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अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) 2022 मे फेर अपन सुपरहिट क्विज शो ‘कौन बनेगा करोड़पति (Kaun Banega Crorepati)’ सँ टीवीपर एलाह। एहि "कौन बनेगा करोड़पति" केर प्रोमोमे एकटा कंटेस्टेंट अमिताभ बच्चन (Amitabh
Bachchan KBC)क सामने हॉट
सीटपर बैसल छथि आ बिग बी कंटेस्टेंटसँ सवाल कऽ रहल छथिन। बिग बी कंटेस्टेंटसँ पूछै
छथिन-
‘एहिमेमेसँ कोन वस्तुमे जीपीएस केर टेक्नोलॉजी लागल छै?’
एहि संगे बच्चन जी कंटेस्टेंटकेँ चारिटा ऑप्शन दै छथिन।
अमिताभ बच्चन एहि सवालक जवाब के लिए ऑप्शन दैत छथिन- ‘A) टाइपराइटर,
B) टेलीविजन,
C) सैटेलाइट,
D) 2 हजारक नोट.’ सामने बैसल
कंटस्टेंट एहि प्रश्नक जवाबमे D ऑप्शन यानी 2 हजारक नोटकेँ चुनैत छथि। एहिपर बिग बी कहलखिन जे ई जवाब गलत
अछि मुदा कंटेस्टेंटकेँ एहिपर विश्वास नै होइत छै। ओ कहै छै ‘अहाँ हमरा संग मजाक (प्रैंक) कऽ रहल छी ने"
एहिपर बिग बी कहैत छथिन जे अहाँक उत्तर सचमे गलत अछि।
कंटेस्टेंट फेर कहै छनि जे हम न्यूजमे तँ इएह देखने रहियै तँ एहिमे हमर कोन गलती?
गलती तँ पत्रकार सभहक छै।
अमिताभ बच्चन एहिपर कहैत छथिन-गलती पत्रकारक हेतै मुदा नोकसान तँ अहाँक भेल ने, ओ आगू कहैत
छथिन जे फेक खबरिसँ सदिखन बचबाक चाही। ओ कहलखिन- ‘ज्ञान जहाँसँ भेटए बटोरि ली मुदा ओहिसँ पहिने ओकरा चेक कऽ
ली जे ई सही छै वा कि नै"। प्रोमो शेयर करैत सोनी टी.भी द्वारा ई लिखल गेल कैप्शन छल-
‘हम सभ एकटा एहन लोककेँ जानै छी जे हमरा अनवैरिफाइड सनसनी
खबरि सुनाबैए। ओहन लोककेँ कमेंटमे टैग करू आ हुनकासँ कहू जे-‘ज्ञान जहाँसँ भेटए बटोरि ली मुदा ओहिसँ पहिने ओकरा चेक कऽ
ली जे ई सही छै वा कि नै"। ई पूरा भीडियो एहि लिंकपर देखि सकैत छी- https://www.youtube.com/watch?v=r5JS2fZU70U
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उपरमे हम टीवी बला प्रसंग एहि लेल लेलहुँ जे बर्ख 2021 मे प्रकाशित तारानंद झा 'तरुण' जीक कथित गजल संग्रह "घर-घर इजोत रहय"
केर भूमिका
पढ़बाक लेल भेटल। भेटल तँ पूरा पोथी मुदा हम भूमिके धरि रहब। एहि संग्रहमे कुल
दूटा भूमिका छै पहिल गंगेश गुंजन जीक लिखल आ तकर बाद दोसर अपने लेखक द्वारा। तरूणजी अपन भूमिकामे लिखै
छथि (पृष्ठ-11)-
"ओना गजलक
किछु व्याकरण सेहो होइत छैक। जेना किछु विद्वान साहित्य प्रेमीक अभिमत छनि। ताहि
सँ हम पूर्णतः अनभिज्ञ रहल छी। विगत कतेको दशक सँ पत्र-पत्रिका मे छिड़ियैल गजल सभ पढ़बाक सुयोग भेटल अछि,
वैह हमर लिखल गजलक आधार रहल अछि। तैं जँ गजलक व्याकरणक
अनुरूप ई गजल सभ अनफिट हो तँ ताहि लेल क्षमा चाहब"
तरुणजीक लिखलसँ ई स्पष्ट अछि जे ओ पत्र-पत्रिकामे प्रकाशित गजल पढ़ि एहन लिखलनि। आ तँइ अमिताभ
बच्चनकेँ कहए पड़ैत छनि- ज्ञान जहाँसँ भेटए बटोरि ली मुदा ओहिसँ पहिने ओकरा चेक कऽ ली जे ई सही छै वा कि नै"। आ ताहिमे तरुणजी फेल भऽ गेल छथि आ एहि उम्रमे जा कऽ सभ
मेहनति नोकसान भऽ गेलनि। । ओना हम तँ कहब जे तरुणजी सहीसँ कोनो पत्रिका नै पढ़ने
हेता कारण जँ पढ़ने रहितथि तँ हुनका जीवन झा, कविवर सीताराम
झा,
मधुपजी आदिक गजल भेटल रहितनि आ हुनका गजलक व्याकरणसँ परिचय
सेहो भेल रहितनि। आश्चर्य जे तरुणजी "भारती मंडन" सन पत्रिकासँ जुड़ल छथि आ ओ अध्य्यन करबामे पछुआएल रहै छथि।
गंगेश गुंजनजी अपन भूमिकामे गाएले गीत गेने छथि ओहिमे कोनो
नव बात नै छै। बस हमरा हुनकासँ एकटा बात पुछबाक अछि जे जीवन झा,
कविवर सीताराम झा, मधुपजी आदि सभ गजलक व्याकरणपर गजल लिखने छथि तइ हिसाबे ओहो
सभ आधुनिक गजल पंडित कहेता कि नै कहेता (देखू पृष्ठ-8)।
कुल मिला कऽ "घर-घर इजोत रहय"
नामक पोथीमे
जे रचना सभ अछि से गजल नै अछि, कारण ओहिमे
बहर-काफिया आदि जे गजलक अनिवार्य तत्व छै तकर पालन नहि भेल छै। ओ रचना सभ कविता,
गीत आ कि आन किछु भऽ सकैए मुदा गजल नै अछि।
जिनका ई बुझाइत होइन जे एहिमे बहर छै ओ बहरक निर्धारण
मात्रा सहित कऽ देथि।।
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मनोज शाण्डिल्य केर कथित गजल संग्रह "बाजब बदलि रहल छै" केर भूमिकाक अंश देखल जाए-- "हमरा लेल गजलमे मुख्यतः दूटा तत्व आवश्यक अछि, जकर हम
यथासंभव अनुपालन करैत छी। प्रथम अछि, गजलक पारम्परिक शिल्पक आधारपर,
मतला, बहर, रदीफ आ काफियाक अनुपालन। एतय दूटा बिन्दुपर हम छूट लैत छी- पहिल ई जे, हम मकतामे
तखल्लुसक प्रयोग नहिए जकाँ करैत छी आ दोसर ई जे हम बहरक अनुपालन अंकगणितीय पद्धतिक
बजाए स्वरक आधारपर करैत छी। से एहि कारणे जे हम मानैत छी जे तखल्लुसक प्रयोग कयने
गजलमे कोनो गुणात्मक वृद्धि नहि होइत छै आ जहाँ धरि बहरक सवाल छैक तँ मात्रा-गणनाक उद्देश्य इहो होइत छैक जे उच्चारणमे संतुलन बनल रहै, जकर अनुपालन
हम स्वरक आधारपर करिते छी। दोसर आवश्यक तत्व जे हमरा लेल अछि से अछि कथ्य। एहि
मामिलामे हम हिन्दीक कालजयी गजलकार दुष्यंत कुमारक 'स्कूल'क अनुगामी छी",
(पृष्ठ-9)
एहि अंशमे सभ भ्रमे-भ्रम अछि मुदा दू टा नमहर भ्रमपर हम बात करब। पहिल भूमिकामे जे बहरक अनुपालन स्वरक आधारपर करबाक बात भेल छै से आखिर की छै?
कोन छंद, कोन बहर, कोन एहन मीटर छै जे कि स्वरक निश्चित आधारपर नै छै। सभ छै
जे मात्रिक छंदमे दोहेकेँ लिअ तँ 13-11 केर अलावे ओहिमे आरो नियमक पालन करए पड़ैत छै। तँइ जे कियो
ई कहथि जे हम स्वरक आधारपर गजल लिखैत छी तँ सीधे बूझि लिअ जे ओ सुविधावादी छथि आ
अपना हिसाबें बाजि रहल छथि कारण जखन कोनो निश्चित स्वरपर रचना हेतै तँ ओ छंदोबद्ध
हेतै जेना अनुष्टुप, दोहा, सवैया, गजल आदि। मुदा जँ अनिश्चित स्वरक आधारपर रचना हेतै तँ ओ
आधुनिक कविता, गीत आदि हेतै। एहि भूमिकाक सभसँ आपत्तिजनक बात ई जे लेखक अपन कमजोरी नुकेबाक
लेल दुष्यंत कुमार केर नाम लऽ लेलाह। दुष्यंत कुमार हिंदी गजलमे कथ्य केर परिवर्तन
केलाह मुदा बहरक संगे। जी हाँ, अंकगणीतीय बहरक पालन करैत। हम अनेक ठाम उदाहरण देने छी वएह
उदाहरण सभ एहू ठाम दऽ रहल छी-
हो गई है / पीर पर्वत /-सी पिघलनी /
चाहिए,
इस हिमालय / से कोई गं / गा निकलनी /
चाहिए
एहि गजल बहर
अछि 2122
/ 2122 / 2122 / 212 आब अहाँ
सभ ऐ गजलकेँ उपरा कऽ जाँचि सकैत छी।
मत कहो आकाश में कुहरा घना है
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है
एहि गजल बहर अछि 2122 / 2122 /
2122 आब अहाँ सभ ऐ गजलकेँ उपरा
कऽ जाँचि सकैत छी।
एकर अतिरिक्त दुष्यंत कुमारक आनो गजलकेँ अहाँ सभ अपने जाँचि
सकैत छी। मैथिलक स्वाभाव होइत छै जे जखन एकटा सबूत भेटि जाइत छै तखन ओ दोसर नाम लऽ
लेत तँइ हमरा बूझल अछि जे मनोज शाण्डिल्य केर भविष्यक पोथी सभमे अदम गोंडवी आ कि
आनो नाम लीखल भेटत तँइ हम अही ठाम अदम गोंडवीक दू टा गजल आ ओकर बहर देखा रहल छी-
ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में
मुसल्सल फ़न का दम घुटता है इन अदबी इदारों में
एहि गजल बहर अछि 1222 / 1222 /
1222 / 1222 आब अहाँ सभ ऐ
गजलकेँ उपरा कऽ जाँचि सकैत छी।
भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो
या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो
एहि गजल बहर अछि 2122 / 2122 /
2122 / 212 आब अहाँ सभ ऐ
गजलकेँ उपरा कऽ जाँचि सकैत छी।
कुल मिला कऽ देखी तँ मनोज शाण्डिल्य अपन कमजोरीकेँ दुष्यंत
कुमारपर आरोपित कऽ भ्रम पसारने छथि। पाठककेँ तय करबाक छनि जे एहन भ्रमित लेखक केर
रचना संगे की करबाक चाही। कुल मिला कऽ एक बेर फेर हम कही जे "बाजब बदलि रहल छै" नामक पोथीमे जे रचना सभ अछि से गजल नै अछि कारण एहिमे बहरक
पालन नै अछि। ओ रचना सभ कविता, गीत आ कि आन
किछु भऽ सकैए मुदा गजल नै अछि।
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"नब युद्धक ओरिआन" ई पोथी छनि प्रेमचंद पंकजकेँ। एहिमे संकलित रचना सभकेँ हमरा
"कथित गजल" कहबामे सेहो लाज होइत अछि। एहि पोथीक भूमिका लेखक छथि
कमलमोहन चुन्नू। चुन्नूजीक कथित गजल संग्रहक आलोचना हम कऽ चुकल छी आ जे पढ़ने
हेताह से बुझिते हेताह जे चुन्नूजीक लिखल भूमिका बला पोथीक रचनाक स्तर केहन हेतै खास कऽ जखन कि ओकरा जखन गजल कहल गेल
हो। कुल मिला कऽ बुझिए गेल हेबै जे अहू पोथीक रचना सभ गजल नै अछि।
5
"टाँगल मोलायम रौद" ई कथित गजल संग्रह छनि रामेश्वर निशांत जीक। एहि पोथीमे कुल
दू टा भूमिका अछि पहिल रामलोचन ठाकुरजीक आ दोसर निशांतजीक अपने। संगहि-संग शारदा सिन्हाजीक आशीर्वचन सेहो छैक पोथीक पछिला कभर पेजपर। रामलोचनजी अपन
भूमिकामे लिखै छथि जे " मतला, काफिया,
बहर आदि एकर बाधा नहि होइत छैक" (पृष्ठ-6), रामलोचन जी गजल विधाक नहि छलाह तइयो एहन बात साहसपूर्वक लीखि सकैत छलाह।
रामेश्वरजी अपन भूमिकामे लिखै छथि जे ".. तैं बहर (छंद)क दृष्टिएँ जटिल रहितो कोनो भाषामे लिखल गजल श्रेष्ठ आ
सुंदर भ' जाइछ",
(पृष्ठ-9), आ ई बात
सही छै मुदा दुख अतबे जे रामेश्वर जीक कथित गजल सभमे बहरक कोनो ठोस प्रमाण नहि
भेटल। यत्र-कुत्र बहरे मीरक प्रवाह सन बुझना जाइत छै मुदा ओहो कोनो सायास रूपमे नहि छै। संभवतः आने जकाँ निशांतजी
इएह बूझै छथि जे जेहन पाँति लिखा गेलै सएह बहर (छंद) भऽ गेलै।
कुल मिला कऽ अहू पोथीक रचना सभ गजल नहि अछि कारण एहिमे बहरक
पालन नै अछि। मुदा हमरा ई मानबामे कोनो संकोच नहि जे एहि संग्रह रचना
सभमे काफिया ओ रदीफ नीक जकाँ निर्वाह कएल गेल छै (किछु अपवाद छोड़ि)। तँइ हमरा नजरिमे मैथिलीमे कथित गजलक जे शृंखला छै ताहिमे
ई पोथी अछि। सुधांशु शेखर चौधरी, बाबा बैद्यनाथ,
अरविन्द ठाकुर एवं बैकुंठ झा बाद ई पाँचम एहन लोक छथि जिनकर
रचना कम्मे मेहनतिसँ गजल बनि सकैए। जँ हमर बात निशांतजी लग कहियो पहुँचनि तँ जरूर ओ एहि बातपर
गौर करथि।
एहि पोथीमे शारदा सिन्हाजीक आशीर्वचन की मानि कऽ लेल गेल छै
से नहि पता। जँ संगीतक कोनो पोथीपर शारदाजीक वचन रहितनि तँ ओ मानबाक बाध्यता हमरा
रहैत मुदा एहन नै छै जे शारदा सिन्हाजीक लिखलासँ कोनो रचना गजलमे बदलि जेतै। कुल
मिला कऽ देखी तँ रामेश्वरजीक रचना गजल तँ नहि छनि मुदा गजलसँ बेसी दूरो नहि छनि।
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"सजना सिनेहिया" केर लेखक छथि सतीश साजन। एहि पोथीमे गीत बेसी अछि आ एहन
रचना जकरा गजल कहल गेल छै से कम। ओना ई सभ गजल छैहो नै। एहि पोथीमे कुल दू टा
भूमिका अछि पहिल अजित आजाद आ दोसर लेखक केर अपने। स्वभावतः जखन भूमिका
लेखक अजित आजाद छथि ओ उपन्यासोकेँ गजल कहि सकैत छथि, कोनो भारी बात नै। ई स्पष्ट अछि जे एहि पोथीमे गजल विधाक
कोनो रचना नै अछि।
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"स्वेद-राग" ई कथित गजल संग्रह धीरेन्द्र प्रेमर्षिजीक संपादनमे
प्रकाशित भेल छनि। एहि पोथीमे
नेपालक युवा सभहक रचना सभ गजलक नामसँ आएल अछि। एहि युवा सभमेसँ किछु युवा मेहनती
भऽ सकै छलाह मुदा ओ सभ प्रेमर्षिजीक पसारल भ्रममे फँसल छथि। आइ हम कि कियो युवा
सभकेँ ई कहि उत्साहित कऽ सकैत छी जे चलू काल्हि भेने ई सभ मेहनति करता। मुदा अपन
कमजोरी नुकेबाक अछि तँइ युवो सभ मेहनति नै करथि एहन बात सोचब साहित्य संगे छल
हेतै। युवा सभकेँ मेहनति करबाक चाही मुदा एहि संग्रहमे प्रेमर्षिजी अपन भ्रम,
अपन कमजोरीकेँ नेपालक युवा लेखकपर लादि देने छथि आ उम्मेद
करै छथि जे युवाक कमजोरी बहन्ने हम सुरक्षित बचि जाएब। हिनक किछु भ्रम,
कमजोरी आ कुंठा हिनके लिखल भूमिकामे भेटैए। पृष्ठ- 13 पर
प्रेमर्षिजी लिखै छथि- "तथापि प्रश्न उठैत अछि जे जकरा हम गजल कहि रहल छियैक वा जे रचना सभ एहिमे
सङ्ग्रहित अछि से की गजले छियैक? जँ आइसँ डेढ़
दशक पहिने ई प्रश्न अबैत तँ एक नजरि देखितहिँ केओ कहि,
दितए-बिल्कुल,
ई गजले छियैक। मुदा पछिला समय बगय-बानि आ आन्तरिक गुणवत्तापर मात्र नहि भऽ गजलक गणितपर सेहो किछु काज होबऽ लागल
छैक। आ जखन गणितीय सूत्रसभक खाँचपर कोनो रचना दुरुस्त नहि बैसैत छैक तँ ओकरा गजल
कहबासँ परहेज कएनिहार एकटा जमात सेहो सक्रिय अछि सम्प्रति। ओहि जमातक विचार आ अभियानक सेहो
सम्मान करैत छी हम। हमर धारणा अछि जे सूत्रबद्ध काजक अभ्यास कालान्तरमे विशेष
गतिशीलताक मार्ग सेहो प्राप्त करत।
कोनो फसलक बीज कतहुसँ आएल हुअए,
जाहि जमीनमे ओकरा बुनल गेल छैक ओहि माटिक उर्वराशक्ति एवं
रौद-बसात ओकरा जाहि रूपें जनमऽ, पनपऽ आ फौदाएमे प्रभाव पाड़ैत छैक से ओहि फसलक गुण होइत
छैक। ई प्राकृतिक नियम छियैक। मैथिली भाषाक स्वरूप, सुगन्ध आ सौष्ठव गजलकेँ कोन रूपें अंगेजने अछि आ समय-क्रममे होइत रहल बाउग किंवा रोपनीसँ हरिआइत गजल-वृक्षमे कोन तरहक फल लागल अछि; उएह मैथिली
गजलक सुच्चा सुआद आ स्वरूप भऽ सकैत छैक। आइ जँ पं. जीवन झा सदृश प्रारम्भिक गजलकारलोकनि अपन मानसक माटिमे सानिकऽ मैथिलीक चाँचरमे
गजलक बाउग नहि कएने रहितथि तँ जानि नहि सोमदेव, सियाराम झा 'सरस', कलानन्द भट्ट, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, डॉ. राजेन्द्र विमल,
डॉ. तारानन्द वियोगी,
फजलुर्रहमान हाशमी, डॉ. रामचैतन्य धीरज,
जगदीशचन्द्र ठाकुर 'अनिल', डॉ. धीरेन्द्र धीर,
धीरेन्द्र धीरज, जनार्दन ललन, डॉ. देवशङ्कर नवीन,
रामभरोस कापडि 'भ्रमर', डॉ. विभूति आनन्द,
डॉ. रामदेव झा,
बाबा वैद्यनाथ, डॉ. शेफालिका वर्मा,
डॉ. कमलमोहन चुन्नू,
डॉ. नरेन्द्र,
रोशन जनकपुरी, अजित आजाद, जियाउर्रहमान जाफरी, अशोक दत्त सदृश रचनाकारलोकनि गजल नामसँ किछु लिखबाक साहस
करितथि वा नहि! जँ उल्लिखित साहित्यकारसभक अतिरिक्तो सैकड़ो रचनाधर्मी गजलमे कलम नहि भँजैत
रहितथि तँ राजीवरञ्जन मिश्र, नवलश्री पङ्कज,
दीपनारायण विद्यार्थी, आशिष अनचिन्हार, मैथिल प्रशान्त, प्रदीप पृष्प, अमित मिश्र, कुन्दनकुमार कर्ण, बालमुकुन्द, अभिलाष ठाकुर, सुमित मिश्र आदिसन रचनाकार जानि नहि गजल अध्ययन-लेखनदिस प्रवृत भऽ पबितथि वा नहि।"
हुनकर एहि भूमिकाक शुरुआतमे एहन जमात केर चर्चा करै छथि जे
बिना नियम रचनाकेँ गजल कहबासँ परहेज करैए मुदा प्रेमर्षिजीमे एतेक साहस किएक ने
छनि जे ओ बिना नाम लिखने चर्चा करै छथि। साहित्यमे छथि तँ एकौ पौआ साहस रहबाक चाही
प्रेमर्षिजी लग। भूमिकाक दोसर भागमे प्रेमर्षिजी गजलक इतिहासकेँ गलत करबाक कुत्सित
प्रयास केलाह अछि। एहि प्रसंगमे मैथिली गजलक काज सेहो सार्वजनिक अछि आ प्रमर्षिजीक
कथन सेहो हम देलहुँ। पाठक तय कऽ लेताह।
एकर अतिरिक्त अही भूमिकामे प्रेमर्षिजी लिखै छथि (पृष्ठ-14)-
"मुदा
ओकरा (रचनाकेँ) खारिज करबाक करबाक अधिकार वा सामर्थ्य ककरो नहि रहैत छैक।"
एहि कथनक की
मतलब छै से हमरा नहि बुझाएल। रचनाकेँ कियो खारिज कइए ने सकैए मुदा कोनो रचनाकेँ लेखक जबरदस्ती लेबल लगा कऽ
परसबाक प्रयास करै छथि तँ ओहि लेबलकेँ खारिज करबाक अधिकार समीक्षक-आलोचककेँ जरूर देल गेल छै समाज द्वारा। आ तँइ ई कहबामे कोनो
संकोच नै जे एहि पोथीक रचना गजलक मापदंडपर नै अछि।
छोट कालखंड लेल प्रेमर्षिजी निमाहि लेताह मुदा भविष्यमे जखन
मेहनती युवा सभहक फौज रहतै तखन हुनकर काजक नामोनिशान नहि बचतनि।
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"विश्वग्रामक बलिवेदीपर" ई कथित गजल संग्रह छनि अजित आजाद केर। एहि पोथीमे कोनो
भूमिका नै अछि। आन लोकक कथित गजलपर लीखए बला, संग्रहमे
भूमिका लीखए बला अजितजी अपन संग्रहमे कोनो भूमिका किए ने देलाह से बात जँ गजलक
नामपर किछुओ लीखि देबए बला लोक सभ बूझि जाए तँ आधा समस्या ओहीठाम खत्म भऽ जेतै।
एहि संग्रह रचना सभ सेहो गजल नै अछि।
9
हम पहिनेहो कहने छी जे व्यक्तिगत तौरपर हमरा कोनो आजाद कि
बरबाद रचनासँ दिक्कत नै अछि। एकटा पाठक तौरपर हम ओकरो सभकेँ पढ़ैत छी। हमरा दिक्कत
तखन होइए जखन कि कोनो विधाक नामपर भ्रम पसारल जाइत छै। अपन कमजोरीकेँ नुकेबाक लेल
विधाक नियम संगे मजाक कएल जाइत छै। उपरमे जतेक पोथी जतेक लेखक केर नाम हम गनेलहुँ
से सभ अपन कमजोरी नुकेबाक लेल भ्रम पसारने छथि। आब पचास-सए रचना छै तँ कोने ने कोनो रचना कथ्य हिसाबें नीक हेबे करतै, किछु पाँति
नीक लगबे करतै मुदा तकर नाम गजले टा किएक? कविता राखि लिअ नाम जखन नियम केर पालन करिते नै छी तखन ओ
गजल कोना?
नमहर-नमहर भूमिका लिखल जाइए मुदा जँ एकौ पाँति ओहिमे अपन कमजोरीक बारेमे लीखि देल जाए तँ एहन थोड़े छै जे कोनो पाठक कि कोनो
आलोचक लेखककेँ फाँसी लगा देतै। मुदा जँ ई सभ अहिना भ्रम पसारैत रहता तँ कोनो ने
कोनो आलोचक हिनका सभकेँ नपैत रहत, आ अहिना बेकार कहैत रहत। लेखक अपन कमजोरीकेँ सार्वजनिक करैत
रचना लीखथि ई बेसी इमानदार ओ साहसी काज हेतै।
गजल नियम यदि सभ लेल छै तँ ओकर छूट सेहो सभ लेल छै। मुदा
छूटक उपयोग वएह कऽ सकैए जे कि अनुशासित होथि। बाँकी आलसी लोक लेल छूट की आ नियम की?