प्रस्तुत अछि अरविन्द ठाकुरक गजल
साभार विदेह
जनहित के एहि बजट मे एखन वित्तीय-क्षति अनुमाने पर अछि
हमरा एना किऐ लगैछ जे संकट हमर प्राणे पर अछि
अयोध्या मे रामलला लेल किऐ पड़ल बूइयाँ के संकट
भू-अर्जन के अखिल भारतीय भार जखन हनुमाने पर अछि
सगर देश के सभ इनार मे बैमानी के भांग घोरायल
बनखांट मे बैमानी के जांच-भार बैमाने पर अछि
लूटि-कूटिकए, भीख मांगिकए पेट भरैए लोक, तखन
संविधान केँ आत्मघात सँ तोड़ैक दोष किसाने पर अछि
मार्क्स आर एंजेल्स केँ पीयल, घंटल लाल-किताब मुदा
मोनक कोनो अन्तर्तम मे बस भरोस भगवाने पर अछि
गजल कहैत “अरबिन” जेना हम परकाया-प्रवेश केलहुँ
ने निज के अछि बोध, ने अपन चित आ अकिल ठेकाने पर अछि
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