बुधवार, 20 दिसंबर 2017

बयानक संदर्भमे मैथिली गजल

हरेक भाषा साहित्यिक हरेक विधासँ संबंधित बयान अबैत रहैत छै आ ई स्वाभाविक छै। बयान दूनू तरहँक मने सकारात्मक ओ नकारात्मक रहैत छै। मैथिली गजल लेल सेहो समय- समयपर बयान अबैत रहलैक अछि। जँ छोट-मोट बयानकेँ छोड़ि देल जाए तँ मैथिली गजलमे मुख्यतः तीन-चारि टा बयान अछि जे कि अपना समयमे मैथिली गजलकेँ आन्दोलित केलक। पहिल प्रो. आनंद मिश्रजीक बयान, दोसर रमानंद झा रमणजीक बयान, तेसर रामदेव झाजीक बयान आ चारिम मायानंद मिश्रजीक बयान, हम एहिठाम चारू गोटाक बयान राखब आ ओकर विश्लेषण करब एहि विश्लेषणसँ पहिने कहि दी जे ई सभ बयान ओहन-ओहन रचना वा पोथीपर आधारित अछि जे कि प्रकाशित भेल। बहुत रास एहन शाइर जे कि प्रकाशनमे रुचि ने छलनि वा जिनका संपादक कात कऽ दै छलखिन (जेना विजयनाथ झा ओ योगानंद हीराजीक गजलकेँ संपादक सायास नै छापै छलखिन तिनकर सभहँक गजलकेँ एहि बयान देबा कालमे धेआन नै राखल गेल अछि)। ईहो बात धेआनमे राखब जरूरी जे ई बयान सभ मधुपजी, कविवर सीताराम झाजीक वा पं.जीवन झाजीक गजलकेँ बिना व्याकरणपर नपने देल गेल अछि। जँ ई सभ बयान देबासँ पहिने मधुपजी, कविवर सीताराम झाजीक, पं.जीवन झाजीक, विजयनाथ झाजी वा योगानंद हीराजीक गजलकेँ व्याकरणक हिसाबें देखने रहितथि तँ संभवतः हिनक बयान सभ किछु अलग रहैत। तँइ एहि बयान सभकेँ समग्र तँ नै मानल जा सकैए मुदा ओहि अधिकांश गजलक प्रतिनिधित्व तँ करिते अछि जे ओहि कालखंडमे अधिकांश गजलकार द्वारा लिखल गेल। एहि बयान सभहँक विश्लेषणकेँ हम ओहि कालखंडसँ जोड़ि कऽ देखि रहल छी जाहिकालमे ई बयान देल गेल रहै। वस्तुतः इएह सही तरीका छै कोनो तथ्यकेँ जनबाक लेल। तँ देखी बयान आ ओकर विश्लेषण ------

