उसे खिड़कियों की भी आदत लगा दें ॥
मिला जो उसी पे मुहब्बत लुटाए
चलो बावरे को तिज़ारत सिखा दें ॥
खुदाया गये दिन पलट के न आयें
न आएँ, न सोयी वो चाहत जगा दें ॥
नहीं ये कि बहती बग़ावत लहू में
मग़र जब भी चाहें हुक़ूमत गिरा दें ॥
नमो ब्रह्मऽविष्णु नमः हैं सदाशिव
सधी धड़कनों में अनाहत गुँजा दें ॥
रची थी कहानी कभी कृष्ण ने, वो -
निभाएँ, महज़ अब न भगवत करा दें ॥
हमारी कहानी व चर्चे हमारे
अभी तक हैं ज़िन्दा, बग़ावत करा दें ॥
बयाँ ना हुई अपनी चाहत तो क्या है |
चलो ज़िन्दग़ी को मुहब्बत बना दें ॥
रहा दिल सदा से ग़ुलाबोरुमानी |
हमें तितलियाँ क्यूँ न ज़हमत, अदा दें ॥
गुलिस्ताँ सजे यूँ कि ’सौरभ’ सहर हो |
कहो क्यारियों में वो उल्फ़त उगा दें ॥
************
--सौरभ
विश्व गजलकार परिचय शृंखलाक अन्य भाग पढ़बाक लेल एहि ठाम आउ-- विश्व गजलकार परिचय