ताकैत आसरा कोनो दुःख पी रहल-ए लोक !
घर-द्वारि दहि गेलैक सब बच्चा टा छै बांचल
रेलवेक कात, बाट-घाट जी रहल-ए लोक !
सांझो भरिक खोराक ने छैक अगिला फसिल धरि
जीबा लए ई लाचार कोना जी रहल-ए लोक !
सबटा गमा क' जान बचा आबि त' गेलय
आब फेकल छुतहर जकां हद जी रहल-ए लोक !
जले पहिरना, बिछाओन जले छैक ओढना
जबकल गन्हाइत पानि-ए खा पी रहल-ए लोक !
सब वर्ष जकां एहू बाढ़ि मे कारप्रदार
रिलीफ नामें अपन झोरी सी रहल किछु लोक !
चलि तं पड़ल-ए जीप-ट्र्क-नावक से तामझाम
आब ताही आसरा मे बस जी रहल-ए लोक !
कहि तं गेलाह-ए परसू-ए दस टन बंटत अन्न
एखबार-रेडियो भरोसे जी रहल-ए लोक !
घोखै तं छथि जे देच्च मे पर्याप्त अछि अनाज
सड़ओ गोदाम मे, उपास जी रहल-ए लोक !
उमेद मे जे आब आओत एन जी ओ कतोक
द' जायत बासि रोटी, वस्त्र, जी रहल-ए लोक !
अछि कठिन केहन समय ई राक्षस जकां अन्हार
किछु भ' रहल अछि तय, तें तं जी रहल-ए लोक !
(विदेह ई-पत्रिकाक १८म अंकसँ साभार)
धन्यवाद,गुन्जन जीक गजल सँ परिचय करेबाक लेल
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