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शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2010
गजल
सध्यः अहाॅ, मुदा छी सपना एहि जीवन मे
सहजो सुख भऽ गेल कल्पना एहि जीवन मे
विहुॅसल ठोर विवश भऽ विजुकल,
मादक नैन नोर केर नपना एहि जीवन मे
अछि केॅ कतऽ श्रृंगार सजाओत्,
आश लाश पर कफनक झपना एहि जीवन मे
दुनियाॅ हमर एकातक गहवर,
भेल जिअत मुरूतक स्थपना एहि जीवन मे
दीप वारि अहाॅ द्वारि जड़यलहुॅ,
घऽर हम लोकक अगितपना एहि जीवन मे
गजल
अहॅक लेल रंजन, हमर भेल गंजन
केहेन खेल ई, रक्त सॅ हस्त मंजन
तरल नेह पर मात्र दुःखक सियाही,
जड़ल देह हम्मर अहॅक आॅखि अंजन
रचल गेल छल जे, सुखक लोक सुन्दर
चलल अछि प्रलय लऽ तकर सुधिप्रभंजन
मृतक हम, अहाॅ छी सुधा स्वर्ग लोकक
अहॅक लेल यौवन हमर गेल जीवन
गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010
गजल
कोनो वस्तु जखन हेड़ा जाइत छैक वा नष्ट भए जाइत छैक तकरा बादे ओकर महत्व बुझबा मे अबैत छैक। से साँचे।आइ सँ आठ-नए बर्ख पहिने जहिआ हम अपन परिवार, समाज, घर-आगँन के क्षणिक आवेश मे बिसरि अनचिन्हार बनि गेल रही तहिआ इ नीक लगैत रहए मुदा आब जखन की हमर आँगनक जेठ भौजी एहि बर्खक कलश-स्थापन सँ किछुए समय पू्र्व भगवतीक शरण मे चल गेलीह, हमरा लगैए
जे वास्तव मे हम अनचिन्हारे रहि गेलहुँ। हम केकरो चिन्हिए की नहि चिन्हिए मुदा जे-जे हमरा चिन्हैए से हमर संग छोड़बाक मोन बना
लेने अछि तकर अनुभव आब हमरा होइए। मुदा अनुभव भेनहे की हएत।समय पर केकरो वश नहि छैक। मुदा समय के फाड़ि भौजीक जे असीरबाद हमरा लग अछि ताही बले हम एतए हुनक आखर-तर्पण करबाक लेल आएल छी। प्रस्तुत अछि शब्द-श्रद्दांजलिक किछु ठोप बुन्न--------------------------------------------------
सभ बिसरलहुँ मुदा नाम अहाँक इयाद अछि
सच मानू जिनगी हमर आबाद अछि
हमर सभ किछु बस अँहिक देल थिक
नोर बनल चरणामृत हँसी परसाद अछि
भोगि लेब सभ तरहँक सुख पाइ सँ
अँहाक आँचर बिनु सभ बरबाद अछि
भनहि सभ बनि जाएत दुश्मन हमर
अनचिन्हार लग अँहिक असीरबाद अछि
शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010
गजल
दर्दक गीत गबैए अनचिन्हार
टूटल करेज जोड़ैए अनचिन्हार
नहि भेटैत छथि ओ हमरा
सपने मे देह छुबैए अनचिन्हार
महँगाइ अनुरूपे आमदनी नहि
हरिश्चन्द्र बनि रोहित बेचैए अनचिन्हार
जहिआ सँ हुनका देखलहुँ हम
सपना देखि करोट फेरैए अनचिन्हार
मीलि गेलै जखन ठोर सँ ठोर
प्रेमक संसार मे घुमैए अनचिन्हार
बुधवार, 6 अक्टूबर 2010
गजल
प्रस्तुत अछि अरविन्द ठाकुरक गजल
साभार विदेह
जनहित के एहि बजट मे एखन वित्तीय-क्षति अनुमाने पर अछि
हमरा एना किऐ लगैछ जे संकट हमर प्राणे पर अछि
अयोध्या मे रामलला लेल किऐ पड़ल बूइयाँ के संकट
भू-अर्जन के अखिल भारतीय भार जखन हनुमाने पर अछि
सगर देश के सभ इनार मे बैमानी के भांग घोरायल
बनखांट मे बैमानी के जांच-भार बैमाने पर अछि
लूटि-कूटिकए, भीख मांगिकए पेट भरैए लोक, तखन
संविधान केँ आत्मघात सँ तोड़ैक दोष किसाने पर अछि
मार्क्स आर एंजेल्स केँ पीयल, घंटल लाल-किताब मुदा
मोनक कोनो अन्तर्तम मे बस भरोस भगवाने पर अछि
गजल कहैत “अरबिन” जेना हम परकाया-प्रवेश केलहुँ
ने निज के अछि बोध, ने अपन चित आ अकिल ठेकाने पर अछि
सोमवार, 4 अक्टूबर 2010
गजल
रविवार, 3 अक्टूबर 2010
गजल
हिय सिहकै जखन वहै लोचन तखन नोर पोछलहुॅ लपेटि हम अहॅक ऑचर।।
कोना अयलहुॅ खलक ? मोन नहि अछि कथा, पवित्र पट सॅ सटल देह भागल व्यथा।
सिनेह निश्छल अनमोल प्रथम सुनलहुॅ मातृबोल, मोह ममताक आन के‘ करत परतर?
दंत दुग्धक उगल, नीर पेट सॅ वहल, देह लुत्ती भरल कंठ सरिता सुखल।
जी करै छल विसविस तालु अतुल टिसटिस, मुॅह मे लऽ चिवयलहुॅ अहॅक ऑचर।
नेना वयसक अवसान ताक‘ चललहुॅ हम ज्ञान, कएलहुॅ गणना अशुद्ध गुरू फोड़ि देलनि कान।
सिलेट वाट पर पटकि मॉक कोर मे सटकि, तीतल कमलाक धार सॅ अहॅक ऑचर।
देखि पॉचमक फल मातृदीक्षा सफल, भाल तिरपित मुदा ! उर तृष्णा भरल।
गेलहुॅ कत‘ हे अम्बे कत‘ गेल ऑचर, ताकि रहलहुॅ हम ऑगन सॅ पिपरक तर।
गजल
श्याम होइछ परक प्रेम अधलाह हे,
तेॅ बिसरि जाह हमरा बिसरि जाह हे ।
दीप बुझि रूप केॅ जुनि हृदय मे धरह,मोहवाती जरा तेल नेहक भरह ।
कऽ देतऽ जिन्दगी केॅ ई सुड्डाह हे,तेॅ बिसरि जाह हमरा विसरि जाह हे ।
हऽम मधुबन मे साॅझक पहिल तारिका,तोॅ फराके बनावह अपन द्वारिका ।
उठि रहल अछि अनेरेक अफवाह हे,
हम विमल राश केर खास संयोजिका,छी प्रवल गोप केर प्रेयसी गोपिका,
घाट सॅ खुलि चुकल अछि हमर नाह हे,
मोन मे उत्तरी सागरक जल भरह,लाख चुचुकारी बर्फक महल मे धरह,
हम तहू ठाम बरबानलक धाह हे,
गजल
स्वप्न सुन्दरि अहाॅ जीवनक सहचरी ।
निन्न मे आउ अहिना घड़ी दू घड़ी ।।
भोग भोगल जते जे बनल कल्पना,आब भऽ गेल अछि अन्तरक अनमना,
हऽम मानव अहाॅ देव लोकक परी ।
मात्र उत्तापदायी बसंती छटा,आब संतापदायी अषाढ़ी घटा,
काॅट लागनि सुखायल गुलाबी छड़ी ।
रूप अमरित पिया कऽ अमर जे केलहुॅ,विक्ख विरहक खोआ फेर की कऽ देलहुॅ ?
घऽर मे जिन्दगी गऽर मरनक कड़ी ।
वेर वेरूक अहॅक फेर अभयागतम्,अछि सदा सर्वदा हार्दिक स्वागतम्,
कप्प चाहक दुहू नैन मन तस्तरी ।
गजल
आशवर शीघ्र श्रावण मे औता पिया,
प्यास पर नीर पावन बहौता पिया ।।
देखि हुनका सुखक मारि सहि ने सकब,खसि पड़ब द्वारि पर ठाढ़ रहि ने सकब,
पाशतर थीर छाती लगौता पिया,प्यास पर नीर पावन बहौता पिया ।।
भऽ उमंगित बहत आड़नक बात ई,उल्लसित भऽ रहत चाननक गात ई,
पाततर पिक बनल स्वर सुनौता पिया,प्यास पर नीर पावन बहौता पिया ।।
मन उमड़ि गेल बनि गेल यमुना नदी,तन सिहरि गेल जहिना कदंबक कली,
श्वास पर धीर बंसुरी बजौता पिया,प्यास पर नीर पावन बहौता पिया ।।
शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010
गजल
कोन एहन त्रुटि भ' गेल हमरा अहाँ जकर गीरह बन्हने छी
ककरो कोनो समाद तं नहिएँ चिट्ठी - पत्री बंद केने छी
सबटा युगसंभव मानय मोन बज़ार कें हमहूँ चिन्हने छी
ककर स्नेह आ कोन समर्पणक एहि युग मे निष्ठा धेने छी
करी हिसाब तं की हासिल यौ ह्रदय अहाँ जे पओने छी
सब अभाव-अभियोग कात मे मन जांति सब अनठेने छी
भरि संसार बस्तुएक बाज़ार किछुए मुदा हमहूँ किनने छी
अपनो बस्ती ओहने शो-रूम किछु ने किछु अहूँ सजने छी
दाम पास नहिं रहल आब तं पुरने सबटा अंगेजने छी
मानल आहाँ बहुत देलौन्हें किछु तं हम कहियो देने छी
यैह नियति तं यैह हो सही अहांक देल सबटा धेऩे छी
कहाँ एलनि गुंजन कें गन' अहूं तं भरिसक्के गनने छी.