गजल ३
घसाइत आ खिआइत चोख फार भेल छी
गला-गला गात गजलकार भेल छी
शब्दकेर महफामे भावक वर-कनियाँ लऽ
सदिखन हम दुलकैत कहार भेल छी
धधराक धाह मारऽ पोखरि खुनाएल अछि
स्वयं भलहि प्यासल महाड़ भेल छी
हमरे फुनगी लटकल धानक जयगान-
मुदा, हमधरि तिरस्कृत पुआर भेल छी
भावक व्यापार मीत पुछू ने भेटल की
मलहम दऽ दर्दक अमार भेल छी
दुखियाक गीत जेँ गबैत अछि गजल हमर
लतखुर्दनि होइत तेँ पथार भेल छी
रूप-रङ्ग हम्मर आकार किए निरखै छी?
निज आखरमे हम तँ साकार भेल छी
अबियौ सहभोज करी बन्हन सभ तोड़िकऽ
प्रेमक हम परसल सचार भेल छी
गजल-४
जँ बजितहुँ हम फूसि तँ भगवाने छलहुँ
अछि आदति खराब जे कि साँच बजै छी
देश दलदल छै भेल फूटि नीतिक जे घैल
बुझू तकरे सुखएबा लेल आँच बजै छी
कियो कतबो कहौक शिवक ताण्डव छियै
हम तँ सत्ताकेँ नटुवाक नाँच बजै छी
भलहि झूलि जाइ ब्रह्म लेल फँसरी सही
तैयो पाकलकेँ कथमपि ने काँच बजै छी
मुक्तक सुरेन्द्रक लऽ गजल गढ़ि लेल
मुदा दू आ दू कहियो नइ पाँच बजै छी
गजल-५
आबि गेल गजलोमे रोशनसँ रोशनी
बढ़िते जेतैक एकर पोषणसँ रोशनी
हाथ सैंति मीत हमर मूहक उदार महा
मुदा कोना बरतै उद्घोषणसँ रोशनी?
आगिएमे जरिकऽ सोना हम चमकै छी
दुनियाभरि तेँ चतरल शोषणसँ रोशनी
भने सागपात खोंटब छोड़ि देल जनकपुरी
कहियो की भेल छै इमोशनसँ रोशनी!
बरू मोनक घाओमे लगा दियौ प्रेमर्षि
पसरत अवश्य प्रेम-लोशनसँ रोशनी
गजल-६
हम कहब ने कथमपि हथियार निकालू
कने धरगर यौ मीता अखबार निकालू
दासत्वक सिक्कड़िसँ जे अइ जकड़ाएल
जङ्ग खुरचैत ओ असली विचार निकालू
मुहदुब्बर भेल छी तेँ सभक्यो लुलुअबैए
लाल सोनितसन आखर ललकार निकालू
गौरवकेर गीत हमर गर्भहिमे मरिरहल
आब तकरोलए साँठल सचार निकालू
टकटकी लगौने पिआसल चकोर लेल
थोड़े चानहिसन मिठका दुलार निकालू
स्वर्णिम बिहान काल्हि बिहुँसत जरूर
बस गुजगुज एहि रातिसँ अनहार निकालू
केहनो हो तख्त-ताज जकरालग नतमस्तक
ओहनेसन कलमक तरवार निकालू
गजल-७
हम्मर सरकारक महा ने साफ नीयत छै
झूठ नइ बजैत अछि, साँचक कब्जीयत छै
गमलामे धान रोपि धान्याञ्चल यज्ञ करए
डण्ड खीचि मुसरीधरि खोलैत असलीयत छै
जनताक फोड़नसँ तेल कपचि टोइयामे-
बारए मशाल, जे इजोतक अहमीयत छै
लाख-लाख दीपक ई पसरल प्रकाश कहै-
आजुक एहि सुरुजमे जरूरे कैफीयत छै
कोरामिन लगा-लगा कोरमे सुतओने अछि
देश तेँ दुरुस्त छैक, सुस्त बस तबीयत छै
सभक मोनमे छैक मात्र आब प्रश्न एक-
हमर स्वप्न-आस्था की ओकरे मिल्कीयत छै!
गजल-८
जीवनकेर डोर छोड़ि हाथक लटाइमे
जुनि पुछू स्वाद की छै गुड्डीक कटाइमे
इतराएब-छितराएब कहू कोन गुमानपर
नान्हिटा शरीरो अछि भेटल बटाइमे
फटैत तँ दूधे छै, नेनक जे खानि छियै
खट्टा जाए दूधमे वा दूधहि खटाइमे
प्रेम छोड़ि संसारक रङ्ग सभ धोखड़ि जाइ
छोड़ू अगधाएब बैसि चकमक चटाइमे
कर्मक खड़ाम पहिरि शतपथपर चलबासन
पुण्य कतहु पाएब नहि रामक रटाइमे
जन्म आओर मृत्यु थिकै सृष्टिक विधानटा
मजा छैक जिनगीक सङ्घर्ष छटपटाइमे
गजल-९
बोल रे मन एकतारा बोलै टनन-टनन-टन-टन
धनुषक जनु टङ्कार छुटैछै झनन-झनन-झन-झन
कतबो घुमरैत आबै बदरा अपने जाएत बिलाकऽ
जेना तप्त ताबापर जल होइ छनन-छनन-छन-छन
प्रेमक डिबिया बचाकऽ राखी साँचक आँचर तरमे
बड़ उकपाती पवन बहैए सनन-सनन-सन-सन
जाधरि छौ साँसक घण्टी बस ताधरि छौ बजबाके
गनगनाइत रह तेँ रे मीता गनन-गनन-गन-गन
तोरे चुप्पीके मलजलसँ नित्य जे चतरल जाइछौ
जरा दही ओहि अकाबोनकेँ हनन-हनन-हन-हन
तोहर सुर-गर्जनसँ जरूरहि, ठाढ़ देबाल दरकतै
तखने चहुँदिस हँसी खनकतै खनन-खनन-खन-खन
गजल-१०
सिहकैत कनकन्नीमे सीटर छी, जर्सी छी
मखा-मखा प्रेम करी, मोनक प्रेमर्षि छी
चानक धियानमे धरती नहि छूटए, तेँ
डिहबारक भगता हम दूरक ने दर्शी छी
थाहैत आ समधानैत काँटोपर जे बढ़ैछ
फाटल बेमाएवला चरणक स्पर्शी छी
हम्मर वैदेहीक कुचर्च कएनिहार लेल
अँखिफोड़बा टकुआ छी, जिहघिच्चा सड़सी छी
गन्ध जँ लगैए तँ मूनि लिअ नाक अहाँ
तिरहितिया खेतक हम गोबर छी, कर्सी छी
जिनगीक कखहरबामे साँसक जे मात्रा अछि
दहिना दिर्घी नहि, बामाक हर्षि छी
गजल-११
मुक्तिगीत अम्मल अछि, जीयब हम अमलेमे
रचि-रचि सजाएब नेह-गीत मोन-कमलेमे
धूर-धूर खेत पड़ल शासनकेर मोहियानी
निष्ठाक अन्न तैयो उपजाएब गमलेमे
दूभिजकाँ चतरल अछि जे मोनक कणकणमे
उपटत धरखन्ने ओ धुरफन्दीक हमलेमे!
पघिलत जे बर्फ़ तखन ढाहि देत आरि-धूर
नाचि लिअए नङटे ओ भने एखन जमलेमे
शासनकेर भाथीसँ चिनगी अछि रञ्ज भेल
जुटिअबियौ खढ़-पात मेहनतिसँ घमलेमे
गजलक ई पनही पहीरि बाट चलैत काल
पओलहुँ जे हेआओ तेँ समर्पित ई विमलेमे
(विदेह ई-पत्रिकाक २२म अंकसँ साभार)
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शनिवार, 14 नवंबर 2009
गजल
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धीरेन्द्र प्रेमर्षि
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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों
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