मंगलवार, 11 नवंबर 2014

गजल

ओकरा देखिते देह अपने सिहरि जाइ छै
आगि नेहक हियामे तखन यौ पजरि जाइ छै

मारि कनखी दए छै जखन ताकि अनचोकमे
डेग अपने हमर ओकरा दिस ससरि जाइ छै

ओ हँसै छै त एना बुझाइत रहल बागमे
फूल जेना गुलाबक लजाइत झहरि जाइ छै

चानकेँ देखिते रातिमे चेहरा ओकरे
झिलमिलाइत हमर आँखिमे सजि उतरि जाइ छै

लाख लड़की करै छै हमर आब पाछू मुदा
छोडि सभकेँ बहकि ओकरेपर नजरि जाइ छै

प्रेम कुन्दन हए छै अहीना बुझा से रहल
एहने जालमे मोन सुधि बुधि बिसरि जाइ छै

बहरे-मुतदारिक

© कुन्दन कुमार कर्ण

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों