अनचिन्हार आखर
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शेर जे सभ दिन शेर रहतै
शनिवार, 26 जुलाई 2014
गजल
जिनगी एक टा खेल छी
सुख दुख केर ई मेल छी
कहियो जे सुलझि नै सकत
तेहन ई अगम झेल छी
संयमतासँ जे नै रहत
तकरा लेल ई जेल छी
रूकत नै निरन्तर चलत
ई अविराम सन रेल छी
होइत अछि जखन दुख तखन
दैवक बुझि चलू ठेल छी
बहरे-मुक्तजिब
© कुन्दन कुमार कर्ण
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