रविवार, 18 जुलाई 2021

हिंदी फिल्मी गीतमे बहर-35

गजलक मतलामे जे रदीफ-काफिया-बहर लेल गेल छै तकर पालन पूरा गजलमे हेबाक चाही मुदा नज्ममे ई कोनो जरूरी नै छै। एकै नज्ममे अनेको काफिया लेल जा सकैए। अलग-अलग बंद वा अंतराक बहर सेहो अलग भ' सकैए संगे-संग नज्मक शेरमे बिनु काफियाक रदीफ सेहो भेटत। मुदा बहुत नज्ममे गजले जकाँ एकै बहरक निर्वाह कएल गेल अछि। मैथिलीमे बहुत लोक गजलक नियम तँ नहिए जानै छथि आ ताहिपरसँ कुतर्क करै छथि जे फिल्मी गीत बिना कोनो नियमक सुनबामे सुंदर लगैत छै। मुदा पहिल जे नज्म लेल बहर अनिवार्य नै छै आ जाहिमे छै तकर विवरण हम एहि ठाम द' रहल छी। एक बेर फेर बहरक कमाल देखू फिल्मी गीतमे देखू। अजुका रचना अछि "ये मुलाकात एक बहाना है"। एहि रचनाक हरेक पाँतिमे 212-212-1222 मात्राक्रम अछि। ई रचना वस्तुतः गजल छै। ई फिल्म "खानदान" मे गाएल गेल रहै। गीतकार छथि नक्श ल्यालपुरी। संगीतकार छथि खैय्याम। गायिका लता मंगेशकर। ई फिल्म 1979 मे आएल रहै जाहिमे जीतेन्द्र, सुलक्षणा पंडित, बिंदिया आदि कलाकार छलथि। एहि ठाम ईहो कहब आवश्यक जे 1965 मे सेहो खानदान नामक फिल्म आएल छल जाहिमे सुनील दत्त एवं नूतन आदि कलाकार छलथि।

ये मुलाकात एक बहाना है
प्यार का सिलसिला पुराना है

धड़कनें धड़कनों में खो जाएँ
दिल को दिल के करीब लाना है

मैं हूँ अपने सनम की बाहों में
मेरे कदमों तले ज़माना है

ख़्वाब तो काँच से भी नाज़ुक हैं
टूटने से इन्हें बचाना है

मन मेरा प्यार का शिवाला है
आपको देवता बनाना है

(212-212-1222) ई गजल निच्चा सुनि सकैत छी--


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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों