रविवार, 7 दिसंबर 2014

गजल

दुख केर मारल छी ककरा कहू
केहन अभागल छी ककरा कहू

हम आन आ अप्पनकेँ बीचमे
सगरो उजारल छी ककरा कहू

नै जीत सकलहुँ आगू नियतिकेँ
जिनगीसँ हारल छी ककरा कहू

बनि पैघ किछु नव करऽकेँ चाहमे
दुनियाँसँ बारल छी ककरा कहू

कुन्दन पुछू संघर्षक बात नै
दिन राति जागल छी ककरा कहू

मात्राक्रम : 221-222-2212

© कुन्दन कुमार कर्ण

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों