथि -
धरले रहत सभ हथियार शस्त्रागार
बनलै मिसाइल भूखे झमारल लोक
लोकतंत्रमे लोकेक बलक प्रताप थिक जे कियो राजभवन पहुँचि जाइत अछि तऽ कियो सड़कपर बौआइत रहैत अछि सत्ता-परिवर्तन एही "लोक" हाथमे रहैत छैक व्यवस्था परिवर्तन एहि "लोक" हथियार थिक तेँ अबोध लोककेँ भने किछु काल राजभवन' परिधिसँ बाहर राखल जा सकैत अछि मुदा, जखन इएह लोक जागि जाइत अछि तखन स्थिती बदलि जाइत छैक लोकक तागतिकेँ बिसरबाक नहि थिक ओमप्रकाश एहिमादेँ राजभवनमे बैसल अकर्मण्य सभकेँ स्मरण करबैत छथि-
लोकक बलेँ राजभवन गेलौ बिसरि
खाली करू आबैए खिहारल लोक
व्यवस्थाक अकर्मण्यताक चलतेँ सगरो अराजकता व्याप्त अछि भौतिकताक आगाँ नैतिकता नतमस्तक भेल अछि   भ्रष्टाचार, महगी, बेरोजगारीक समस्यासँ बेहाल जनताक लेल मृत्यु सभसँ सुलभ उपाय बनि गेल अछि जीवन कठिन विपन्नताक मारल, हकन्न कनैत, श्रमजीवी' पसेनाक मोल आब दालि-रोटीक दामसँ कमि गेलैए आम जन-जीवनक एहि मनोभावकेँ अपन दू गोट मिसरामे स्वर दैत छथि ओमप्रकाश जी-
जीनाइ भेलै महँग एतय मरब सस्त छै
महँगीक चाँगुर गड़ल जेबी सभक पस्त छै
महगीक मारिसँ पाबनि-तिहारक, उत्सव-उल्लासक, हँसी-हहारो, निपत्ता भऽ गेल अछि कोनो सामाजिक,आर्थिक कि राजनीतिक समस्यासँ किछु खास जाति-वर्गेक लोक प्रभावित नहि होइत अछि बल्कि एकर मारि समाजक, सभ वर्गक लोकपर परैत छैक एहनामे जाति-पाति, गोत्र-मूल, अगड़ा-पिछड़ाक जोर-घटाओ,पंचग्रासक ओरियान केर गणितसँ गतानल मनुक्ख लेल कोन काजक, कोन महत्वक ? ओकर  कोनो धर्मगुरू कि महाज्ञानी लोकनिक ज्ञानसँ सेहो पेट नहिए भरतैक   तेँ ओमप्रकाश जी कहैत छथि-
भूखल पेटक गणितमे ओझरायल लेल ज्ञान की
गरीबक सभदिन एक्के मोहर्रम की रमजान की
गरीबी' बात करयबला, अपनाकेँ गरीब-गुरबाक शुभचिंतक कहयबला जखन सत्ता-सिंहासन धरि पहुँचि जाइत छथि तऽ हुनकर अभिष्ट गरीबी उन्मूलन कि गरीबक कल्याण नहि रहि जाइत छनि जनताकेँ जनार्दन कहि सत्ताधरि पहुँचिते स्वयं जनार्दन बनि जाइत छथि जनकल्याण माने अपन सर-कुटुम्बक कल्याण बूझैत छथि जनताक कोष लुटबामे लागि जाइत छथि व्यवस्थाक गत्र-गत्रमे भ्रष्टाचारी घून पैसल भेटैए भ्रष्टाचारक नित नव-नव रेकार्ड बनैए जनता बाध्य भऽ कहैए-
कर जोड़ै छी सरकार आब रहऽ दिऔ
कते करब भ्रष्टाचार आब रहऽ दिऔ
भूखक ज्वाला, अभावक तापक प्रताप थिक जे शोषित समाज अभिजात्यक मोकाबिला ठाढ़ भऽ जाइत अछि कहबीयो छैक-मरता, क्या नहि करता ? समाजक दू वर्गक मध्य जे दूरी बनि गेल छैक तकरे परिणाम थिक वर्ग-संघर्ष भूख अर्थाभाव जनित एहि समस्या दिस इशारा करैत अछि ओमप्रकाश जीक दू टा मिसरा-
मिझबै लेल पेटक आगि देखू पजरि रहल छै आदमी
जीबाक आस धेने सदिखन कोना मरि रहल छै आदमी
जाहि भूमिपर सिया सन धिया भेलीह आइ ताहि भूमिपर दहेज रूपी दानव "मैथिली" प्राण हरण कए रहल अछि मैथिली मूकदर्शक बनल छथि जनक कानि रहल छथि हुनका चिंता पैसल छनि जे हुनकर बेटीक विवाह कोना हेतनि-
बिना दाम नै वर केर बाप हिलैत अछि
धरमे गरीबक सदिखन अतिचार रहैत छैक
मात्र भूख, बेरोजगारी, महगी कि भ्रष्टाचारे जीवनक बाटपर समस्या नहि अछि बल्कि एकरा अलावे कतेको कूरीति सेहो अछि जे लोककेँ विकास-पथपर बढ़बामे बाधक बनल अछि हम सभ जाहि भू-भागक छी ताहि मिथिलाक गौरवशाली अतीत रहल अछि एहि धरतीपर सामाजिक सद्भाव नारीक सम्मानकेँ सभदिन प्राथमिकता देल गेल मुदा, वर्तमान समयमे हम सभ जाति-पातिमे अपनाकेँ बँटने खण्ड-खण्ड भेल छी आपसी प्रतिस्पर्धामे अपने समांगसँ ईर्ष्या होइत अछि अपनहि भाइ-बन्धुक अनिष्ट सोचयमे श्रम-संसाधन उत्सर्ग करय लगैत छी परिणाम भेल अछि जे हम सभ असक्त भेल दहो-दिस छिछिया रहल छी जनक नगरीक बाग उजरि गेल अछि ओमप्रकाशजीकेँ सेहो बात अज्ञात नहि छनि तेँ कहैत छथि-
हक बढ़ै केर छै सबहक नै छीनू
बढ़त सभ गाछ तखने बाग निखरै छै
लोक अपन-आनक द्वंदमे फँसल अछि आधुनिकताक नामपर पसरल भौतिकताक चकचौन्हमे लोक तेनाने आन्हर भऽ गेल अछि जे आब मोनक मर्मकेँ बूझबाक सामर्थ्य ओकर दृष्टिमे नहि बाँचल छैक ओकरा मात्र बाहरी रंग-रोगन धरि सूझैत छथि मानवीय मूल्यक ह्रास संबंधक जड़ताक टीस गजलकार ओमप्रकाश जीक करेजासँ सेहो बहराइए जाइत छनि -
कहू की कियो बूझि नै सकल हमरा
हँसी सभक लागल बहुत ठरल हमरा
मुदा, एतेक दुख-दरिद्रा, संकट, समस्या संघर्षक अछैतो ओमप्रकाश जी जिनगीक डेन नहि छोड़ैत छथि बल्कि निरंतर लक्ष्य दिस बढ़ैत रहबाक, सकारात्मक सोच रखबाक आह्वान करैत छथि-
जिनगीक गीत अहाँ सदिखन गाबैत रहू
एहिना राग अहाँ अपन सुनाबैत रहू
जीवनमे जिवंतता मानवताक डेन धऽ चलैत काल गजलकार गजलक शास्वत मर्म माने प्रेमक तन्नुक तागकेँ सेहो पकड़ने छथि करेजक इएह प्रेमक भावसँ श्रृंगार छिटकैत अछि जे हिनकर एकटा सूच्चा गजलकार हेबाक परिचिति गढ़ैत अछि -
चमकल मुँह अहाँक इजोर भऽ गेलै
अधरतिएमे लागल जेना भोर भऽ गेलै
ओमप्रकाश जी एहि पोथीक भूमिकामे लिखने छथि जे हिनकर पिता समाजवादी विचारधाराक समर्थक छलखिन तऽ माता उदारवादी सोच रखनिहारि हिनकर एहि संग्रहक रचना सभमे एहि दुनू विचारधाराक सम्मिश्रण भेटैत अछि जे स्वाभाविके अछि संगहि सामाजिक सरोकारसँ संबंधित हिनकर अपन चिंता-चिंतन सेहो भेटैत अछि
गजलकार ठिक्के कहैत छथि जे संवेदनहीन हृदयसँ गजल नहि बहरा सकैत अछि हमतऽ कनि बढ़िकऽ कहब जे संवेदनहीन हृदयसँ साहित्ये नहि बहरा सकैत अछि संवेदनहीन हृदयकेँ साहित्य बुझबाक क्षमतो नहि रहैत छैक तेँ गजल सेहो नहि बुझि सकैत अछि प्रायः एहने सन किछु भाव गजलकारक मोनमे सेहो रहल हेतनि तेँ अपन एहि पोथीकेँ नाओं देलनि-कियो बूझि नहि सकल हमरा "  मुदा, एकटा संवेदनशील करेजा राखयबलाक हेतु एहि पोथीमे बुझबाक हेतु बहुत रास सामग्री अछि गजलक विशेषताक मादेँ ओमप्रकाश जीक इहो कहब उचिते छनि जे -व्याकरण मानवीय संवेदना दुनू एकर दू गोट पहिया थिक तेँ गजलक रचना काल नहि एकर व्याकरण पक्षकेँ नकारल जा सकैत अछि नहिए एकर भाव पक्षकेँ
गजलक परिप्रेक्ष्यमे व्याकरणक जे महत्ता ओमप्रकाश जी बुझैत छथि तकर छाप हिनक एहि संग्रहमे सेहो भेटैत अछि एहि संग्रहमे संकलित कुल सतासी गोट गजलमे चौबीस टा गजल अरबी बहर आधारित अछि एवं शेष तिरसठि टा गजल सरल वार्णिक बहरक अनुसार लिखल गेल अछि एकर अलावे आठ टा रूबाइ दू टा कता संग्रहित अछि हरेक गजलक निच्चामे तकर बहरक विवरण सेहो देल गेल अछि जाहिसँ पाठककेँ बहरक संरचनाक भाँज सहजहिँ लागि जेतनि परोक्ष रूपेँ बहरक नामोल्लेख ओहि गजलकार सभकेँ एना देखा रहल अछि जिनकर सभक मान्यता छलनि जे मैथिलीमे गजल भइए नहि सकैत अछि, संगहि एहि बातकेँ स्थापित कए रहल अछि जे मैथिलीमे गजल सेहो अरबी बहर-विधान आधारित गजल बड़े शानसँ कहल जा सकैत अछि एहिठाम डॉ. रामदेवझा' पूर्वोल्लेखित आलेख' अंतिम अंश जाहिमे कहैत छथि-
" जहिना समदाउनिक रचना हिन्दी-उर्दूमे असाध्य वा कष्ट साध्य अछि तहिना मैथिलीयोमे गजल-रचनाक स्थिती मानल जा सकैछ मुदा एकरा 'इत्यलम्' नहि मानल जा सकैछ कोनो प्रतिभाशाली कवि मैथिलीमे उपर्युक्त मान्यताकेँ अन्यथा सिद्ध कए सकैत अछि " केँ ओमप्रकाश जी शत-प्रतिशत प्रमाणित करैत छथि अपन प्रतिभासँ सिद्ध कएलनि अछि जे मैथिलीयोमे उर्दू-फारसीए जकाँ गजल कहल (लिखल) जा सकैत अछि

चूँकि एहि पोथीक सदेह रूप एखनो उपलब्ध नहि भऽ सकल अछि तेँ एकर व्याकरण पक्षक गहन अध्ययन नहि कए सकलहुँ तखन अपेक्षा करैत छी जे कियो ने कियो गोटे, गजलक व्याकरण गूढ़ जानकार लोकनि, एकर व्याकरण पक्षपर सेहो विस्तृत चर्चा करबे करताह ओना ओमप्रकाश जीक गजल गलक व्याकरणक अनुसरण करबाक जे अनुराग छनि ताहिसँ जँ कदाचित एहिमे कोनो त्रुटि हेबो करत तऽ से नगण्यप्राये, तेहन विसबास अछि अपन सिमित ज्ञानक आधारपर एहि पोथीक व्याकरणक पक्षपर जे विहंगम दृष्टिपात कए सकलहुँ ताहि आधारपर हमरा कोनो त्रुटि नहि देखायल अछि तखन कतहु-कतहु बहरक आखर कि मात्रा पुरेबाक दृष्टिकोणसँ मिसरा सभमे जे वर्ण कि मात्राक जोड़-तोड़ कएल गेल अछि ताहिसँ भावक प्रवाह खण्डित होइत बुझना गेल संगहि कतेको ठाम वर्तनीक अशुद्धता सेहो एहि पोथीमे एखन देखल जा सकैत अछि मुदा,इहो संभव जे जखन एकर सदेह रूप हमरा सभक हाथमे आओत तखन एहन बहुत रासेक त्रुटि नहि रहत पोथीक स्वरूप दामक संबंधमे एखन उचित-अनुचित किछुओ नहि कहल जा सकैत अछि मुदा, एतबा तऽ अबश्य लगैत अछि जे एहि पोथीकेँ पाठकक सिनेह भेटतैक संगहि निकट भविष्यमे ओमप्रकाश जीक गजल मैथिली साहित्यकेँ नव दिशा दृष्टि देत

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों