बुधवार, 30 मई 2018

गजल-

की कहू मोनमे किछु फूराइत नै अछि आइ काइल
ओकरा छोड़ि केओ सोहाइत नै अछि आइ काइल

मोहिनी रूप ओकर केलक नैना पर कोन जादू
चेहरा आब दोसर देखाइत नै अछि आइ काइल

नेह जहियासँ भेलै हेरा रहलै सुधि बुधि दिनोदिन
बात दुनियाक कोनो सोचाइत नै अछि आइ काइल

शब्द जे छल हमर लग पातीमे लिखि सब खर्च केलौं
भाव मोनक गजलमे बहराइत नै अछि आइ काइल

संग जिनगीक कुन्दन चाही ओकर सातो जनम धरि
निन्नमे आँखि आरो सपनाइत नै अछि आइ काइल

2122-1222-2222-2122

© कुन्दन कुमार कर्ण

www.kundanghazal.com

बुधवार, 23 मई 2018

अपने एना अपने मूँह-40

जनवरी 2018मे अनचिन्हार आखरपर कुल १३ टा पोस्ट भेल जकर विवरण एना अछि
कुंदन कुमार कर्णजीक २ टा पोस्टमे २ टा गजल अछि। आशीष अनचिन्हारक ११ टा पोस्टमे पाँच टा हिंदी "फिल्मी गीतमे बहर ओ व्याकरण" संबंधी विवेचन, १टा अपने एना अपने मूँह, २ टा आलोचना, १ टा बाल गजल आ २ टा गजल अछि।

फरवरी २०१८मे अनचिन्हार आखरपर ८ टा पोस्ट भेल जकर विवरण एना अछि---
कुंदन कुमार कर्णजीक २ टा पोस्टमे २ टा बाल गजल अछि। आशीष अनचिन्हारक ६ टा पोस्टमे ३ टा गजल आ ३ टा "हिंदी फिल्मी गीतमे बहर" नामक पोस्ट अछि।

मार्च २०१८मे अनचिन्हार आखरपर ९ टा पोस्ट भेल जकर विवरण एना अछि---
कुंदन कुमार कर्णजीक १ टा पोस्टमे १ टा गजल अछि। आशीष अनचिन्हारक ८ टा पोस्टमे ३ टा गजल आ ५ टा "हिंदी फिल्मी गीतमे बहर" नामक पोस्ट अछि।

अप्रैल २०१८मे अनचिन्हार आखरपर ७ टा पोस्ट भेल जकर विवरण एना अछि---
कुंदन कुमार कर्णजीक २ टा पोस्टमे २ टा गजल अछि। आशीष अनचिन्हारक ५ टा पोस्टमे ३ टा गजल, १ टा आलोचना आ १ टा "हिंदी फिल्मी गीतमे बहर" नामक पोस्ट अछि।

मंगलवार, 22 मई 2018

भजनपर गजलक प्रभाव-2

भारतीय भजन (सभ भाषा)मे गजलक बहुत बड़का प्रभाव छै। एकर कारण छै बहरमे भेनाइ(वार्णिक छंद)। मैथिलीक पहिल अरूजी अपन गजलशास्त्रमे लिखै छथि जे "सरल वार्णिक छंद (वर्ण गानि) गेबामे सभसँ कठिन छै ताहिसँ कम कठिन मात्रिक छंद छै आ सभसँ सरल गेबामे वार्णिक छंद छै। गजलमे वार्णिक छंद, काफिया होइत छै मुदा ताहि संग रदीफ सेहो होइत छै जाहि कारणसँ गजल गेबा लेल आर बेसी उपयुक्त भ' जाइत छै। रदीफ गजल लेल अनिवार्य नै होइत छै मुदा तेहन भ' ने सटल रहै छै जे ओ गजलक मौलिकताक पहिचान सेहो बनि जाइत छै। रदीफेसँ कियो गुणी पाठक पहिचान जाइ छथि जे ई किनकर गजल अछि। गजलमे कोनो एकटा रदीफक प्रयोग भ' गेल छै तकरे फेरसँ दोसर शाइर द्वारा प्रयोग करब ओइ पहिल आ मूल गजलक लोकप्रियताकेँ देखबै छै। आइसँ हम किछु एहन भारतीय भाषाक भजन (सभ भाषा) देखा रहल छी जे कि स्पष्टतः गजलसँ प्रभावित भेल अछि। एहि कड़ीक दोसर खंडमे हम मोमिन ख़ाँ मोमिन जीक गजल आ गोस्वामी बिंदुजी महराज जीक भजन ल' रहल छी। उर्दूक महान शाइर मोमिनजीक जन्म 1800 मे भेल छलनि। हुनकर एकटा गजलक शेर अछि...........

वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
वही या'नी वा'दा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो

पूरा गजल रेख्ता केर एहि लिंकपर पढ़ि सकैत छी https://www.rekhta.org/ghazals/vo-jo-ham-men-tum-men-qaraar-thaa-tumhen-yaad-ho-ki-na-yaad-ho-momin-khan-momin-ghazals?lang=hi

एहि गजलकेँ बेगम अख्तरजीक अवाजमे निच्चा सुनि सकैत छी...
(वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो)

मोमिनजीक एहि गजलक रदीफ "तुम्हें याद हो कि न याद हो " केर प्रयोग गोस्वामी बिंदुजी महराज (जन्म 1893) अपन भजनमे केलथि। ई भजन एना अछि.......

अधमों को नाथ उबारना तुम्हें याद हो कि न याद हो।
मद खल जनों का उतारना तुम्हें याद हो कि न याद हो॥
प्रह्लाद जब मरने लगा, खंजर पै सिर धरने लगा।
उस दिन का खंम्भ बिदारना तुम्हें याद हो कि न याद हो॥
धृतराष्ट्र के दरबार में दुखी द्रौपदी की पुकार में।
साड़ी के थान संवारना तुम्हें याद हो कि न याद हो।
सुरराज ने जो किया प्रलय, ब्रजधाम बसने के समय।
गिरवर नखों पर धारना तुम्हें याद हो कि न याद हो॥
हम ‘बिन्दु’ जिनके निराश हो, केवल तुम्हारी आस हो।
उनकी दशाएँ सुधारना तुम्हें याद हो कि न याद हो॥

बिंदुजीक पोथीमे ई भजन हुनक पोथी "मोहन मोहिनी"सँ लेल गेल अछि। ई गीत एहिठाम सुनू.......
(अधमों के नाथ उबारना तुम्हें याद हो कि न याद हो)

बिंदुजीक एहि भजनपर मोमिनजीक गजलक प्रभाव अछि। स्पष्ट अछि मोमिनजीक गजल भजनपर बहुत बेसी प्रभाव छोड़लक। बिंदुजीक एकटा आर आन प्रसिद्ध भजन अछि "यदि नाथ का नाम दयानिधि है तो दया भी करेगें कभी न कभी"। मोहन मोहिनीक बहुत भजन गजलसँ प्रभावित अछि। ओना "कभी न कभी" प्रसिद्ध शाइर दाग देहलवी (1831) केर एकटा गजलक अंश अछि https://www.rekhta.org/ghazals/naa-ravaa-kahiye-naa-sazaa-kahiye-dagh-dehlvi-ghazals?lang=hi जकरा बिंदुजी रदीफ जकाँ प्रयोग केलथि संगहि ईहो जानब रोचक जे बहुत बादमे सय्यद अमीन अशरफ़जी एही रदीफसँ एकटा गजल सेहो लिखलाह https://www.rekhta.org/ghazals/malaal-e-guncha-e-tar-jaaegaa-kabhii-na-kabhii-syed-amin-ashraf-ghazals?lang=hi


(यदि नाथ का नाम दयानिधि है तो दया भी करेगें कभी न कभी)


शुक्रवार, 18 मई 2018

गजल

अपना अपनी काबिल लोक
बाँकी सभ छै जाहिल लोक

असगर असगर अपने आप
चुप्पे पीबै आमिल लोक

छाँटल जेतै कहिए कहि क'
बेकारक ई फाजिल लोक

कहियो सार्थक सुंदर चीज
करबे करतै हासिल लोक

बाँचल रहलै काँचे फोंक
चीड़ल गेलै सारिल लोक

रखने सभ किछु के उम्मेद
जीवन जीबै हारिल लोक

सभ पाँतिमे 22-22-22-21 मात्राक्रम अछि। सुझाव सादर आमंत्रित अछि।

गजल

ओकर संग ई जिनगीक असान बना देलक
सुख दुखमे हृदयके एक समान बना देलक

बुढ़हा गेल छल यौ बुद्धि विचार निराशामे
ज्ञानक रस पिआ ओ फेर जुआन बना देलक

अध्यात्मिक जगतके बोध कराक सरलतासँ
हमरा सन अभागल केर महान बना देलक

चाहक ओझरीमे मोन हजार दिशा भटकल
अध्ययनेसँ तृष्णा मुक्त परान बना देलक

अष्टावक्र गीता लेल विशेष गजल कुन्दन
कहितेमे हमर मजगूत इमान बना देलक

2221-2221-121-1222

(तेसर शेरक पहिल मिसराक अन्तिम
लघुके दीर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि)

© कुन्दन कुमार कर्ण

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गुरुवार, 17 मई 2018

हिंदी फिल्मी गीतमे बहर-15

गजलक मतलामे जे रदीफ-काफिया-बहर लेल गेल छै तकर पालन पूरा गजलमे हेबाक चाही मुदा नज्ममे ई कोनो जरूरी नै छै। एकै नज्ममे अनेको काफिया लेल जा सकैए। अलग-अलग बंद वा अंतराक बहर सेहो अलग भ' सकैए संगे-संग नज्मक शेरमे बिनु काफियाक रदीफ सेहो भेटत। मुदा बहुत नज्ममे गजले जकाँ एकै बहरक निर्वाह कएल गेल अछि। ओना उर्दू केर पुरान नज्ममे निश्चित रूपे बहर भेटत मुदा अंग्रेजी प्रभावसँ सेहो उर्दू प्रभावित भेल आ बिना बहरक नज्म सेहो लिखाए लागल। मैथिलीमे बहुत लोक गजलक नियम तँ नहिए जानै छथि आ ताहिपरसँ कुतर्क करै छथि जे फिल्मी गीत बिना कोनो नियमक सुनबामे सुंदर लगैत छै। मुदा पहिल जे नज्म लेल बहर अनिवार्य नै छै आ जाहिमे छै तकर विवरण हम एहि ठाम द' रहल छी-----------------

आइ देखू "शक्ति" फिल्म केर ई नज्म जे कि लता मंगेशकरजी द्वारा गाएल गेल अछि। नज्म लिखने छथि आनंद बख्शी। संगीतकार छथि आर.डी.बर्मन। ई फिल्म Sept 22, 1982 मे रिलीज भेलै। एहिमे अमिताभ बच्चन, स्मिता पाटिल, दिलीप कुमार, राखी आदि कलाकार छलथि।


हमें बस ये पता है वो बहुत ही खूबसूरत है 
लिफ़ाफ़े के लिये लेकिन पते की भी ज़रूरत है

( एहि दू पाँतिक मात्राक्रम अछि 1222 1222 1222 1222)

हम ने सनम को ख़त लिखा, ख़त में लिखा
ऐ दिलरुबा, दिल की गली शहरे वफा

(एहि स्थायीक मात्राक्रम अछि 2212 2212 2212)

पीपल का ये पत्ता नहीं, काग़ज़ का ये टुकड़ा नहीं
इस दिल के ये अरमान हैं, इस में हमारी जान है
ऐसा ग़ज़ब हो जाये ना रस्ते में ये खो जाये ना
हम ने बड़ी ताक़ीद की, डाला इसे जब डाक में
ये डाक बाबू से कहा हम ने सनम को  खत लिखा

बरसों जबाबे यार का, देखा किये हम रास्ता
एक दिन वो ख़त वापस मिला और डाकिये ने ये कहा
इस डाकखाने में नहीं, सारे ज़माने में नहीं
कोई सनम इस नाम का कोई गली इस नाम की
कोई शहर इस नाम का हम ने सनम को खत लिखा

(उपरक दूनू अंतराक मात्राक्रम 2212 2212 2212 2212 अछि) एहि नज्मक ई विशेषता जे एहिमे "शहर" शब्दक गिनती हिंदी जकाँ कएल गेल छै अन्यथा उर्दूमे शहर केर मात्रा दीर्घ लघु होइत छै। एकर तक्ती उर्दू हिंदी नियमपर कएल गेल अछि। ई गीत एहिठाम सुनि सकैत छी.........




शनिवार, 12 मई 2018

गजल

मोन टुटलै बाते बातमे
गाँठ पड़लै बाते बातमे

महँगी एलै धीरे धीरे
हाथ खगलै बाते बातमे

ने हरनी ने मरनी लेकिन
खेत बिकलै बाते बातमे

हम ईहो लेब ओहो लेब
मोन बदलै बाते बातमे

बड़ी दूर अरिआइत देलक
संग छुटलै बाते बातमे

सभ पाँतिमे 22-22-22-22 मात्राक्रम अछि। दू टा अलग अलग लघुकेँ दीर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि। सुझाव सादर आमंत्रित अछि।


शुक्रवार, 11 मई 2018

भजनपर गजलक प्रभाव-1

भारतीय भजन (सभ भाषा)मे गजलक बहुत बड़का प्रभाव छै। एकर कारण छै बहरमे भेनाइ(वार्णिक छंद)। मैथिलीक पहिल अरूजी अपन गजलशास्त्रमे लिखै छथि जे "सरल वार्णिक छंद (वर्ण गानि) गेबामे सभसँ कठिन छै ताहिसँ कम कठिन मात्रिक छंद छै आ सभसँ सरल गेबामे वार्णिक छंद छै। गजलमे वार्णिक छंद, काफिया होइत छै मुदा ताहि संग रदीफ सेहो होइत छै जाहि कारणसँ गजल गेबा लेल आर बेसी उपयुक्त भ' जाइत छै। रदीफ गजल लेल अनिवार्य नै होइत छै मुदा तेहन भ' ने सटल रहै छै जे ओ गजलक मौलिकताक पहिचान सेहो बनि जाइत छै। रदीफेसँ कियो गुणी पाठक पहिचान जाइ छथि जे ई किनकर गजल अछि। गजलमे कोनो एकटा रदीफक प्रयोग भ' गेल छै तकरे फेरसँ दोसर शाइर द्वारा प्रयोग करब ओइ पहिल आ मूल गजलक लोकप्रियताकेँ देखबै छै। आइसँ हम किछु एहन भारतीय भाषाक भजन (सभ भाषा) देखा रहल छी जे कि स्पष्टतः गजलसँ प्रभावित भेल अछि। एहि कड़ीक पहिल खंडमे हम स्वामी ब्रह्मानंद जीक भजन आ इब्न ए इंशाजीक गजल लेलहुँ अछि। उर्दूक महान शाइर इंशाजीक जन्म 1927 मे भेल छलनि। हुनकर एकटा गजलक शेर अछि...........

दिल इश्क़ में बे-पायाँ सौदा हो तो ऐसा हो
दरिया हो तो ऐसा हो सहरा हो तो ऐसा हो

पूरा गजल रेख्ता केर एहि लिंकपर पढ़ि सकैत छी https://www.rekhta.org/ghazals/dil-ishq-men-be-paayaan-saudaa-ho-to-aisaa-ho-ibn-e-insha-ghazals?lang=hi  एहि गजलकेँ आबिदा परवीनजीक अवाजमे निच्चा सुनि सकैत छी

(दिल इश्क़ में बे-पायाँ सौदा हो तो ऐसा हो)

इंशाजीक एहि गजलक रदीफ "हो तो ऐसा हो" केर प्रयोग स्वामी ब्रह्मानंद (जन्म 14 July 1944) अपन भजनमे केलथि। ई भजन एना अछि.......

राम दशरथ के घर के जन्मे घराना हो तो ऐसा हो
लोग दर्शन को चले आये सुहाना हो तो ऐसा हो 

बहुत गायक सुहाना केर बदला "लुभाना" केर प्रयोग केने छथि। ई स्वाभाविक छै जे लोककंठमे बसल गीतक शब्द कालखंडमे बदलि जाइत छै आ असल स्रोत धरि पहुँचबामे बहुत कष्ट होइत छै। ई गीत एहिठाम सुनू....... 


(राम दशरथ के घर के जन्मे घराना हो तो ऐसा हो)

बहुत ठाम ब्रह्मेनंदजीक नामसँ एहनो गीत चलैए.....

कृष्ण घर नंद के घर जन्मे दुलारा हो तो ऐसा हो
लोग दर्शन को चले आये सुहाना हो तो ऐसा हो

बहुत ठाम एहनो सुनबा लेल भेटल..........

सदा शिव शंभु वरदाता दिगंबर हो तो ऐसा हो
हर सब दुख भक्तन के दयाकर हो तो ऐसा हो

ई गीत निच्चा सूनि सकैत छी.......



(सदा शिव शंभु वरदाता दिगंबर हो तो ऐसा हो)

एहि रदीफसँ युक्त आर भर्सन सभ सुनबा लेल भेटि सकैए आ ई इब्नेजीक गजलक प्रभाव अछि। स्पष्ट अछि इंशाजीक गजल भजनपर बहुत बेसी प्रभाव छोड़लक।


बुधवार, 2 मई 2018

गजल

दुइए दिनक मनमानी रे भाइ
जल्दिये जेतौ सुलतानी रे भाइ

दुख कि दर्दक रंग धरती सन के
नोरक रंग असमानी रे भाइ

बिला गेल सुख चैन भूख पियास
बड़ लेलही कुर्बानी रे भाइ

संबंधक बदला अतबे भेटल
सोना रे भाइ चानी रे भाइ

पुजा लेलही जकरा तों झटपट
हमरे रहै जजमानी रे भाइ

सभ पाँतिमे 222-222-222 मात्राक्रम अछि। दू टा अलग अलग लघुकेँ दीर्घ मानबा छूट लेल अछि। सुझाव सादर आमंत्रित अछि।

तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों