हमरा इ सूचित करैत बड्ड नीक लागि रहल अछि जे " अनचिन्हार आखर" द्वारा स्थापित पुरस्कार " गजल कमला-कोशी-बागमती-महानंदा" पुरस्कारक पहिल चरण ( मास जनवरी सँ अप्रिल धरि) पूरा भए गेल अछि। मास जनवरी सँ लए कए अप्रिल धरिक जनिका जाहि रचना लेल चयन कएल गेलैन्ह अछि तकर सूची एना अछि।
त्रिपुरारी कुमार शर्माक एहि रचनाकेँ जनवरी मास लेल चयन कएल गेलैन्ह अछि----------
कोरा में माथा रइख कS सुतइ के इच्छा अछि
अहाँ नजदीक आबि क’ मरइ के इच्छा अछि
टहटहाइत इजोरिया में फेर आउ एक बेर
टहटहाइत इजोरिया में देखइ के इच्छा अछि
कोनो बात नइ छै प्राण चइल गेलय त’ की
अहाँ के आइबते अर्थी से उठइ के इच्छा अछि
पड़ल जखन साँझ मोन भ’ गेल बड्ड निराश
अहाँ लेल भरि जिनगी बैठइ के इच्छा अछि
उड़ल जाइ छी एखन फेर नील गगन दिस
अहाँ संग नील गगन में उड़इ के इच्छा अछि
सदरे आलम गौहरजीक एहि रचनाकेँ मास फरवरी लेल चयन कएल गेलैन्ह अछि-----
जहिआ-जहिआ कौआ बाजे टाटपर
देखै छी हम ओ तँ अबैए बाटपर
ताकै छल पोखरि-झाखरि गेलै कहाँ
आँखि झुका बैसल छथि भाइ तँ घाटपर
निन्नो हेतै केना माए-बापकेँ
बेटी बैसल सदिखन जकरा माथपर
सौंसे घरमे पाबनि मनबैए इ सभ
सदिखन बैसल बूढ़ा खोंखथि खाटपर
झिल्ली-मुरही-कचरी आबो भेटत
आबि तँ देखू अप्पन गामक हाटपर
सुनील कुमार झाक एहि रचनाक चयन मार्च मास लेल कएल गेल अछि-------
अनकर मचान पर, आशीष जी के दालान पर,
मिथिला के शान पर लिखय लए तैयार छि.
गामक गोप के, गामक लोग लए,
गामक भाषा में,परसय लए तैयार छि
मिथिला के रंग के, मैथिल के ढंग के,
मिथिला के मंच पे आनय लए तैयार छि,
मिथिला के गोप से, मैथिल के ढ़ोब से,
नै अनचिन्हार छि, हम 'झा' सुनील कुमार छि..
मिथिला के शान पर लिखय लए तैयार छि.
गामक गोप के, गामक लोग लए,
गामक भाषा में,परसय लए तैयार छि
मिथिला के रंग के, मैथिल के ढंग के,
मिथिला के मंच पे आनय लए तैयार छि,
मिथिला के गोप से, मैथिल के ढ़ोब से,
नै अनचिन्हार छि, हम 'झा' सुनील कुमार छि..
विकास कुमार झाक एहि रचनाक चयन मास अप्रिलकेँ लेल कएल गेल अछि-----
मोन मुंगबा फुटईया मीत हमर ,
सोझा अबैईथ जखन प्रीत हमर !
हुनक जूट्टी में गूहल भबित हमर ,
हुनक गजरा गछेरने अतीत हमर !
खाम्ह कोरो बनल मोन चीत हमर ,
हुनक लेपट सौं छारल अई भीत हमर !
हुनक नख शिख में नेह निहीत हमर ,
हुनक कोबरे करत मोन तिरपित हमर !
हम हुनके सिनेह ओ सरीत हमर ,
हुनक मुस्की सौं जागे कबीत हमर
सोझा अबैईथ जखन प्रीत हमर !
हुनक जूट्टी में गूहल भबित हमर ,
हुनक गजरा गछेरने अतीत हमर !
खाम्ह कोरो बनल मोन चीत हमर ,
हुनक लेपट सौं छारल अई भीत हमर !
हुनक नख शिख में नेह निहीत हमर ,
हुनक कोबरे करत मोन तिरपित हमर !
हम हुनके सिनेह ओ सरीत हमर ,
हुनक मुस्की सौं जागे कबीत हमर
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