गजलक मतलामे जे रदीफ-काफिया-बहर लेल गेल छै तकर पालन पूरा गजलमे हेबाक चाही मुदा नज्ममे ई कोनो जरूरी नै छै। एकै नज्ममे अनेको काफिया लेल जा सकैए। अलग-अलग बंद वा अंतराक बहर सेहो अलग भ' सकैए संगे-संग नज्मक शेरमे बिनु काफियाक रदीफ सेहो भेटत। मुदा बहुत नज्ममे गजले जकाँ एकै बहरक निर्वाह कएल गेल अछि। मैथिलीमे बहुत लोक गजलक नियम तँ नहिए जानै छथि आ ताहिपरसँ कुतर्क करै छथि जे फिल्मी गीत बिना कोनो नियमक सुनबामे सुंदर लगैत छै। मुदा पहिल जे नज्म लेल बहर अनिवार्य नै छै आ जाहिमे छै तकर विवरण हम एहि ठाम द' रहल छी-----------------
"तेरी याद दिल से भुलाने चला हूँ"
"तेरी याद दिल से भुलाने चला हूँ"
साहिर लुधियानवी द्वारा लिखल
नज्म "तेरे प्यार
का आसरा चाहता
हूँ" केर बहर
122 122 122 122 छै से पछिला
पोस्टमे तक्ती द्वारा देखने
रही। आइ अही
बहरमे शैलेंद्रजीक लिखल
नज्म देखा रहल
छी। ई "हरियाली
और रास्ता" नामक
फिल्ममे मनोज कुमार
ओ माला सिन्हापर
फिल्माएल गेल छै।
मात्रा निर्धारणमे उर्दू ओ
हिंदीक नियम लागल
छै।
तेरी याद दिल
से भुलाने चला
हूँ
के खुद अपनी
हस्ती मिटाने चला
हूँ
घटाओं तुम्हें साथ देना
पड़ेगा
मैं फिर आज
आंसू बहाने चला
हूँ
कभी जिस जगह
ख्वाब देखे थे
मैंने
वहीँ खाक़ अपनी
उड़ाने चला हूँ
गम-ए-इश्क
ले, फूंक दे
मेरा दामन
मैं अपनी लगी
यूं, बुझाने चला
हूँ
(तेरी या 122 द दिल
से 122 भुलाने 122 चला हूँ
122
के खुद अप
122 नी हस्ती 122 मिटाने 122 चला
हूँ 122)
सुनू ई नज्म
सुनू ई नज्म
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