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बुधवार, 30 दिसंबर 2020
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गुरुवार, 17 दिसंबर 2020
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मंगलवार, 15 दिसंबर 2020
एकटा "मैथिली गजल" जे बदलि देलकै 'मैथिली गीत-संगीतक' इतिहास
समाजमे हरेक एक केर प्रभाव दोसरपर पड़िते छै (नकलकेँ मुदा प्रभाव नै कहल जा सकैए)। से प्रभाव नीको भऽ सकैए आ खरापो। साहित्य सेहो समाजे केर चीज छै आ साहित्य केर विभिन्न विधा सेहो। साहित्य केर एक विधासँ प्रभावित भऽ दोसर विधाक नीक रचना होइत रहलैए। तेनाहिते एक विधाक कायान्तर कऽ दोसर विधामे रचल जाइ छै। आ ई प्रक्रिया नीक छै। मुदा धेआन देबाक बात ई सभ बात पाठक केर सामने रहैत छै। जेना मधुपजीक कविता 'घसल अट्ठन्नी' केर नाट्य रूप सेहो छै मुदा प्रचार-प्रसारमे पहिने कहि सूचित कएल जाइत छै जे ई मधुपजीक कविताक नाट्य रूप थिक। मुदा ई सौभाग्य मैथिली गजल लेल कहियो नै रहल। एकटा मैथिली गजल जे “बदलि देलकै मैथिली गीत-संगीतक इतिहास” मुदा साहित्यकार-संगीतकार एहि गजलक संग न्याय नै केलाह। गजल छै मुदा एकरा गीत कहि प्रचारित कएल जाइत छै। आब एकटा विधा लेल एहिसँ दुखद बात की हेतै? ई बात हम लोक लेल नै कहि रहल छी। ई हमरो बूझल अछि जे जखन कोनो महान रचना रचना लोकमे जाइ छै तखन ओकर शब्द उनट-पुनट होइते छै। ओकर विधापर धेआन नै देल जाइत छै। हमरा लोकसँ नै कथित विद्वान ओ अपनाकेँ महान गायक कहए बला सभसँ शिकाइत अछि जे ओ सभ एहि गजल संग न्याय नै केलथि। लगभग 90 बर्खसँ बेसी धरि पाठक-श्रोताकेँ भ्रमित कएल गेलै जखन कि ओहि रचनाक व्याकरण गजलक छै। रचनाकार ओकरा गजल कहि गेल छथि तकर बादो ई हाल। एहि गजलक प्रभाव ततेक जे जतबे गायक-गायिका एहि गजलकेँ गेलाह वा गेलीह से गलत कऽ वा एकर पैरोडीमे गीत बना गेलाह-गेलीह। अइ हाल लेल तीन टा कारण अछि पहिल जे आधुनिक मैथिलीक गीत विधा बहुत कमजोर अछि। आधुनिक कालमे एकरा अपन कोनो निश्चित आधार नै रहलै मैथिलीमे। आ ताहि लेल ओ गीतकार सभ जिम्मेदार रहलाह जे कोनो तुकांत पाँतिकेँ गीत मानि मंचपर पाग-माला लेल व्याकुल भेलाह। आइ धरि मैथिलीमे गीत विधाक कोनो अपन आलोचक नै भऽ सकलै आ ताहू लेल वएह कथित गीतकार सभ जिम्मेदार छथि। अपवादमे किछु नीक गीतक सृजन भेल मुदा ओ गीतकार सभ गीत विधाक आलोचनामे कहियो नै एलाह आ से चाहे रवीन्द्र नाथ ठाकुर होथि कि मैथिलीपुत्र प्रदीप होथि कि जगदीश चंद्र ठाकुर 'अनिल' वा चंद्रमणि झा। दोसर कारण जे मैथिलीमे कथित गजलकार सभ पतचटनाक भूमिकामे रहलाह सदिखन। जिम्हर देखला मंच तिम्हर केलाह लंच। आ ताहूपर गजलक व्याकरणक ज्ञान पूरा गोल। तखन कोना बूझितथिन जे ई रचना गजल छै। आ तेसर कारण एहि गजलक प्रभाव। विद्यापतिक गीतक प्रभावक बाद जँ कोनो आन रचनाक प्रभावक बात हएत तँ एहि गजलक नाम सभसँ उपर रहत। खएर हम एतए गीत विधाक चर्चा नै करए आएल छी। हम आएल छी ओहि भ्रमक निस्तार लेल जे कि 90 बर्खसँ 'कमजोर गीत विधा' केर 'कमजोर गीतकार' आ 'कमजोर गायक-गायिका' सभ द्वारा पसारल गेल छै। बहुत गायक कहि सकै छथि जे हम भासपर रचना केलहुँ। मुदा हम कहब जे कोन भासपर रचना केलहुँ? वएह भास ने जे गजलक छै। ओही गजलक किछु शब्दकेँ आगू-पाछू कऽ दऽ ओकरा गलत बना कऽ गाबै छी।
कविवर सीताराम झा जी रचित सूक्तिसुधा
(प्रथम बिंदु) केर पहिल प्रकाशन 1928 ई. मे भेल छल (संदर्भ- कविवर सीताराम झा-काव्यावली
प्रथम भाग, संपादक- विश्वनाथ झा 'विषपायी', प्रकाशक-नमन निकुंज शिक्षा परिषद्, चौगमा,
वर्ष-1998)। एहि सूक्तिसुधामे कविवर अपन एकटा रचनाकेँ गजल कहि प्रस्तुत केने छथि जकरा
निच्चा दऽ रहल छी (फोटो परिशिष्टमे देखू)-
जगत मे थाकि जगदम्बे अहिंक पथ आबि
बैसल छी
हमर क्यौ ने सुनैये हम सभक गुन गाबि
बैसल छी
न कैलों धर्म सेवा वा न देवाराधने
कौखन
कुटेबा में छलौं लागल तकर फल पाबि
बैसल छी
दया स्वातीक घनमाला जकाँ अपनेक भूतल
में
लगौने आस हम चातक जकां मुँह बाबि बैसल
छी
कहू की अम्ब अपने सँ फुरैये बात ने
किछुओ
अपन अपराध सँ चुपकी लगा जी दाबि बैसल
छी
करै यदि दोष बालक तँ न हो मन रोख माता
कैं
अहीं विश्वास कैँ केवल हृदय में लाबि
बैसल छी
उपरक रचना गजल थिक आ सीतारामजीक अपन वर्तनीमे छनि। गायक सभ अही गजलकेँ गलत कऽ गाबै छथि। एहि गजलक व्याकरणकेँ हम अपन पोथी 'मैथिली गजलक व्याकरण ओ इतिहास' मे नीक जकाँ देखेने छी। तँइ एहिठाम नै दऽ रहल छी। जिज्ञासु पाठक ओहि पोथीकेँ पढ़ि जानि सकै छथि। बहुत लोक एकरा भगवती गीत कहै छथि जखन कि एकरा 'भगवती गजल' कहल जेबाक चाही। ई अनचिन्हार आखर टीमक सौभाग्य अछि जे ओ मैथिली गजलमे 'भक्ति गजल' सन शब्दक निर्माण केलक (7 अगस्त 2012 केँ अमित मिश्र द्वारा) आ एहि तरहें कविवर सीताराम झा मैथिलीक पहिल 'भक्ति गजल' कहनाहर-लिखनाहर छथि। कविवरजीक ई गजल वस्तुतः भक्ति गजल अछि। ईहो सौभाग्य अनचिन्हारे आखरकेँ छै जे ओ मैथिलीमे 'बाल गजल' सन शब्दक निर्माण केलक (24/3/2012 केँ एहि पाँतिक लेखक द्वारा) आ ईहो सौभाग्येक बात जे मैथिलीक पहिल 'बाल गजल' कहनाहर-लिखनाहर एक बेर फेर कविवर सीताराम झा सिद्ध होइत छथि (विशेष जानकारी हमर गजलक व्याकरण ओ इतिहास बला पोथीमे भेटत)।
भासक चर्चा हम उपरे केलहुँ जतेक ई पुरान
गजल अछि (8 बर्ख बाद ई गजल 100 बर्खक भऽ जाएत) ताहि हिसाबसँ एकर भास आब कल्ट बनि चुकल
अछि। एकर भास आब कियो प्रयोग अपन पैरोडीमे नव रूपें बना सकै छथि आ बलजोरी कहि सकै छथि
जे हम नकल नै केलहुँ। हमर अनुमान अछि जे ई
गजल बहुतो लोकक नजरिसँ हटि गेल छल जकर पुष्टि रचना नामक पत्रिका केर जून 1984 अंकमे
डा. रामदेव झा जीक लेखसँ सेहो होइत अछि जाहिमे ओ सीताराम झाजीक आन गजलक उदाहरण देने
छथि मुदा एहि भक्ति गजलकेँ बिसरि गेल छथि। जाहि समयमे ई लेख लीखल गेल हेतै ताहू समयमे
एहि गजलक प्रभाव रहल हेतै तँइ हमर अनुमान अछि जे ई गजल डा. रामदेव झाजीक नजरिसँ सेहो
छुटल रहलनि। एहिठाम हम एहि गजलकेँ तोड़ि-मरोड़ि आ पैरोडी बनल एक-दू प्रस्तुतिक लिस्ट
दऽ रहल छी जाहिसँ स्पष्ट हएत जे कोना एहि गजल संग मजाक भेल छै (एहि लिस्टमे शौकिया
आ सिद्ध-प्रसिद्ध दूनूक नाम अछि)-
1)
नीलकमल झा रचनाकारक नाम तँ गलत देनहे छथि अपन गायनमे मूल शब्द सभकेँ उनटा-पुनटा कऽ
गायन केलथि जकर लिंक अछि (ओना अधिकांश पाँति ई शुद्ध गेने छथि)- https://www.youtube.com/watch?v=SnRmai1qtj0
नीलकमल झा एहिमे गीतकार रूपमे -उपेन्द्र ठाकुर मोहनजीक नाम देने छथि से आपत्तिजनक तँ अछिए संगे-संग मैथिली गीत-संगीतक अवस्थाकेँ सेहो देखा रहल अछि।
2) संजय झा एकर भासपर गेलथि जकरा एहि
लिंकपर देखि सकैत छी https://youtu.be/EYctiERxVwo
3) मैथिली ठाकुर अपन गायनमे मूल शब्द
सभकेँ उनटा-पुनटा कऽ गायन केलथि जकर लिंक अछि- https://www.youtube.com/watch?v=0wFT4nPm360
4) आदित्य नाथ पैरोडी बना गेलथि जकर
लिंक अछि -https://www.youtube.com/watch?v=yHPSqoSBwN0
5) भाव्या रानी अपन गायनमे मूल शब्द
सभकेँ उनटा-पुनटा कऽ गायन केलथि जकर लिंक अछि- https://www.youtube.com/watch?v=5dbn5X6f5yQ
6) उमा झा अपन गायनमे मूल शब्द सभकेँ
उनटा-पुनटा कऽ गायन केलथि जकर लिंक अछि- https://www.youtube.com/watch?v=26vr-J3Wtvc
7)
प्रेमसागर अपन गायनमे थर्ड क्लासक पैरोडी केलथि जकर लिंक अछि- https://www.youtube.com/watch?v=JNAen4rZeMg
हम पहिने कहने छी जे कविवरक गजलक भास आब कल्ट अछि। एहि भाससँ बहुत नव पैरोडी बनाएल जा सकैए। एकर
अतिरिक्त आरो नाम अछि मुदा एहिठाम हम उदाहरण स्वरूप किछुए देलहुँ अछि। अपवादमे हम प्रदीप
पुष्पजीक उल्लेख करब ओ गायक नै छथि मुदा फेसबुकपर अपन स्वरमे एहि गजलक शुद्ध पाठ केलथि
जकर लिंक एही आलेखक अंतमे एकटा आन संदर्भमे भेटत।
स्पष्ट अछि जे सीतारामजीक ई गजल गीत
विधामे गहींर धरि गेल। आ एहि लेल बहुत तत्व जिम्मेदार छै पहिल तँ बहर (छंद) ओ काफिया,
दोसर मिथिलाक शाक्त परंपरा, आ तेसर सरल शब्द। तीनू विशेषतासँ ई गजल अपन विधामे रहि
कऽ गीत विधा धरि गेल इएह एकर सफलता छै। आब हमरा लोकनि लेल ई उचित जे लेखक केर सम्मान
करैत, एकटा विधाक सम्मान करैत एहि रचनाक सही वाक्यक संग गायन हो, एहि रचनाक सही विधा
देल जाए आ एहि रचनाक रचनाकारक नाम देल जाए। अन्यथा आब गजल विधा कमजोर नै अछि ओ अपन
उचित स्थान लेब जनैत अछि।
उपरक जे लिंक देखलहुँ तकर अतिरिक्त अन्नु कर्ण जीक गाएल ई भीडियो सेहो देखू- https://www.youtube.com/watch?v=T6XvSPbL9DY
एहि लिंकक अलगसँ उल्लेख करबाक मतलब अतबे जे
ई भीडियो जिनका द्वारा अपलोड भेल अछि से एहि गजलक संबंधमे बहुत कुतर्क केने रहथि प्रदीप
पुष्प जीक वालपर जकरा अहूँ सभ एहि लिंकपर देखि सकैत छी https://www.facebook.com/pradeep.pushpa.7/posts/1414904502006571
हम उपरमे जतेक लिंक देलहुँ आ एकर अतिरिक्त
आर जे लिंक हेतै ताहि ठाम जा-जा कऽ हमरा लोकनिकेँ एहि रचनाक सही विधा आ सही रचनाकारक
नाम लेल कमेंट देबए पड़त आ ओकरा बदलबाबए पड़त ताहि लेल सभ गजल कार्यकर्तासँ आग्रह जे
कविवरजी आ हुनक गजलकेँ उचित स्थान लेल जतेक संघर्षक जरूरति पड़तै से करथि। हम नीलकमल
झाजीक लिंक उपर कमेंट दऽ एकर शुरूआत कऽ चुकल छी।
परिशिष्ट-
शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020
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मंगलवार, 8 दिसंबर 2020
नात
प्रेमसँ कहियौ सुभानअल्लाह...
शनिवार, 28 नवंबर 2020
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