रविवार, 20 जुलाई 2014

मैथिली गजल व्याकरणक शुरूआती प्रयोग


कोनो साहित्यिक विधा अपना आपमे ता धरि स्वतंत्र नै मानल जा सकैए जा धरि ओकर हरेक समयमे कमसँ कम आठ-दस टा पूर्णकालिक रचनाकार नै भेटै। मुदा ई तथ्य मैथिली साहित्यक कोनो विधापर लागू नै होइत अछि। कहबाक मतलब जे जिनका जते मोन भेलनि से तते विधाक संग बलात्कार केलथि। ई मैथिली भाषा थिक जैमे कोनो लेखक जँ नीक कविता लिखै छथि तँ हुनका नीक कथाकार ओ अन्य विधाक मास्टर सेहो मानि लेल जाइत अछि। आ ऐ तरहँक सर्टिफिकेट बँटबामे मानसिक रूपसँ लोथ विश्वविद्यालीय आलोचक सभहँक भूमिका बेसी रहैत छनि। ऐ ठाम हम स्पष्ट कही जे हरेक विधामे लीखब आ हरेक विधामे अपना-आपके मास्टर कहब वा कहेबाक लेल येन-केन-प्रकारेण छद्म करब दूनू अलग -अलग वस्तु अछि। ऐ ठाम हम जिनकर गप्प करए जा रहल छी से हमरा नजरिमे मूलतः गवेषक ओ कोशकार छथि मुदा ओ गजल, हाइकू, कविता, लघुकथा, विहनि कथा, आलोचना सहित आन विधामे सेहो रचनारत छथि (मुदा ई उल्लेखनीय अछि जे रचना करैत-करैत ई सभ विधाक लेल एकटा मानक आलोचना कहू वा विधागत नियक कही की व्याकरण कहू से मैथिली भाषाक अनुकूल बनेलाह) आ पाठक ई कहबामे धुकचुका जाइ छथि जे कोन विधाक कोन रचना नीक छै। ऐ ठाम ईहो हम कही जे कोनो लेखक केर सभ रचना उत्कृष्ट नै होइ छै। कोनो दब, तँ कोनो नीक तँ कोनो मध्यम। ईएह चक्र सभ लेखक संग छै। केओ ऐ चक्रक वास्तविकाकेँ मानै छथि तँ बहुत रास लेखक ओकरा घमंडमे आबि नकार दै छथि। मुदा हमर आलोच्य लेखक ऐ वस्तुकेँ मानै छथि आ ओ तर्क दै छथि जे ई हरेक लेखककेँ मानबाक चाही। ओना साहित्यिक विधाकेँ छोड़ि ई नव लेखककेँ बढ़ावा देबऽमे सभसँ आगू छथि आ हिनक ई विधा आन सभ विधापर भारी अछि। आब ऐठाम अहाँ सभ चकित होमए लागब तँए हम हिनक आन विधाकेँ छोड़ि मात्र गजलपर केंद्रित कऽ रहल छी। जँ मैथिली गजलकेँ देखी तँ भने ई 103 बर्खसँ लिखाइत रहल हो मुदा गजलक व्याकरण बनल 2009मे। आब एकर कारण जे हो । "अनचिन्हार आखर " ब्लागपर श्री गजेन्द्र ठाकुरजी बर्ख 2009सँ " मैथिली गजल शास्त्र " केर शुरूआत केलाह जे 14 खंडमे पूरा भेल। आब ई आलेख हुक गजल संग्रह "धांगि बाट बनेबाक दाम अगूबार पेने छँ"मे आएल अछि।प्रस्तुत गजल शास्त्रमे मैथिली गजल अनेक मौलिक अवधारणाक जन्म भेल। आगू बढ़बासँ पहिने ऐ गजल शास्त्रक किछु मुख्य विशेषता देखल जाए---
1) सरल वार्णिक बहर-- ई ऐ गजल शास्त्रक सभसँ बड़का विशेषता अछि। चूँकि मैथिलीक बहुसंख्यक शाइर बहरक अभावसँ ग्रसित छलाह तँए हुनका सभकेँ एक सूत्रमे अनबाक लेल वैदिक छंदक प्रयोग भेल जकर नाम पड़ल " सरल वार्णिक बहर" ऐ बहरक मोताबिक मतलाक पहिल पाँतिमे जतेक वर्ण हो ओतेक बर्ख गजलक हरेक पाँतिमे भेनाइ आवश्यक। ई बहर ततेक ने लोकप्रिय भेल जे सभ शाइर एक प्रचुर प्रयोग केलथि संगे-सग ई बहर सभ शाइरकेँ वर्णवृत प्रयोग करबाक लेल एकटा नीक बाट देलक तँए हमरा नजरिमे ई बहर आधुनिक मैथिली गजलमे वर्णवृतक प्रयोगक पहिल सीढ़ी अछि।
2) वैदिक छन्दक पुनर्जागरण-- ऐ गजल शास्त्रसँ विलुप्त होइत वैदिक छन्दक पुर्नजागरण भेल। सभ वैदिक छन्द सरल वार्णिक छन्द अछि। वर्तमानमे श्री गजेन्द्र ठाकुर जी  एकरा विवेचित कए मात्र किछुए समयमे आ सेहो सरल रूपें  वेद-विज्ञानक परिचय करबौलथि। एखन जे गजल लिखै छथि वा जे गजेन्द्र ठाकुर जीक पोथी वा अनचिन्हार आखर पढ़ताह हुनका स्वतः ई बुझा जेतन्हि जे गायत्री छन्द की छै आ अनुष्टुप छन्द की। गायत्री छंद ओ गायत्री मंत्रक बीच की संबंध छै से ऐ लेखक सहायतासँ आब सभ बूझऽ लगलाह अछि।
3) बहरक निर्धारण--- ओना तँ वर्णवृत वा बहर गजल विश्वस्तरपर मान्य अछि मुदा भारतमे अबिते ओ विखंडित भेल। केओ हिंदीक अनुकरण करैत मात्रिक लेलाह तँ केओ किछु  " मुदा श्री ठाकुरजी बिना कोनो दबाब बनेने शाइर लेल सीमा बना देलखिन। श्री ठाकुरजी कहैत छथि "कोनो गजलक पाँती (मिसरा)क वज्न/ वा शब्दक वज्न तीन तरहेँ निकालि सकै छी, सरल वार्णिक छन्दमे वर्ण गानि कऽ; वार्णिक छन्दमे वर्णक संग ह्रस्व-दीर्घ (मात्रा) क क्रम देखि कऽ; आ मात्रिक छन्दमे  ह्रस्व-दीर्घ (मात्रा) क क्रम देखि कऽ। जिनका गायनक कनिकबो ज्ञान छन्हि ओ बुझि सकै छथि जे गजलक एक पाँतीमे शब्दक संख्या दोसर पाँतीक संख्यासँ असमान रहि सकैए, मुदा जँ ऊपर तीन तरहमे सँ कोनो तरहेँ गणना कएल जाए तँ वज्न समान हएत। मुदा आजाद गजल  बे-बहर होइत अछि तेँ ओतऽ सभ पाँती वा शब्दमे वज्न समान हेबाक तँ प्रश्ने नै अछि। ऐ तीनू विधिसँ लिखल गजलमे मिसरामे समान वज्न एबे टा करत। ओना ई गजलकार आ गायक दुनूक सामर्थ्यपर निर्भर करैत अछि; गजलकार लेल वार्णिक छन्द सभसँ कठिन, मात्रिक ओइसँ हल्लुक आ सरल वार्णिक सभसँ हल्लुक अछि, मुदा गायक लेल वार्णिक छन्द सभसँ हल्लुक, मात्रिक ओइसँ कठिन, सरल वार्णिक ओहूसँ कठिन आ आजाद गजल (बिनु बहरक) सभसँ कठिन अछि।" आब ई शाइरपर निर्भर अछि ओ लिखबाक लेल कोन बहर प्रयोग करै छथि मुदा जेना की ठाकुर जी कहै छथि गेबाक लेल वार्णिक छंद सभसँ हल्लुक छै तैसँ अरबी-फारसी-उर्दू गजलक व्याकरणक प्रमाणिकता भेटैत अछि आ हिंदीक नकलवादी शाइर सभहँक धज्जी उड़ि जाइत अछि आ ऐ तरहें मैथिली गजलमे वर्णवृतक प्रयोग सुनिश्चित होइत अछि।
4) गजल, बहर आ संगीत-- ऐ गजल शास्त्रमे गजल, बहर आ संगीतक मध्य समता ओ विषमताक नीक चर्च अछि। जिनका संगीतक जानकारी नै अछि तकरा लेल ई पोथी अमृतक समान काज करत। मूल तथ्य सभ नीक जकाँ फड़िछाएल अछि जेना---
"जेना वार्णिक छन्द/ वृत्त वेदमे व्यवहार कएल गेल अछि तहिना स्वरक पूर्ण रूपसँ विचार सेहो ओइ युग सँ भेटैत अछि। स्थूल रीतिसँ ई विभक्त अछि:- 1. उदात्त 2. उदात्ततर 3. अनुदात्त 4. अनुदात्ततर 5. स्वरित 6. अनुदात्तानुरक्तस्वरित, 7. प्रचय (एकटा श्रुति-अनहत नाद जे बिना कोनो चीजक उत्पन्न होइत अछि, शेष सभटा अछि आहत नाद जे कोनो वस्तुसँ टकरओलापर उत्पन्न होइत अछि)
1. उदात्त- जे अकारादि स्वर कण्ठादि स्थानमे ऊर्ध्व भागमे बाजल जाइत अछि। एकरा लेल कोनो चेन्ह नै अछि।
2. उदातात्तर- कण्ठादि अति ऊर्ध्व स्थानसँ बाजल जाइत अछि। ---------------------------------
---------------------ऊहगान- सोमयाग एवं विशेष धार्मिक अवसर पर। पूर्वार्चिकसँ संबंधित ग्रामगेयगान ऐ विधिसँ। ऊह्यगान आकि रहस्यगान- वन आ पवित्र स्थानपर गाओल जाइत अछि। पूर्वार्चिकक आरण्यक गानसँ संबंध। नारदीय शिक्षामे सामगानक संबंधमे निर्देश:- 1.स्वर-7 ग्राम-3 मूर्छना-21 तान-49
सात टा स्वर सा, रे, , , , ,नि, आ तीन टा ग्राम- मध्य, मन्द, तीव्र। 7*3=21 मूर्छना। सात स्वरक परस्पर मिश्रण 7*7=49 तान।
ऋगवेदक प्रत्येक मंत्र गौतमक 2 सामगान (पर्कक) आ काश्यपक 1 सामगान (पर्कक) कारण तीन मंत्रक बराबर भऽ जाइत अछि। मैकडॉवेल इन्द्राग्नि, मित्रावरुणौ, इन्द्राविष्णु, अग्निषोमौ ऐ सभकेँ युगलदेवता मानलन्हि अछि। मुदा युगलदेव अछि –विशेषण-विपर्यय।
वेदपाठ-
1. संहिता पाठ अछि शुद्ध रूपमे पाठ।
अ॒ग्निमी॑ळे पुरोहि॑त य॒घ्यस्य॑दे॒वम्त्विज॑म।होतार॑रत्न॒ धातमम्।
2. पद पाठ- ऐमे प्रत्येक पदकें पृथक कऽ पढ़ल जाइत अछि।
3. क्रमपाठ- एतऽ एकक बाद दोसर, फेर दोसर तखन तेसर, फेर तेसर तखन चतुर्थ। एना कऽ पाठ कएल जाइत अछि।
4. जटापाठ- ऐमे जँ तीन टा पद क, , आ ग अछि तखन पढ़बाक क्रम ऐ रूपमे हएत। कख, खक, कख, खग, गख, खग। 5. घनपाठ- ऐ मे उपरका उदाहरणक अनुसार निम्न रूप हएत- कख, खक, कखग, गखक, कखग। 6. माला, 7. शिखा, 8. रेखा, 9. ध्वज, 10. दण्ड, 11. रथ। अंतिम आठकेँ अष्टविकृति कहल जाइत अछि।
साम विकार सेहो 6 टा अछि, जे गानकेँ ध्यानमे रखैत घटाओल, बढ़ाओल जा सकैत अछि। 1. विकार-अग्नेकेँ ओग्नाय। 2. विश्लेषण- शब्द/पदकेँ तोड़नाइ 3. विकर्षण-स्वरकेँ खिंचनाइ/अधिक मात्राक बराबर बजेनाइ। 4. अभ्यास- बेर-बेर बजनाइ।5. विराम- शब्दकेँ तोड़ि कऽ पदक मध्यमे ‘यति’। 6. स्तोभ- आलाप योग्य पदकेँ जोड़ि लेब। कौथुमीय शाखा ‘हाउ’ ‘राइ’ जोड़ैत छथि। राणानीय शाखा ‘हावु’, ‘रायि’ जोड़ैत छथि।"
ई तँ छल वैदिक संगीतक जानकारी । लौकिक संगीतक चर्च श्री ठाकुर जीन एना करै छथि---
संगीतक वर्ण अछि सा, रे, , , , , नि, सां एकरा मिथिलाक्षर/ देवनागरीक वर्ण बुझबाक गलती नै करब। आरोह आ अवरोहमे स्वर कतेक नीच-ऊँच हुअए तकरे टा ई बोध करबैत अछि। जेना कोनो आन ध्वनि जेना “क” केँ लिअ आ की-बोर्डपर निकलल सा, रे... केर ध्वनिक अनुसार “क” ध्वनिक आरोह आ अवरोहक अभ्यास करू।
ऐ सातू स्वरमे षडज आ पंचम मने सा आ प अचल अछि, एकर सस्वर पाठमे ऊपर नीचाँ हेबाक गुंजाइश नै छै। सा अछि आश्रय आकि विश्राम आ प अछि उल्लासक भाव। शेष जे पाँचटा स्वर सभटा चल अछि, मने ऊपर नीचाँक अर्थात् विकृतिक गुंजाइश अछि ऐमे। सा आ प मात्र शुद्ध होइत अछि, आ विकृति भऽ सकैत अछि दू तरहेँ, शुद्धसँ स्वर ऊपर जाएत आकि नीचाँ। यदि ऊपर रहत स्वर तँ कहब ओकरा तीव्र आ नीचाँ रहत तँ ओ कोमल कहाएत। म कँ छोड़ि कऽ सभ अचल स्वरक विकृति होइत अछि नीचाँ, तखन बुझू जे “रे, , , नि” ई चारि टा स्वरक दू टा रूप भेल कोमल आ शुद्ध। म केर रूप सेहो दू तरहक अछि, शुद्ध आ तीव्र। रे दैत अछि उत्साह, ग दैत अछि शांति, म सँ होइत अछि भय, ध सँ दुःख आ नि सँ होइत अछि आदेशक भान। शुद्ध स्वर तखन होइत अछि, जखन सातो स्वर अपन निश्चित स्थानपर रहैत अछि। ऐ सातोपर कोनो चेन्ह नै होइत अछि।
जखन शुद्ध स्वर अपन स्थानसँ नीचाँ रहैत अछि तँ कोमल कहल जाइत अछि आ ई चारिटा होइत अछि, ऐमे नीचाँ क्षैतिज चेन्ह देल जाइत अछि, यथा- रे॒ग॒ध॒नि॒।

शुद्ध आ मध्यम स्वर जखन अपन स्थानसँ ऊपर जाइत अछि, तखन ई तीव्र स्वर कहाइत अछि, ऐमे ऊपर उर्ध्वाधर चेन्ह देल जाइत अछि। ई एकेटा अछि- म॑।
एवम प्रकारे सात टा शुद्ध यथा- सा, रे, , , , , नि, चारिटा कोमल यथा- रे॒ग॒ध॒नि॒ आ एकटा तीव्र यथा म॑ सभ मिला कऽ 12 टा स्वर भेल।
ऐमे स्पष्ट अछि जे सा आ प अचल अछि, शेष चल वा विकृत।"

ऐ विवरणसँ स्पष्ट अछि जे श्री ठाकुर जी गजल, बहर आ संगीतक प्रमाणिक जानकारी पाठकक आगू रखलाह अछि।

5) मैथिली भाषा संपादन--- बहुत रास विशेषतामेसँ ई एकटा यूनिक विशेषता अछि। एकर अध्ययन केलासँ अधिकत्तम शुद्ध मैथिली लीखब आबि सकैए ( कोनो भाषा पूर्ण रूपेण शुद्ध नै होइ छै)। किछु उदाहरण देखल जाए--
उच्चारण निर्देश: (बोल्ड कएल रूप ग्राह्य):-  
दन्त न क उच्चारणमे दाँतमे जीह सटत- जेना बाजू नाम, मुदा ण क उच्चारणमे जीह मूर्धामे सटत (नै सटैए तँ उच्चारण दोष अछि)- जेना बाजू गणेश। तालव्य शमे जीह तालुसँ, षमे मूर्धासँ आ दन्त समे दाँतसँ सटत। निशाँ, सभ आ शोषण बाजि कऽ देखू। मैथिलीमे ष केँ वैदिक संस्कृत जकाँ ख सेहो उच्चरित कएल जाइत अछि, जेना वर्षा, दोष। य अनेको स्थानपर ज जकाँ उच्चरित होइत अछि आ ण ड़ जकाँ (यथा संयोग आ गणेश संजोग आ गड़ेस उच्चरित होइत अछि)। मैथिलीमे व क उच्चारण ब, श क उच्चारण स आ य क उच्चारण ज सेहो होइत अछि।
ओहिना ह्रस्व इ बेशीकाल मैथिलीमे पहिने बाजल जाइत अछि कारण देवनागरीमे आ मिथिलाक्षरमे ह्रस्व इ अक्षरक पहिने लिखलो जाइए आ बाजलो जेबाक चाही। कारण जे हिन्दीमे एकर दोषपूर्ण उच्चारण होइत अछि (लिखल तँ पहिने जाइत अछि मुदा बाजल बादमे जाइत अछि), से शिक्षा पद्धतिक दोषक कारण हम सभ ओकर उच्चारण दोषपूर्ण ढंगसँ कऽ रहल छी।
अछि- अ इ छ  ऐछ (उच्चारण)
छथि- छ इ थ  – छैथ (उच्चारण)
पहुँचि- प हुँ इ च (उच्चारण)
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मने ऐ लेखकेँ पढ़लासँ लिखित आ उच्चरित दूनू रूपक दर्शन भेटत आ पाठक एकै ठाम ई व्याख्या देखि सकै छथि। वर्तमान समयमे ई आलेख मैथिली भाषाक मानकीकरण लेल मीलक पाथर जकाँ अछि संगे संग ई मिथिलाक सभ जातिक उच्चारणपर अधारित अछि तँए पुरान व्याकरणशास्त्री सभहँक व्याख्यासँ बेसी प्रमाणिक ओ लोकप्रिय अछि।
6) मैथिलीक बहर विहीन गजलक संदर्भ-- श्री ठाकुर प्रमाणिकता पूर्वक बहर विहीन गजल सभहँक खंडन केलाह कर विस्तृत विवरण ऐ शास्त्रमे भेटैए--
लोकवेद आ लालकिला:
आत्ममुग्ध आमुख सभक बाद ऐ संग्रह मे कलानन्द भट्ट, तारानन्द वियोगी, डॉ. देवशंकर नवीन, नरेन्द्र, डॉ. महेन्द्र, रमेश, रामचैतन्य “धीरज”, रामभरोस कापड़ि “भ्रमर”, रवीन्द्र नाथ ठाकुर, विभूति आनन्द, सियाराम झा “सरस” आ सोमदेवक  गजल  देल गेल अछि।
कलानन्द भट्ट
भोर आनब हम दोसर उगायब सुरुज
करब नूतन निर्माण हम बनायब सुरुज
सरल वार्णिकक अनुसारे गणना- पहिल पाँती-17 वर्ण दोसर पाँती- 18 वर्ण; जखन सरल वार्णिकेमे गणनाक अन्तर अछि तँ ह्रस्व दीर्घ विचारपर जेबाक मेहनति बचि गेल।
मात्रिक गणनाक अनुसार- पहिल पाँती-21 मात्रा, दोसर पाँती- 21 मात्रा, मात्रा मिल गेलासँ आब ह्रस्व दीर्घ पर चली। पहिल पाँती दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व (एतऽ दूटा लगातार ह्रस्वक बदला एकटा दीर्घ दऽ सकै छी, से दोसर पाँतीमे देखब)। दोसर पाँती- ह्रस्व-हस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ- ह्रस्व-हस्व- ह्रस्व-हस्व-दीर्घ- ह्रस्व-हस्व- ह्रस्व-हस्व-ह्रस्व। मुदा एतऽ गाढ़ कएल अक्षरक बाद क्रम टूटि गेल।
--------------- आ एनाहिते सभ बहर विहीन गजलक तक्ती कएल गेल अछि। ऐ पद्धितसँ समान्य पाठक सेहो बहरक निर्धारण कऽ सकै छथि।

7) मैथिली गजलक इतिहासकेँ दू भागमे बाँटब--- श्री ठाकुरजी मैथिली गजलक प्रवृति, काल ओ प्रमाणिकताकेँ हिसाबसँ दू खंडमे बटलाह 1) 1905सँ लऽ कऽ 2008 धरि "जीवन युग" 2008कक बाद बला कालखंडकेँ ओ "अनचिन्हार आखर"क नामपर "अनचिन्हार युग"

संगीतकार आ संगीतविद भेनाइ अलग-अलग गप्प छै। संगीतकार संगीतक रचना करै छै तँ संगीतविद संगीतक फार्म के। तेनाहिते शाइर आ अरूजी भेनाइ अलग-अलग गप्प छै। शाइर शाइरी केर रचना करै छै तँ अरूजी ओकर फार्म के। केखनो काल बहुमुखी प्रतिभा बला रचयिता दूनू काज करै छै। मुदा काजमे अंतर रहितों दूनू एक दोसरापर टिकल छै। केखनो काल शाइर वा संगीतकार भावमे आबि कऽ फार्मकेँ तोड़ि नव फार्म बना दै छै। आब ऐठाम अरूजी वा संगीतविद ओकरा अपन भाषा वा स्वरक अनूकूल बनेबाक ले प्रयत्न भऽ जाइ छथि आ एही ठाम शुरू भऽ जाइत छै संगीतकार आ संगीतविद वा शाइर आ अरूजी के झगड़ा। मुदा ई झगड़ा शुद्ध रूपसँ वैचारिक होइत छै। केखनो काल कऽ व्यक्तिगत सेहो बनि जाइत छै। मुदा सभ पक्षकेँ बुझबाक चाही जे केहनो नीक फार्म वा भाव किएक ने हो अपन भाषा वा अपन लय केर हिसाबसँ हेबाक चाही। जँ हम भारतीय शास्त्रीय संगीतमे वेस्टर्न सुर लऽ रहल छिऐ तँ ई धेआन राखऽ पड़त जे ओकर लय पूर्ण रूपेण भारतीय हो। जँ सुर भारतीय नै हएत तँ ओ गीत किछुए दिनमे बिला जाएत। हमरा हिसाबें भारतमे फ्यूजन संगीत किछु दिन लेल लोकप्रिय तँ भेल मुदा जल्दिए बिला गेल कारण संगीतकार सभ वेस्टर्न तत्व तँ लऽ लेलाह मुदा ओकर भारतीयकरण करबामे असफल भऽ गेलथि। मैथिलीक शाइर सभ वैचारिक युद्ध करबाक बदला घर-घराड़ीक गप्प आनि दै छथि। हुनका बुझाइन छनि जे हमरा लग पाइ अछि तँ हमर बात किएक ने उपर रहत। ओहन शाइर ईहो कहै छथि जे अमुक लोक वा अमुक संस्था जोनो हमर रोजी-रोटी चलबै छथि जे हम हुनकर गप्प मानब। श्री गजेन्द्रजी द्वारा लिखल गजलशास्त्रक दोसरे खंडसँ मैथिलीक किछु नकली शाइर सभ क्रोधित भऽ गेलाह कारण ई शास्त्र हुनकापर प्रश्नचिन्ह लगा देलक। तँए ओ नानाप्रकारक  आरोप-प्रत्यारोपपर आबि गेलथि मुदा सच सदिखन सच होइ छै आ ओकर कोनो विकल्प नै छै।
ऐ मुख्य विशेषता सभकेँ अलावे आर बहुत रास विशेषता छै जेना मैथिली-उर्दू गणना, विकारी प्रयोग आदि जकरा ऐ छोट आलेखमे समटल नै जा सकैए। पाठकसँ आग्रह जे पूर्ण रसास्वादन लेल मूल पाठ पढ़थि।
आब आबी ऐ पोथीमे संकलित गजल सभपर। गजल दिस चलबासँ पहिने हम किछु निवेदन करब। जेना की पहिनहें हम कहने छी जे गजेन्द्र ठाकुरजी रचैत-रचैत गजल ओ गजल शास्त्रकेँ मजगूत केलाह तँए ऐ संग्रहमे ओहनो गजल सभ अछि जैमे काफिया नै अछि (ओना पोथीक अंतमे शुद्धि पत्र देल गेल अछि अजुक हिसाबसँ), तेनाहिते कोनो गजलमे बिनु काफियाक रदीफ भेटत। हँ, सभ गजल अरबी बहर ओ सरल वार्णिकमे अछि। जँ बिना शुद्धिपत्रकेँ देखी तँ आलोचक ऐ गजल सभकेँ खारिज कऽ सकै छथि आ तैमे किनको आपत्ति नै। मुदा ऐ ठाम ई धेआन राखब बेसी जरूरी जे ई गजल सभ प्रयोगिक स्तरपर लिखल गेल अछि चाहे ओ संस्कृतक तुकांत विहीनि काय्यक प्रयोग कहियौ की मैथिली गीतक पारंपरिक गीतक तुकांतक प्रयोग आ ऐ प्रयोग सभसँ गुजरलाक बादें श्री ठाकुजी गजलशास्त्र दिस गेलाह। जँ ऐ संग्रहक गजल सभकेँ नीक जकाँ पढ़बै तँ तीनटा प्रयोग नीक जकाँ लक्षित हएत--- 1) जँ गजल बिना कफियाक हेतै ( संस्कृत जकाँ ) तखन केहन हेतै 2) जँ काफिया नै मुदा खाली रदीफ होइक तखन केहन हेतै आ 3) जँ अरबी बहरमे होइक तखन ओकर गायन केहन हेतै। ऐ लेल श्री ठाकुरजी दीक्षा ठाकुरसँ अपन किछु सलेक्टिव गजल गबा कऽ प्रयोग कऽ लेने छथि जे की ऐ लिंकपर अछि--
आब आलोचक सभ ऐ ठाम ई कहि सकै छथि जे प्रकाशित होमएसँ पहिने एकरा सही कएल जा सकै छलै आ से गप्प सही अछि मुदा से केलासँ कोन प्रयोग कोना भेलै से हटि जाइत तँए संग्रहमे गजल मूल प्रारूपमे अछि आ अंतमे शुद्धिपत्र देल गेल अछि। तँ आब ऐ संग्रहक किछु गजलक मूल प्रारूपकेँ देखी---

ऐ संग्रहक पहिल गजलक मतला अछि--

बझाओल गेलैए चिड़ैया एना रे
कहैए हितैषी ई शिकारी बड़ा रे

अजुके नै सभ दिनसँ सभ दिनसँ शिकारी अपना आपकेँ चिड़ैयाक हितैषी कहैए आ तकर परिणाम की होइ छै से सभकेँ बूझल छै...............
दोसर गजलक दोसर शेर देखल जाए---

क्रूर स्वप्न आ सुन्दर जीवन देखलौं निन्नसँ जगलापर
कोना हम मानब जँ कियो ई कहलक किछु नै बदलैए

सपना आ यथार्थपर बहुत तर्क वितर्क छै मुदा एकरा काव्यत्मक रूपमे देखू जे की मजा छै।

कहबी छै जे मिथिलामे आगि लागि गेल रहै मुदा तैयो जनक अविचलित रहि गेल छला। दोसर कहबी छै जे रोम जरैत छल आ नीरो बंसी बजा रहल छल। दूनू घटना दुनियाँक दू छोड़पर भेल छल मुदा कतेक साम्यता छै से देखू। एही घटनाकेँ श्री ठाकुरजी ऐ शेरमे बान्हि देला--

मनुख जरैए गाम कनैए हमरा की
चद्दरि तनने फोंफ कटैए हमरा की

तेरहम गजल देखू--
अकत तीत प्रेमक जे पथिक अदौकालसँ
धतालबूढ़ प्रेमकेँ बोहेलक दुनू हाथसँ

निर्मल आंगुरसँ छूबै जे ओकर पुठपुरी
फरफैसी पसारै निदरदी अगिलकण्ठ जँ

निमरजना प्रेम जे छलै धपोधप निश्छल
बिदोरै लेल प्रेमीकेँ छलै ओ कड़ेकमान तँ

अकरतब कर्तव्यमे भेद नै बुझलकै जे
जराउ प्रेमक गप्प नै कहियो नुकेलकै जँ

खञ्जखूहर ऐरावत नै बाटक छेँ बाटमे
धांगि बाट बनेबाक दाम अगूबार पेने छँ

ऐ गजलमे शाइर संस्कृतक अनुकरणपर काफिया मात्र चंद्रबिंदुकेँ लेने छथि ( मात्र प्रयोगक खातिर)

ऐ गजल सभहँक अलावे ऐ संग्रहमे अजाद गजल ओ बाल गजल सेहो अछि मुदा हम अपन विचारकेँ विराम दऽ रहल छी आ आग्रह करै छी जे मैथिली गजलक प्रयोगसँ गुजरबाक लेल ऐ संग्रहकेँ जरूर पढ़ी।



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