गजल
भूख की की नै करा दै छै
सुस्तके कोसो चला दै छै
भाग्य रहितो कर्म बिनु किछु नै
बात ई गीता बुझा दै छै
पीब' खातिर छै शराबे नै
आँखिए हुनकर मता दै छै
साधिजे संकल्प रखने छै
दृष्टिए ओकर बता दै छै
कालके आगू चलल ककरा
केहनो गरदनि झुका दै छै
✍️ अभिलाष ठाकुर
मात्राक्रम अछि 2122-212-22
सभ पाँतिमे! सुझाव आमंत्रित अछि 💐
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