(ग़ज़ल जेकाँ किछु:मैथिली मे)
कोन एहन त्रुटि भ' गेल हमरा अहाँ जकर गीरह बन्हने छी
ककरो कोनो समाद तं नहिएँ चिट्ठी - पत्री बंद केने छी
सबटा युगसंभव मानय मोन बज़ार कें हमहूँ चिन्हने छी
ककर स्नेह आ कोन समर्पणक एहि युग मे निष्ठा धेने छी
करी हिसाब तं की हासिल यौ ह्रदय अहाँ जे पओने छी
सब अभाव-अभियोग कात मे मन जांति सब अनठेने छी
भरि संसार बस्तुएक बाज़ार किछुए मुदा हमहूँ किनने छी
अपनो बस्ती ओहने शो-रूम किछु ने किछु अहूँ सजने छी
दाम पास नहिं रहल आब तं पुरने सबटा अंगेजने छी
मानल आहाँ बहुत देलौन्हें किछु तं हम कहियो देने छी
यैह नियति तं यैह हो सही अहांक देल सबटा धेऩे छी
कहाँ एलनि गुंजन कें गन' अहूं तं भरिसक्के गनने छी.
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शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010
गजल
खोजबीनक कूट-शब्द:
गंगेश गुंजन,
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