बुधवार, 4 मई 2011

गजल- (गायत्री गजल)

गुमकी लागै राति बुलैत चान झपाइ छी

घुरि जाइ गाम मुदा बीचे असकताइ छी



चरको परियानि ई बनेलौं कएक बेर

उबेरक बाट ताकी आ सुरुज कहाइ छी



अकास बिच सतरंगा पनिसोखा उगलैए

निराशसँ आगू जाइ बीचेमे लेभराइ छी



जे काज होइए पछता से काज ताकी हम

अगता काज आबैए जान कोना गमाइ छी



ओकरा देखि बुझलहुँ गढ़निक सोपान

बनैत- बनैत बनै मूर्ति अहाँ देखाइ छी



ढङीला छौरा धरैए भेष रूप बदलैत

दोहरी ई नस-नस बुझी हम चिन्हाइ छी



जे संगमे अछि सेहो छोड़ने अहाँ जाइ छी

राखब की लगैए पकड़ै लेल पड़ाइ छी



कानमे ठेकी आँखिमे गेजर मूह दुसैए

लेरचुब्बा नै डिग्गा मदारी जे कहै जाइ छी



बूझी बाजी करतेबता सँ बढ़ू एक्के सुरे

पेटो पानि नै मूह दुसै कनीले हुसाइ छी



छोड़ि कऽ चलि गेल छाह, परात, इजोरिया

ऐरावत दोसराइत अहाँ की कसाइ छी



टिप्पणी:गायत्री: ई चारि प्रकारक होइत अछि- द्विपदी, त्रिपदी, चारि पदी आ पाँचपदी। चारि पदी मे ८-८ अक्षरक पद आ एक पदक बाद अर्द्धविराम आ दू पदक बाद पूर्णविराम दए सकै छी। माने एक गायत्री शेर तैयार।

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों