अहाँ बिनु नै सुतै नै जागैत छी हम
कही की राति कोना काटैत छी हम
अहाँक प्रेम नै बुझलहुँ संग रहितो
परोक्षमे कते छुपि कानैत छी हम
करेजा केर भीतर छबि दाबि रखने
अहीँकेँ प्राण अप्पन मानैत छी हम
बुझू नै हम खिलाड़ी एतेक कचिया
अहाँ जीती सखी तेँ हारैत छी हम
अहाँ जगमे रही खुश जतए कतौ 'मनु'
दुआ ई मनसँ सदिखन मांगैत छी हम
(बहरे करीब, मात्रा क्रम : 1222- 1222- 2122)
जगदानन्द झा ‘मनु’
कही की राति कोना काटैत छी हम
अहाँक प्रेम नै बुझलहुँ संग रहितो
परोक्षमे कते छुपि कानैत छी हम
करेजा केर भीतर छबि दाबि रखने
अहीँकेँ प्राण अप्पन मानैत छी हम
बुझू नै हम खिलाड़ी एतेक कचिया
अहाँ जीती सखी तेँ हारैत छी हम
अहाँ जगमे रही खुश जतए कतौ 'मनु'
दुआ ई मनसँ सदिखन मांगैत छी हम
(बहरे करीब, मात्रा क्रम : 1222- 1222- 2122)
जगदानन्द झा ‘मनु’
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