कागतक नाह चलि रहल सुखाएल धार मे
घर छोड़ि घरमुड़िआ दैए लोक पूर्णिमाक अन्हार मे
नाङट लोक,नाङट समय, नाङट व्याख्या
राधा भेटतीह गली-गली कृष्ण हरेक छिनार मे
छद्म भेषें रहितहि त तेहन सन गप्प नहि
मोश्किल छैक फर्क केनाइ मननुख आ हुड़ार मे
किछुओ कहब बड्ड खतरनाक एहिठाम
एकौटा अपन लोक कहाँ एतेक अनचिन्हार मे
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