भारतीय भजन (सभ भाषा)मे गजलक बहुत बड़का प्रभाव छै। एकर कारण छै बहरमे भेनाइ(वार्णिक छंद)। मैथिलीक पहिल अरूजी अपन गजलशास्त्रमे लिखै छथि जे "सरल वार्णिक छंद (वर्ण गानि) गेबामे सभसँ कठिन छै ताहिसँ कम कठिन मात्रिक छंद छै आ सभसँ सरल गेबामे वार्णिक छंद छै। गजलमे वार्णिक छंद, काफिया होइत छै मुदा ताहि संग रदीफ सेहो होइत छै जाहि कारणसँ गजल गेबा लेल आर बेसी उपयुक्त भ' जाइत छै। रदीफ गजल लेल अनिवार्य नै होइत छै मुदा तेहन भ' ने सटल रहै छै जे ओ गजलक मौलिकताक पहिचान सेहो बनि जाइत छै। रदीफेसँ कियो गुणी पाठक पहिचान जाइ छथि जे ई किनकर गजल अछि। गजलमे कोनो एकटा रदीफक प्रयोग भ' गेल छै तकरे फेरसँ दोसर शाइर द्वारा प्रयोग करब ओइ पहिल आ मूल गजलक लोकप्रियताकेँ देखबै छै। आइसँ हम किछु एहन भारतीय भाषाक भजन (सभ भाषा) देखा रहल छी जे कि स्पष्टतः गजलसँ प्रभावित भेल अछि। एहि कड़ीक दोसर खंडमे हम मोमिन ख़ाँ मोमिन जीक गजल आ गोस्वामी बिंदुजी महराज जीक भजन ल' रहल छी। उर्दूक महान शाइर मोमिनजीक जन्म 1800 मे भेल छलनि। हुनकर एकटा गजलक शेर अछि...........
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
वही या'नी वा'दा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो
पूरा गजल रेख्ता केर एहि लिंकपर पढ़ि सकैत छी https://www.rekhta.org/ghazals/vo-jo-ham-men-tum-men-qaraar-thaa-tumhen-yaad-ho-ki-na-yaad-ho-momin-khan-momin-ghazals?lang=hi
एहि गजलकेँ बेगम अख्तरजीक अवाजमे निच्चा सुनि सकैत छी...
(वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो)
मोमिनजीक एहि गजलक रदीफ "तुम्हें याद हो कि न याद हो " केर प्रयोग गोस्वामी बिंदुजी महराज (जन्म 1893) अपन भजनमे केलथि। ई भजन एना अछि.......
अधमों को नाथ उबारना तुम्हें याद हो कि न याद हो।
मद खल जनों का उतारना तुम्हें याद हो कि न याद हो॥
प्रह्लाद जब मरने लगा, खंजर पै सिर धरने लगा।
उस दिन का खंम्भ बिदारना तुम्हें याद हो कि न याद हो॥
धृतराष्ट्र के दरबार में दुखी द्रौपदी की पुकार में।
साड़ी के थान संवारना तुम्हें याद हो कि न याद हो।
सुरराज ने जो किया प्रलय, ब्रजधाम बसने के समय।
गिरवर नखों पर धारना तुम्हें याद हो कि न याद हो॥
हम ‘बिन्दु’ जिनके निराश हो, केवल तुम्हारी आस हो।
उनकी दशाएँ सुधारना तुम्हें याद हो कि न याद हो॥
बिंदुजीक पोथीमे ई भजन हुनक पोथी "मोहन मोहिनी"सँ लेल गेल अछि। ई गीत एहिठाम सुनू.......
(यदि नाथ का नाम दयानिधि है तो दया भी करेगें कभी न कभी)
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
वही या'नी वा'दा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो
पूरा गजल रेख्ता केर एहि लिंकपर पढ़ि सकैत छी https://www.rekhta.org/ghazals/vo-jo-ham-men-tum-men-qaraar-thaa-tumhen-yaad-ho-ki-na-yaad-ho-momin-khan-momin-ghazals?lang=hi
एहि गजलकेँ बेगम अख्तरजीक अवाजमे निच्चा सुनि सकैत छी...
मोमिनजीक एहि गजलक रदीफ "तुम्हें याद हो कि न याद हो " केर प्रयोग गोस्वामी बिंदुजी महराज (जन्म 1893) अपन भजनमे केलथि। ई भजन एना अछि.......
अधमों को नाथ उबारना तुम्हें याद हो कि न याद हो।
मद खल जनों का उतारना तुम्हें याद हो कि न याद हो॥
प्रह्लाद जब मरने लगा, खंजर पै सिर धरने लगा।
उस दिन का खंम्भ बिदारना तुम्हें याद हो कि न याद हो॥
धृतराष्ट्र के दरबार में दुखी द्रौपदी की पुकार में।
साड़ी के थान संवारना तुम्हें याद हो कि न याद हो।
सुरराज ने जो किया प्रलय, ब्रजधाम बसने के समय।
गिरवर नखों पर धारना तुम्हें याद हो कि न याद हो॥
हम ‘बिन्दु’ जिनके निराश हो, केवल तुम्हारी आस हो।
उनकी दशाएँ सुधारना तुम्हें याद हो कि न याद हो॥
बिंदुजीक पोथीमे ई भजन हुनक पोथी "मोहन मोहिनी"सँ लेल गेल अछि। ई गीत एहिठाम सुनू.......
(अधमों के नाथ उबारना तुम्हें याद हो कि न याद हो)
बिंदुजीक एहि भजनपर मोमिनजीक गजलक प्रभाव अछि। स्पष्ट अछि मोमिनजीक गजल भजनपर बहुत बेसी प्रभाव छोड़लक। बिंदुजीक एकटा आर आन प्रसिद्ध भजन अछि "यदि नाथ का नाम दयानिधि है तो दया भी करेगें कभी न कभी"। मोहन मोहिनीक बहुत भजन गजलसँ प्रभावित अछि। ओना "कभी न कभी" प्रसिद्ध शाइर दाग देहलवी (1831) केर एकटा गजलक अंश अछि https://www.rekhta.org/ghazals/naa-ravaa-kahiye-naa-sazaa-kahiye-dagh-dehlvi-ghazals?lang=hi जकरा बिंदुजी रदीफ जकाँ प्रयोग केलथि संगहि ईहो जानब रोचक जे बहुत बादमे सय्यद अमीन अशरफ़जी एही रदीफसँ एकटा गजल सेहो लिखलाह https://www.rekhta.org/ghazals/malaal-e-guncha-e-tar-jaaegaa-kabhii-na-kabhii-syed-amin-ashraf-ghazals?lang=hi
(यदि नाथ का नाम दयानिधि है तो दया भी करेगें कभी न कभी)
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