1) प्रो. आनंद मिश्रजीक हिसाबें मैथिलीमे गजल संभव नहि (संदर्भ- 2015 मे मोहन यादवजीक गजल संग्रह "जे गेल नहि बिसरल"मे उदयचंद्र झा विनोदजीक भूमिका। संभवतः ई बयान 1980-85 बीचक अछि)---एहि बयानक मूल रूप हमरा लग नै अछि। तँइ एहि बयानकेँ दू रूपमे लऽ रहल छी। पहिल तँ जे देने छी मने "मैथिलीमे गजल संभव नै"। ई बयान निश्चित रूपें ओहि समयक जे गजलकार सभ सक्रिय छलाह जेना सुधांशु शेखर चौधरी, गोपेश, मायानंद मिश्र, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, केदार नाथ लाभ, कलानंद भट्ट, सियाराम झा सरस, महेन्द्र, छात्रानंद सिंह झा, तारानंद वियोगी, राम चैतन्य धीरज, केदार कानन, रमेश, विभूति आनंद आदिक गजल सभकेँ देखि कऽ देल गेल अछि। जँ हिनकर सभहँक गजल देखल जाए तँ  प्रो. आनंद मिश्रजीक उक्ति सौ प्रतिशत सच अछि। कनियों झूठ नै। मानि लिअ जँ प्रो. जी एहन नै कहने हेथिन तैयो ई सच अछि ओहि समयक सक्रिय गजलकार सभहँक गजल देखि कियो ई बात कहि सकैत छल। गजल लेल बहर आ काफिया अनिवार्य छै (बहरमे किछु छूटक संगे)। मुदा ओहि समयक सक्रिय कोनो गजलकार (ओहिमेसँ एखनो किछु सक्रिय छथि) बहर आ काफियाक पालन नै केने छथि। हिनकर सभहँक कथन छनि जे भाव मुख्य हो मुदा जँ भावे मुख्य मानल जाए तखन कोनो रचनाकेँ गजल कहबाक बेगरते किए? ओकरा कविते किए ने कहल जाए? आखिर कोनो एहन तत्व तँ हेतै जे कविता आ गजलक बीच अंतर आनैत हेतै। कोनो गजलकेँ नीक वा खराप हेबासँ पहिने ओकरा "गजल" होबए पड़ैत छै आ कोनो रचनाकेँ गजल हेबा लेल ओहिमे बहर ओ काफिया अनिवार्य छै। जँ बहर ओ काफिया नै छै तखन ओ गजले नै भेल भने ओकरा नीक वा खराप गीत या कविता कहू से मंजूर मुदा बिना बहर ओ काफियाक गजल नै हएत (रदीफ कोनो गजलमे भैयो सकैए आ नहियो भ सकैए मुदा जाहि गजलमे रदीफ लेल जाएत ताहिमे अंत धरि पालन हएत)।
एक दू गोटेसँ चर्चा केलापर पता चलल जे प्रो. आनंदजी ई मानै छलाह जे मैथिलीमे हुस्न-इश्क नै भऽ सकै छै तँइ मैथिलीमे गजल संभव नै। जँ एहन बात तँ हम प्रो. साहेबसँ असहमत छी कारण हमरा लग विद्यापति छथि जे कि पूरा उर्दू शाइरीसँ बेसी आ पहिने प्रेमपर बात केलाह। किछु विद्वान ई कहि सकै छथि जे विद्यापतिक प्रेम पारलौकिक छल मुदा तखन ई प्रश्न उठै छै जे फेर उर्दू शाइरीक प्रेम पारलौकिक किए नै भऽ सकैए?
जे किछु हो मुदा प्रो. आनंदजीक बयान ओहि समयक गजलकार सभ लेल एकटा चुनौती छल जकरा लेबामे और गलत साबित करबामे ओहि समयक गजलकार सभ असफल भऽ गेलाह। जहाँ धरि एहि बयानक प्रभाव छै हमरा नै बुझाइए जे एहि बयानक कोनो बेसी असरि पड़लै कारण ओहि समयक कथित गजलकार सभ अपन "गलत गजल"मे मग्न छलाह आ प्रो. आनंद मिश्रजी अपन सहविचारक संग प्रोफेसरे टा बनल रहलाह। दूनू पक्षमेसँ किनको ई जनबाक चिन्ता नै रहलनि जे आखिर गजलक असल पक्ष की छै।

2) रमानंद झा रमणजीक हिसाबें वर्तमान गीत गजल मंचीय अर्थलाभक औजार थिक (मिथिला मिहिर फरवरी 1983 ई हमरा लोकवेद आ लालकिलामे सियाराम झा सरसजीक लेखमे उल्लेखित भेटल)-
जँ ओहि समयक सक्रिय गजलकारक गजल देखब तँ पता चलत जे ओ सभ गजलकेँ गेबाक एकटा उपक्रम मानि लेने छलाह। हुनका सभकेँ बुझाइत छलनि (वा छनि) जे गायिकी गजल लेल अनिवार्य छै। जँ गायिकी गजल लेल अनिवार्य रहितै तँ उर्दू गजलमे गालिब आ फिराक गोरखपुरीसँ बेसी महान सुदर्शन फाकिर रहितथि। मुदा से नै भेलै कारण गायिकी गजल लेल अनिवार्य नै। हँ जँ गजलक सभ शर्त पूरा करैत गजलमे गायिकी छै तँ सोनमे सुगंध बला बात भेलै। ओहि समयक गजल सभ गायिकी लऽ कऽ कते मोहग्रस्त छलाह तकर दृष्टांत हमरा विभूति आनंदजीक गजल संग्रह (उठा रहल घोघ तिमिर)मे हुनके भूमिका आ तारानंद वियोगीजीक गजल संग्रह (युद्धक साक्ष्य) केर नव संस्करणक नव भूमिकासँ भेटल। विभूति आनंदजी ओहि भूमिकामे लिखै छथि जे "एगो महत्वपूर्ण प्रसंग.............। तत्क्षण किछुकेँ स्वरो देलथिन।" उम्हर वियोगीजी अपन संग्रहक नव संस्करणक नव भूमिकामे लिखै छथि जे "तखन मोन पड़ै छथि जवाहर झा...........जे हमर छांदस प्रयोग सभहँक संगीत शास्त्रीय व्याख्या करथि।" ई अलग बात जे वियोगीजीक गजलमे कोनो छांदस प्रयोग नै अछि। शास्त्रीय संगीत केर बंदिश तँ कोनो रचनाक पाँति भऽ सकै छै। एहि दूक अतिरिक्त आन गजलकार सभ सेहो गजलकेँ गायिकीसँ अनिवार्यतः जोड़ि देने छथि जाहि कारणसँ ओहि समयक गजल सभ गजल कम आ गीत बेसी लागै छै। अधिकांशतः साहित्यकार ई बुझै छथि जे मंचपर गाबि देलासँ जनता बेसी थपड़ी पीटत आ बहुत संदर्भमे ई बात सच छै। मुदा ओहि समयक गजल लिखनाहर सभ मंचपर हिट हेबाक चक्करमे कथित गजलकेँ गीतक भासमे गाबए लगलाह जाहिमेसँ किछु लोकप्रिय सेहो भेल (जनता द्वारा गीत मानि आ सुनबामे चूँकि ओ गीतेक भास छलै तँइ) जेना सियाराम झा सरसजीक "एक मिसिया जे मुस्किया देलियै," आ एहने सन आर। खास कऽ जे कथित साहित्यकार गीत आ गजल दूनू लिखै छलाह तिनकामे ई गायिकी बला बेमारी बहुत अछि। कलानंद भट्ट गजले लिखै छलाह तँइ हुनक गजलमे एकटा स्थायित्व भेटत ओना ई बात अलग जे भट्टजीक गजलमे सेहो बहर नै छनि आ बहुत ठाम काफिया गलत छनि।तात्कालीन कथित गजलकार सभ गजलकेँ मंच छेकबाक हथियार बना लेला जाहि कारणे ओहि समयक गजलमे कथ्यक गंभीरता छैहे नै। एक बात स्पष्ट कऽ दी खाली लाल झंडा, पसेना, अमीर-गरीब लीखि देलासँ गजल की कोनो रचनामे गंभीरता नै अबै छै। जँ एहि वास्तविकताक भीतर घुसि कऽ देखल जाए तँ रमणजीक बयान बहुत हद धरि सही अछि आ सटीक अछि। रमणजीक एहि बयानक असरि भेल आ गीत सन गजल लिखए बला सभ छिलमिला गेलाह। सरसजी अपन लेखमे एहि बयानकेँ गैर जिम्मेदारी बला बयान मानै छथि (लोकवेद आ लालकिलामे सियाराम झा सरसजीक लेख) मुदा हम रमणजीक एहि बयानकेँ गजलक दृष्टिएँ पूर्ण जिम्मेदारी बला बयान मानै छी। जँ ओहि समयक तात्कालीन गजलकार सभ एहि बयानपर मंथन करितथि तँ आजुक मैथिली गजलक परिदृश्य बहुत निखरल आ विस्तृत नजरि अबैत।
पुरने गजलकार नै बल्कि एखनुक गजलकार सेहो (अनचिन्हार आखरसँ संबंधित किछु गजलकार सेहो) मंच छेकबाक लेल गजलमे गायिकीकेँ अनिवार्य करए चाहै छथि। जखन कि सच बात तँ ई छै जे मंचपर गजल हिट होइत छै मुदा मंच लेल गजलक प्रयोग असफल भऽ जाइत छै से कतेको उर्दू मोशायरामे श्रोताक तौरपर भाग लऽ कऽ हम देखि चुकल छी। उर्दूक प्रसिद्ध शाइर हसरत मोहानीक गजल "चुपके चुपके रात दिन" 1910-1930 मे लिखाएल छै मुदा एहि गजलकेँ गुलाम अली भेटलै 1982मे। तेनाहिते गालिब केर गजल लिखेलै 1820क बाद मुदा ओकर गायिकी रूपमे लोकप्रियता भेटलै जगजीत सिंह द्वारा गेलाक बाद (जगजीतजीसँ पहिने सेहो गाएल जाइत छलै मुदा हम लोकप्रियताक बात कऽ रहल छी)। गायिकी रूपमे हरेक आधुनिक हसरत मोहानीक नसीबमे गुलाम अली आ हरेक आधुनिक गालिब केर नसीबमे जगजीत सिंह लिखाएल रहै छै मुदा आजुक शाइर अपने गेबा लेल आ मंच छेकबा लेल तते उताहुल रहै छथि जे ओ गजलक मूल तत्वकेँ बिसरि जाइ छथि। हमर ई अनुभव अछि जे गजल लेल बहरकेँ अनुपयोगी कहए बला लोक गजलकेँ गेबाक चक्करमे रहै छथि। अन्यथा किछु प्रयासक बाद बहरक निर्वाह केनाइ एकदम आसान होइत छै।

3) रामदेव झाजी मानै छथि जे "साम्प्रतिक गजल रचनाक क्षेत्रमे सुधांशु शेखर चौधरी, गोपेश, मायानंद मिश्र, रवीन्द्रनाथ ठाकुर,केदार नाथ लाभ, कलानंद भट्ट, सरस, महेन्द्र, छात्रानंद, वियोगी, धीरज,केदार कानन, रमेश,अनिल इत्यादि नाम देखल जाइत अछि। हिनका लोकनिक गजलमेसँ किछुमे अवश्ये गजलत्व अछि। परंतु अधिकांशकेँ गजल शैलीमे रचल गीत मात्र कहल जाए तँ अनुपयुक्त नहि। (संदर्भ “मैथिलीमे गजल” डा. रामदेव झा, रचना जून 1984मे प्रकाशित)"--
रामदेव जीक मत रमणजीक मतक विस्तारित रूप अछि। रमणजी मंचपर गजलक प्रवृतिपर बात केने छथि मुदा रामदेवजी गीत सन गजलकेँ सेहो देखार केने छथि जे अधिकांशतः गजलकार गजल नै गीत सन गजल लिखै छथि। रामदेव झाजी स्पष्ट स्वरमे ओहि समयक बहुत रास कथित क्रांतिकारी गजलकार सभहँक गजलकेँ खारिज करै छथि जे कि ओहि समयक हिसाबसँ बड़का विस्फोट छल। ई आलेख ततेक प्रभावकारी भेल जे ओ समयक बिना व्याकरण बला गजलकार सभ छिलमिला गेलाह आ एहि आलेखक विरोधमे विभिन्न वक्तव्य सभ देबए लगलाह। उदाहरण लेल सियाराम झा सरस, तारानंद वियोगी, रमेश ओ देवशंकर नवीनजीक संपादनमे प्रकाशित साझी गजल संकलन "लोकवेद आ लालकिला" (वर्ष 1990) केर कतिपय लेख सभ देखल जा सकैए जाहिमे रामदेव झाजी ओ हुनक स्थापनाकेँ जमि कऽ आरोपित कएल गेल अछि। ओही संकलनमे देवशंकर नवीन अपन आलेख "मैथिली गजलःस्वरूप आ संभावना"मे लिखै छथि जे "............पुनः डा. रामदेव झाक आलेख आएल। एहि निबन्ध मे दू टा बात अनर्गल ई भेल जे गजलक पंक्ति लेल छंद जकाँ मात्रा निर्धारित करए लगलाह आ किछु एहेन व्यक्तिक नाम मैथिली गजल मे जोड़ि देलनि जे कहियो गजल नै लिखलनि"
आन लेख सभमे एहने बात सभ आन आन तरीकासँ कहल गेल अछि। रामदेव झाजीक आलेखक बाद एहन आलेख नै आएल जाहिमे गजलकेँ व्याकरण दृष्टिसँ देखल गेल हो कारण ताहि समयक गजलपर कथित क्रांतिकारी गजलकार सभहँक कब्जा भऽ गेल छल। 

4) मायानंद जी अपन पोथी “अवान्तर” केर भूमिकाक (ई पोथी 1988मे मैथिली चेतना परिषद्, सहरसा द्वारा प्रकाशित भेल)। पृष्ठ 6 पर मायानंदजी लिखै छथि “अवान्तरक आरम्भ अछि गीतलसँ। गीतं लातीति गीतलम्ऽ अर्थात गीत केँ आनऽ बला भेल गीतल। किन्तु गीतल परम्परागत गीत नहि थिक, एहिमे एकटा सुर गजल केर सेहो लगैत अछि। गीतल गजल केर सब बंधन (सर्त) केँ स्वीकार नहि करैत अछि। कइयो नहि सकैत अछि। भाषाक अपन-अपन विशेषता होइत अछि जे ओकर संस्कृतिक अनुरूपें निर्मित होइत अछि। हमर उद्येश्य अछि मिश्रणसँ एकटा नवीन प्रयोग। तैं गीतल ने गीते थिक, ने गजले थिक, गीतो थिक आ गजलो थिक। किन्तु गीति तत्वक प्रधानता अभीष्ट, तैं गीतल।”
उपरका उद्घोषणामे अहाँ सभ देखि सकै छिऐ जे कतेक दोखाह स्थापना अछि। प्रयोग हएब नीक गप्प मुदा अपन कमजोरीकेँ भाषाक कमजोरी बना देब कतहुँसँ उचित नै आ हमरा जनैत मायानंद जीक ई बड़का अपराध छनि। जँ ओ अपन कमजोरीकेँ आँकैत गीतल केर आरम्भ करतथि तँ कोनो बेजाए गप्प नै मुदा मायाजी पाठककेँ भ्रमित करबाक प्रयास केलाह जे कि तात्काल सफल सेहो भेल।
हम अपन पोथी "मैथिली गजलक व्याकरण ओ इतिहास"मे बहुत रास एहन मैथिली कहबी केर उदाहरण देने छियै जकर दूनू पाँतिमे वर्णवृत मने बहर छै। जाहि भाषाक कहबी धरि बहरमे हो ओहि भाषामे गजल लिखब-कहब सभसँ आसान छै। मुदा हम जेना कि ओही पोथीमे लिखने छी जे माया बाबू लग मैथिल माटि-पानिक परंपराक कोनो जानकारी ने रहनि ओ बस शब्द सजेबाक फेरमे अपन मजबूरीकेँ भाषाक मजबूरी बना देलाह। माया बाबूक एहि बयानक घोर विरोध भेल सरसजी आ हुनक टीम द्वारा मुदा अफसोच जे सरसजी वा हुनक टीम मायाजीक एहि बयानकेँ गलत करबा लेल कोनो सार्थक डेग नै उठा सकल। माया बाबू जाहि फार्मेटक गजल लिखै छलाह तही फार्मेटमे सरसजी आ हुनक टीम लिखै छलाह। मने दूनू टीम बिना बहरक बहर गजल लिखै छल आ एखनो लिखा रहल। मायानंद मिश्र बनाम सियाराम झा "सरस" बला लड़ाइ गजलक लेल नै ई विशुद्ध रूपें नाम आ सत्ताक लड़ाइ छल। वर्तमान मैथिलीमे "बीहनि कथा" आ "लघुकथा" केर लड़ाइ सन  छल ई।

वर्तमान समयमे एहि बयान सभहँक सार्थकता

प्रो.आनंद मिश्रजी आ मायानंद मिश्रजीक बयानक एखन कोनो सार्थकता नै अछि। दूनू गोटाक बयान मैथिली गजलक असल धाराकेँ छोड़ि कऽ देल गेल छल। मैथिली गजलक असल धारा पं.जीवन झा, कविवर सीताराम झा, काशीकांत मिश्र "मधुप" विजयनाथ झा, योगानंद हीरा, जगदीश चंद्र ठाकुर "अनिल" आदिकेँ छुबैत आगू बढ़ल अछि। मुदा हिनकर सभहँक गजलकेँ तात्कालीन संपादक ओ आलोचक द्वारा बारल गेल। जँ हिनकर सभहँक गजलक ओहि समयमे व्याकरणक हिसाबसँ व्याख्या भेल रहैत तँ मैथिली गजलक नकली धाराकेँ आगू बढ़बाक मौका नै भेटल रहितै आ मैथिली गजल गन्हेबासँ बचि गेल रहैत। मुदा दुनियाँक कोनो काज बाँचल नै रहै छै से आब मैथिली गजल आलोचनाक छूटल काज सभ भऽ रहल अछि।
डा. रमानंद झा "रमण" ओ डा. रामदेव झाजीक बयानक एखनो सार्थकता अछि कारण ई दूनू बयान गजलक बाहरी पक्षपर छलै। एहन नै छै जे गजल गायिकीसँ मोहग्रस्त पहिनुके गजलकार छलाह। किछु एखुनको गजलकार एहि मोहमे बान्हल छथि आ आगूक किछु गजलकार सेहो बान्हल रहता। तँइ ई दूनू गोटाल बयान भविष्योमे सार्थक रहत।

(नोट---- गजलक वा अन्य विधाक संदर्भमे हम किनको नीक विचारकेँ अपना सकै छी। मुदा गलत विचारकेँ सदिखन हम आलोचना करैत रहब। एहि आलेखमे जिनकर मतक समर्थन कएल गेल अछि जरूरी नै जे हुनकर सभ मतसँ हम सहमत होइ आ हुनकर गलतो विचारकेँ नुकबैत रही। काल्हि भेने फेर कियो गजलक असल पक्षक विपरीत जेता हुनकर हम आलोचना करबे करब। कोनो विधामे प्रयोग खराप नै मुदा अपन कमजोरीकेँ विधा वा भाषाक कमजोरी बना देबए बला हमर शिकार होइत रहता।)


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