गजलमे बहर ओ व्याकरण विरोधी लोक सभ अधिकतर निच्चामे देल एहि शेरक बेसी उदाहरण दै छथि (एहि शेरक बहुत पाठांतर छै)
इश्क को दिल में दे जगह अकबर
इल्म से शायरी नहीं आती
मने ओहन लोक सभकेँ कहनाम जे गजलमे खाली इल्म नै हेबाक चाही मुदा ई कतेक बड़का विडंबना छै जे एहू शेरमे पूरा पूरी बहरक पालन भेल छै मने ईहो शेर इल्मक उपज अछि। आब ई बात अलग जे विरोधी सभकेँ बहर अबिते नै छनि तँ ओ एकरा गानि कोना सकताह। वास्तविकता तँ ई छै जे हमर मैथिल "महान" गजलकार सभ अभिधामे बेसी बूझै छथि आ तँइ एहि शेरक अर्थकेँ अभिधामे ल' लेने हेताह। जँ एहि शेरक तहमे जेबै तँ एकर अभिधा बला अर्थक अलावे अन्य अर्थ सेहो छै जकरा एना व्यक्त कएल जा सकैए
इल्म को दिल में दे जगह अकबर
इश्क से शायरी नहीं आती
मने जँ खाली इल्मसँ शाइरी नै हेतै तँ खाली इश्कोसँ शाइरी नै भ' सकैए। इएह एहि शेरक मूल बात छै। हरेक चीजमे संतुलन हेबाक चाही तखने ओ नीक काव्य हएत। ई बात इल्म बला आ इश्क बला दूनूकेँ नीक जकाँ बूझए पड़तनि अन्यथा दूनूक काव्य बौके टा रहत। निच्चा एहि शेरक बहर देखा रहल छी
इश्क को 212 दिल में दे 212 जगह अकबर 1222
इल्म से 212 शायरी 212 नहीं आती 1222
आब एक बेर कने जगदीश चंद्र ठाकुरजीक एहि शेरकेँ देखू
बहरक बन्धन अछि,हमरा आजाद करू
हम त गजल छी, हमरा नै बरबाद करू
एहि शेरकेँ पढ़िते बहुतों बहर पीड़ित लोकक आह निकलि गेल। मुदा ओहि पीड़ित लोक लग दृष्टि छैने नहि जे ओ देखता जे अनिल जीक एहि शेरमे सेहो बहर छै (22222222222)। गजलक सौंदर्ये इएह छै जे ओ अपन तत्वक विरोध नियमक भीतर करैत छै। से चाहे इल्मक प्रसंग हो कि बहर बंधनक प्रसंग। दूनू शेरक मंतव्य इएह जे ने बेसी इल्मसँ शाइरी हएत आ ने बेसी इश्कसँ। हमरा जतेक अनुभव अछि ताहि हिसाबसँ बेसी इल्म बला आ बेसी इश्क बला लोक अनुपयोगी भ' जाइत छै। बेसी इल्म बलाकेँ पागल हेबाक खतरा बेसी रहैत छै तँ बेसी इश्क बलाकेँ आवारा आ बदचलन होइत देरी नै लागै छै। आब अहाँ सभहँक अनुभव जे हो।
इश्क को दिल में दे जगह अकबर
इल्म से शायरी नहीं आती
मने ओहन लोक सभकेँ कहनाम जे गजलमे खाली इल्म नै हेबाक चाही मुदा ई कतेक बड़का विडंबना छै जे एहू शेरमे पूरा पूरी बहरक पालन भेल छै मने ईहो शेर इल्मक उपज अछि। आब ई बात अलग जे विरोधी सभकेँ बहर अबिते नै छनि तँ ओ एकरा गानि कोना सकताह। वास्तविकता तँ ई छै जे हमर मैथिल "महान" गजलकार सभ अभिधामे बेसी बूझै छथि आ तँइ एहि शेरक अर्थकेँ अभिधामे ल' लेने हेताह। जँ एहि शेरक तहमे जेबै तँ एकर अभिधा बला अर्थक अलावे अन्य अर्थ सेहो छै जकरा एना व्यक्त कएल जा सकैए
इल्म को दिल में दे जगह अकबर
इश्क से शायरी नहीं आती
मने जँ खाली इल्मसँ शाइरी नै हेतै तँ खाली इश्कोसँ शाइरी नै भ' सकैए। इएह एहि शेरक मूल बात छै। हरेक चीजमे संतुलन हेबाक चाही तखने ओ नीक काव्य हएत। ई बात इल्म बला आ इश्क बला दूनूकेँ नीक जकाँ बूझए पड़तनि अन्यथा दूनूक काव्य बौके टा रहत। निच्चा एहि शेरक बहर देखा रहल छी
इश्क को 212 दिल में दे 212 जगह अकबर 1222
इल्म से 212 शायरी 212 नहीं आती 1222
आब एक बेर कने जगदीश चंद्र ठाकुरजीक एहि शेरकेँ देखू
बहरक बन्धन अछि,हमरा आजाद करू
हम त गजल छी, हमरा नै बरबाद करू
एहि शेरकेँ पढ़िते बहुतों बहर पीड़ित लोकक आह निकलि गेल। मुदा ओहि पीड़ित लोक लग दृष्टि छैने नहि जे ओ देखता जे अनिल जीक एहि शेरमे सेहो बहर छै (22222222222)। गजलक सौंदर्ये इएह छै जे ओ अपन तत्वक विरोध नियमक भीतर करैत छै। से चाहे इल्मक प्रसंग हो कि बहर बंधनक प्रसंग। दूनू शेरक मंतव्य इएह जे ने बेसी इल्मसँ शाइरी हएत आ ने बेसी इश्कसँ। हमरा जतेक अनुभव अछि ताहि हिसाबसँ बेसी इल्म बला आ बेसी इश्क बला लोक अनुपयोगी भ' जाइत छै। बेसी इल्म बलाकेँ पागल हेबाक खतरा बेसी रहैत छै तँ बेसी इश्क बलाकेँ आवारा आ बदचलन होइत देरी नै लागै छै। आब अहाँ सभहँक अनुभव जे हो।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें