चम्कैत बिजलैँकाके सैंतब, एखन बाँकी अछि
उठैत अछि बुलबुल्ला फूटि जाइछ व्यथा बनि
पानिके अड़ाबे से सागर, एखन बाँकी अछि
बहैत पानिआओ किनार कतौ खोजत ने
अगम अथाह सन्धान, एखन बाँकी अछि
फाटत जे छाती सराबोर हएत दुनियाँ “भ्रमर”
ई झिसी आ बरखा प्रलय, एखन बाँकी अछि।
(विदेह ई-पत्रिकाक 21म अंकसँ साभार)
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