गजल-2- डॉ. नरेश कुमार ‘विकल’
पसारल छैक परतीमे हमर पथार सन जिनगी
कहू हम लऽ कऽ की करबै एहन उधार सन जिनगी
पड़ल छै लुल्ह-नाङर सन कोनो मंदिर केर चौकठिपर
माँगय भीख जिनगी केर हमर लाचार सन जिनगी
साटल छैक फाटल सन कोनो देवालपर परचा
केओ पढ़बा लेल चाहय ने हमर बीमार सन जिनगी
बाटक कातमे रोपल जेना छी गाछ असगरूआ
ने फड़ैए-फुलाबैए हमर बेकार-सन जिनगी
कतबा दिनसँ हैंगरमे छी कोनो कोट-सन टाँगल
कुहरैत कोनमे पड़ल ई तिरस्कार-सन जिनगी
ई जिनगीकेँ कोनो जिनगी जकाँ हम जिनगिये बूझी
ने जिनगी देल जिनगीमे जिनगी सन हमर जिनगी
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