वियोगी लोकवेद आ लालकिलाक एकटा दोसर आमुखमे लिखै छथि- “छन्दशास्त्रक नियमपर आधारित होयबाक उपरान्तो एहिमे गजलकारकेँ गणना-नियमक स्वातन्त्र्यक अधिकार रहैत छैक।” (!)
गजल कतेको ढंगसँ कतेको बहरमे कतेको छन्दमे लिखल जा सकैए, ई सत्य अछि, मुदा गणना नियमक स्वातन्त्र्यक अधिकार ने मात्रिक गणनामे छैक आ ने वार्णिक गणनामे।
देवशंकर नवीन लिखै छथि –“...पुनः डॉ. रामदेव झाक आलेख आएल। एहि निबन्धमे दूटा अनर्गल बात ई भेल, जे गजलक पंक्ति लेल, छन्द जकाँ मात्रा निर्धारण करए लगलाह..”।
लोकवेद आ लालकिलामे गजल शुरू हेबासँ पहिने कएकटा आलेख अछि, मैथिली गजलपर कोनो सकारात्मक टिप्पणी तँ नै अछि ऐ सभमे, हँ मुदा समीक्षककेँ लाठी हाथे “ई सभ मैथिली गजल थिक, गजले टा थिक” कहबापर विवश करैत प्रहार सभ अवश्य अछि।
हाइकूमे सिलेबल आ वर्णक मिलानी अंग्रेजी हाइकूक आरम्भिक लेखनमे नै भऽ सकल, देखल गेल जे ५/७/५ सिलेबलमे बहुतरास अल्फाबेट आबि गेल, जापानीमे ओतेक अल्फाबेट ५/७/५ सिलेबलमे नै छल। मैथिलीक आरम्भिक हाइकूमे सेहो ५/७/५ सिलेबलक अनुकरण करैत ज्योति चौधरी अपन कविता संग्रह “अर्चिस्” मे बेसी वर्णक प्रयोग केलन्हि। तेँ हम सलाह देलहुँ जे मैथिली हाइकू सरल वार्णिक छन्दक आधारपर लिखल जाए जइमे ह्रस्व-दीर्घक विचार नै हुअए। संस्कृतमे १७ सिलेबलबला वार्णिक छन्दमे नोकमे नोक मिला कऽ १७ टा वर्ण होइ छै- जेना शिखरिणी, वंशपत्र पतितम्, मन्दाक्रान्ता, हरिणी, हारिणी, नरदत्तकम्, कोकिलकम् आ भाराक्रान्ता। से ५/७/५ मे १७ सिलेबल लेल १७ टा वर्ण हाइकू लेल गेल, से आब ज्योतिजी सेहो लऽ रहल छथि, हम सेहो लऽ रहल छी आ मिहिर झा, इरा मल्लिक, उमेश मंडल, रामविलास साहु, सुनील कुमार झा सेहो लऽ रहल छथि। रुबाइमे हमर सलाह छल जे एतए सरल वार्णिक छन्दक प्रयोग सम्भव नै अछि, कारण एकर प्रारम्भ दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ वा दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व सँ होइत अछि से चाहे तँ ह्रस्व-दीर्घक मिलानी खाइत वर्णिक छन्दक प्रयोग करू वा मात्रिक छ्न्दक। रुबाइक चतुष्पदीमे पहिल दोसर आ चारिम पाँती काफिया युक्त होइत अछि; आ मात्रा (वा वार्णिकमे वर्ण)२० वा २१ हेबाक चाही। कारण चारू पाँती चारि तरहक बहर (छन्द) मे लिखल जा सकैए से निअमकेँ आगाँ नमरेबाक आवश्यकता नै छै, हँ ई निर्णय करैए पड़त जे चारू पाँतीमे वार्णिक वा मात्रिक गणना पद्धति जे ली, से एक्के हेबाक चाही।
गजलमे मुदा अहाँ वार्णिक, सरल वार्णिक वा मात्रिक छन्दक प्रयोग कऽ सकै छी, मुदा एक गजलमे दूटा बौस्तु मिज्झर नै करू। बिन छन्द वा बहरक गजल अहाँ कहि सकै छी, समीक्षककेँ लुलुआ कऽ आ लाठी हाथे; मुदा ओ गजल नै हएत, उर्दू/ फारसीमे तँ मुशायरामे अहाँकेँ ढुकैये नै देत। आ आब जखन रोशन झा, प्रवीण चौधरी प्रतीक, आशीष अनचिन्हार, सुनील कुमार झा सन युवा गजलकार अन्तर्जालपर एकटा टिप्पणीक बाद सरल वार्णिक छन्दमे गजलकेँ संशोधित कऽ सकै छथि तँ लालकिलावादी गजलकार लोकनि किए नै कऽ सकै छी? मायानन्द मिश्र “गीतल” कहि आ गंगेश गुंजन “गजल सन किछु मैथिलीमे” कहि जे गलत परम्पराकेँ जारी रखबाक निर्णय लेने छथि तकरा बाद मुन्ना जी आ आशीष अनचिन्हार जँ बिना छन्द/ बहरक गजल लिखै छथि तँ एकरा हम मायानन्द मिश्र, गंगेश गुंजन आ लालकिलावादी अ-गजलकार लोकनिक दुष्प्रभावे बुझै छी।
लोकवेद आ लालकिला:
आत्ममुग्ध आमुख सभक बाद ऐ संग्रह मे कलानन्द भट्ट, तारानन्द वियोगी, डॉ. देवशंकर नवीन, नरेन्द्र, डॉ. महेन्द्र, रमेश, रामचैतन्य “धीरज”, रामभरोस कापड़ि “भ्रमर”, रवीन्द्र नाथ ठाकुर, विभूति आनन्द, सियाराम झा “सरस” आ सोमदेवक गजल देल गेल अछि।
कलानन्द भट्ट
भोर आनब हम दोसर उगायब सुरुज
करब नूतन निर्माण हम बनायब सुरुज
सरल वार्णिकक अनुसारे गणना- पहिल पाँती-१७ वर्ण दोसर पाँती- १८ वर्ण; जखन सरल वार्णिकेमे गणनाक अन्तर अछि तँ ह्रस्व दीर्घ विचारपर जएबाक मेहनति बचि गेल।
मात्रिक गणनाक अनुसार- पहिल पाँती-२१ मात्रा, दोसर पाँती- २१ मात्रा, मात्रा मिलि गेलसे आब ह्रस्व दीर्घ पर चली। पहिल पाँती दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व (एतए दूटा लगातार ह्रस्वक बदला एकटा दीर्घ दऽ सकै छी, से दोसर पाँतीमे देखब)। दोसर पाँती- ह्रस्व-हस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ- ह्रस्व-हस्व- ह्रस्व-हस्व-दीर्घ- ह्रस्व-हस्व- ह्रस्व-हस्व-ह्रस्व। मुदा एतए गाढ़ कएल अक्षरक बाद क्रमटूटि गेल।
तारानन्द वियोगी
दर्द जँ हद केँ टपल जाए तँ आगि जनमै अछि
बर्फ अंगार बनल जाए तँ आगि जनमै अछि
सरल वार्णिकक अनुसारे गणना- पहिल पाँती-१९ वर्ण दोसर पाँती- १८ वर्ण; जखन सरल वार्णिकेमे गणनाक अन्तर अछि तँ ह्रस्व दीर्घ विचारपर जएबाक मेहनति बचि गेल।
मात्रिक गणनाक अनुसार- पहिल पाँती-२५ मात्रा, दोसर पाँती- २५ मात्रा, मात्रा मिलि गेलसे आब ह्रस्व दीर्घ पर चली। दीर्घ (संयुक्ताक्षरकेँ पहिने)-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्र्अस्व-ह्रस्व।(एतए दूटा लगातार ह्रस्वक बदला एकटा दीर्घ दऽ सकै छी, से दोसर पाँतीमे देखब)। दोसर पाँती- दीर्घ (संयुक्ताक्षरकेँ पहिने)-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ एतए क्रमभंग भऽ गेल।
देवशंकर नवीन
अँटा लेब समय-चक्र, सहजहि एहि आँखि बीच
नबका प्रभात लेल, क्रान्ति कोनो ठानि लेब
सरल वार्णिकक अनुसारे गणना- पहिल पाँती-१९ वर्ण दोसर पाँती- १६ वर्ण; जखन सरल वार्णिकेमे गणनाक अन्तर अछि तँ ह्रस्व दीर्घ विचारपर जएबाक मेहनति बचि गेल।
मात्रिक गणनाक अनुसार- पहिल पाँती-२५ मात्रा, दोसर पाँती- २५ मात्रा, मात्रा मिलि गेलसे आब ह्रस्व दीर्घ पर चली। ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व (एतए दूटा लगातार ह्रस्वक बदला एकटा दीर्घ दऽ सकै छी, से दोसर पाँतीमे देखब)। दोसर पाँती- ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ- मुदा एतए गाढ़ कएल अक्षरक बाद क्रमटूटि गेल।
नरेन्द्र
निकलू तँ सजिकऽ सजाकेँ
बासन ली ठोकि बजाकेँ
सरल वार्णिकक अनुसारे गणना- पहिल पाँती-१० वर्ण दोसर पाँती- ९ वर्ण; जखन सरल वार्णिकेमे गणनाक अन्तर अछि तँ ह्रस्व दीर्घ विचारपर जएबाक मेहनति बचि गेल।
मात्रिक गणनाक अनुसार- पहिल पाँती-१३ मात्रा, दोसर पाँती-१४, मात्रा गणनाक अन्तर अछि तँ ह्रस्व दीर्घ विचारपर जएबाक मेहनति बचि गेल।
डॉ महेन्द्र
चलैछ आदमी सदिखन चलैत रहबा लए
जीबैछ आदमी सदिखन कलेस सहबा लए
सरल वार्णिकक अनुसारे गणना- पहिल पाँती-१८ वर्ण दोसर पाँती- १८ वर्ण। मुदा तेसर शेरमे दोसर पाँतीमे १६ वर्ण आबि गेल अछि। मात्रिकमे सेहो उपरका दुनू पाँतीमे क्रमसँ २४ आ २५ वर्ण अछि।
रमेश
जखन-जखन साओनक ओहास पड़ैए
हमर छाती मे गजलक लहास बरैए
सरल वार्णिकक अनुसारे गणना- पहिल पाँती-१६ वर्ण दोसर पाँती- १६ वर्ण। मुदा दोसर शेरक पहिल पाँतीमे १५ वर्ण। मात्रिक मे सेहो उपरका दुनू पाँतीमे २२ वर्ण अछि। मुदा ह्रस्व-दीर्घ गणनामे दोसरे शब्दमे ई मारि खा जाइए।
ई दोष शेष गजलकारमे सेहो देखबामे अबैए।
एकर अतिरिक्त सुरेन्द्रनाथक “गजल हमर हथियार थिक” , सियाराम झा “सरस”क “थोड़े आगि थोड़े पानि”, रमेशक “नागफेनी” आ तारानन्द वियोगीक “अपन युद्धक साक्ष्य” मे सँ किछु किताब लाठी हाथे मैथिली साहित्यमे गजल संग्रहक रूपमे साहित्य अकादेमीक सर्वे ऑफ मैथिली लिटेरेचरक उत्तर जयकान्त मिश्र संस्करणमे आबि गेल अछि, किछु ऐ सहित्यक इतिहासक अगिला संस्करणमे आबि जाएत! अरविन्द ठाकुरक गजल सेहो पत्र-पत्रिकामे गजल कहि छपि रहल अछि जे अही परम्पराकेँ आगाँ बढ़बैत अछि।
जँ ई सभ गजल नै छी तँ पद्य तँ छी आ तइ रूपमे एकर विवेचन तँ हेबाके चाही। ऐ क्रममे रवीन्द्रनाथ ठाकुरक “लेखनी एक रंग अनेक” देखू। मैथिली गजल संग्रहक रूपमे ई पोथी आइसँ २५ बर्ख पूर्व आएल। सोमदेव आ भ्रमरक संग हिनको गजल लालकिलावादक परिभाषामे नै अबैत अछि। गजल नै मुदा पद्यक रूपमे एकर स्थान मैथिली साहित्यमे सुरक्षित छै, मुदा ई आन वर्णित गजलक तथाकथित संकलनक विषयमे नै कहल जा सकैए।
एक छन्द, एक बाँसुरी, एक धुन सुनयबालेऽ
लियौ ई एक गजल, आई गुनगुनयबालेऽ
(रवीन्द्रनाथ ठाकुर “लेखनी एक रंग अनेक”)
हमर मैथिली रुबाइ आ मैथिली गजल बहर/ छन्द मे लिखल नीचाँ देल जा रहल अछि:
रुबाइ
कारी अनहार मेघ आ नै होइएकत्तौ बलुआ माटि खा नै होइए
दाहीजरती देखि हिलोरै-ए मेघ
भगजोगनी भकरार जा नै होइए
गजल (बहरे मुतकारिब)
अहाँ बूझि लै छी जुआरी अनेरेजिबै कोन बैबे नियारी अनेरे
हहारो उठेलौं नचारी गबेलौं
सिहाबै किए छी मदारी अनेरे
जतेको नबारी छबारी बुरैए
घुरेबै कियो नै सुतारी अनेरे
घरोमे उपासे बहारो निरासे
दहारे अकाले हियासी अनेरे
चलै छी खटोली उठा ऐ भरोसे
भसाठी अबैए डरै छी अनेरे
गजल (बहरे मुतकारिब )
उचरि नव रूप अपन लिखैब तखन किने
उतर दछिन डगहर बहैब तखन किने
कनकन करत बनत सदिखन तलिया यौ
सुअद पैब जौँ अहँ झखैब तखन किने
मनक भूख असगर नुकैब बुझल अछि
अपन बोल-वाणी घुरैब तखन किने
खधाइ गढ़ अछि भरल सभतरि दहारे
जलक धार बिच घर भरैब तखन किने
निमहतासँ निभता निभैब सिखल नहि
नव युग कनिक उगल बुझैब तखन किने
पड़ाइनपर कनैत अछि भाग जँ कतौ
गजेन्द्र मन बूझै हियैब तखन किने
बहरे मुतकारिब मुतकारिब आठ–रुक्न फ ऊ लुन (U।।) – चारि बेर
गजल- (गायत्री गजल)
गुमकी लागै राति बुलैत चान झपाइ छी
घुरि जाइ गाम मुदा बीचे असकताइ छी
चरको परियानि ई बनेलौं कएक बेर
उबेरक बाट ताकी आ सुरुज कहाइ छी
अकास बिच सतरंगा पनिसोखा उगलैए
निराशसँ आगू जाइ बीचेमे लेभराइ छी
जे काज होइए पछता से काज ताकी हम
अगता काज आबैए जान कोना गमाइ छी
ओकरा देखि बुझलहुँ गढ़निक सोपान
बनैत- बनैत बनै मूर्ति अहाँ देखाइ छी
ढङीला छौरा धरैए भेष रूप बदलैत
दोहरी ई नस-नस बुझी हम चिन्हाइ छी
जे संगमे अछि सेहो छोड़ने अहाँ जाइ छी
राखब की लगैए पकड़ै लेल पड़ाइ छी
कानमे ठेकी आँखिमे गेजर मूह दुसैए
लेरचुब्बा नै डिग्गा मदारी जे कहै जाइ छी
बूझी बाजी करतेबता सँ बढ़ू एक्के सुरे
पेटो पानि नै मूह दुसै कनीले हुसाइ छी
छोड़ि कऽ चलि गेल छाह, परात, इजोरिया
ऐरावत दोसराइत अहाँ की कसाइ छी
गजल
नोर झरैए मोनक दागनि दगै छी
तराटक लागलए आ बातो बकै छी
कोनटा बचल नै एकान्ती ले एकोटा
अन्हरोखे उठै छी आ गनती गनै छी
अन्हरियासँ बेसी अन्हार जिनगीमे
ई इजोरिया किए अहाँ मुँह दुसै छी
पिआ गेलाह देशान्तर दूरस्त देस
कियो नै घुरै अछि से आसो नै तकै छी
भोरे अहाँ बिनु दिन फेर बजरल
ऐरावतसँ भारी ऐ दिनकेँ देखै छीगजल
गुम्म भेल जे ठाढ़ भेल छी मुनल मूह मटकुरिए नीक
बाट तकै बहार भेल गजर-गजर तकनहिए नीक
धन भेल थोड़ बिपत बड़ जोर प्रेमक राग बिसरलौं
प्रेम दफानि बिसारै से गदह-पचीसी बुझनहिए नीक
जे देखलक बरियारक गाछ कहलक बिरदाबन ईहे
उड़कुस्सी लागै दलानपर छै आब उजड़नहिए नीक
जकरा कतहु ने छै पुछारी से अछि सौराठक नोतिहारी
चन्द्रोगत नै प्रेम अछिञ्जल से आब बिसरनहिए नीक
हाथी अपने पएरे भारी चुट्टी अपने पएरे भारी अछि
ऐरावत प्रेम-जिंजीरसँ छारल तैं ठोकरेनहिए नीक
गजल (बिना रदीफक)
१
छोट-छीन सन बात बहुत अछि
मुँह बिधुऔने ठाढ़ बहुत अछि
ककरा की कहबै के पतिआएत
गह-गहमे अर्थात बहुत अछि
भयौन बनि ओ अछि ठाढ़ सोझाँमे
हाथक गहमे हाथ बहुत अछि
नीक काज देखि गुमसुम छी ठाढ़
चबासी दऽ दियौ बात बहुत अछि
ओकरहि पाछाँ सभ चलू चलै छी
बदलि देत विश्वास बहुत अछि
२
दोस्तियारी बिना ई राह कठिन अछि
निभरोस रहू तँ काल्हि कठिन अछि
अनठेने नै दै छी कान बात किए यौ
घृणो तँ करू जँ सएह भरल अछि
केलहुँ जखन जे काज सेहो नै हट्ठे
भेल नै होअए से काज केलहुँ अछि
सनेस हमर जे नीक नै लगलनि
प्रेमक दूट आखर केओ सुनै अछि
जे फुलवाड़ी लगा कृपा करै जाइ छी
आपरूपी बूढ़ नेना बनैत अछि
३
बिसबासी लोक जे जीवनमे हमर
प्रेम लै-दै बला समाजक परिचर
चिन्ताक मोटगर रेख कपारपर
छल छोट से बनल आब छेबगर
जतेक माँगलक देलहुँ बेशिये कऽ
रेख नहि आओल कखनो माथपर
जकरा पदक होश बेहोश बनौने
घृणा चक्कूओसँ बेशी अछि धरगर
दोसराक दर्दसँ दुखी भेलहुँ अछि
नेनोसँ बेशी जे भेलहुँ सुखितगर
४
खेत-खम्हारक काज कऽ सकलहुँ
सप्पत देल गप्प निमाहि देलहुँ
बिसबास रहए तेँ झगड़ा-झाँटी
पाइ तँ आएल समए गमेलहुँ
झगड़ा करैत छी बहुत अहाँसँ
प्रेम करैत छी बुझा ने सकलहुँ
आकांक्षाक पजरैत अग्निक बिच
पैघ छी तकर चेन्हासी कहलहुँ
देखै छी बजै ने छी कोना ने ई कहू
हमहूँ ओहिना घुरा कऽ कहलहुँ
५
भय रहित सत्यसँ भेँट भेल
सुरेब सम्पूर्ण छल अविचल
चित्रक रंगक करतब लेल
उद्देश्यक पाछाँ भटकि रहल
बड़का सन काजक छाह अछि
देखल विस्तृत सुन्दर बनल
आजुक बात खतम होएत यौ
भोरुका बसात से बिर्रो बनल
पूछू सभसँ आ छोड़ू नै ककरो
नव विहान किए छल रोकल
६
दिन-राति बीतल से मोन पड़ल ऐ
अपन आ आनोपर भरोस अछिये
आस्ते सँ जे सिहकि उठल ई बसात
अन्तर्मनक शक्ति बदलि देत सत्ते
विश्वासपर अडिग चलि रहल छी
नवजीवनपथ समस्या ने कोनो ऐ
सिखबाक ई इच्छा खतम भऽ गेने की
मगजक शान्ति भेटत के ई कहै ऐ
ओहि सोचल बुनल असत्य बातक
सत्यक प्रति ई नरम जे भेलहुँ ऐ
मोन पाड़ल नीक खराप बिसरि कऽ
मित्र बढ़ल अछि आ शत्रु कमल ऐ
७
छातीक धरधड़ी घटि बढ़ल अछि
पएर थाकल बेहोशी थम्हल नहि
प्रेममे पड़ि घुरमि हम रहल छी
साँस फुलल आ उद्वेग कमल नहि
निन्नक मारल अछि आँखि फुलल ई
प्रेमक सभटा आख्यान कहल अछि
कहू किए अछि ई चित घबड़ाएल
स्मृति हँसि सूरति बदलल अछि
माँछ बिनु पानिक उन्टा प्रेम हम्मर
प्रेम पाबि खटबताह बनल अछि
हँसैत ओकर जे मुँह हम देखल
सुन्दर सलिल ई धार बहल अछि
आस बहुत छल क्षणमे से बीतल
आस निराशमे कोनो अन्तर नहि
प्रेम पियासल मोन भेल उचाट ई
ई बिसरि गेने तँ बाट बहुत अछि
८
बकथोथीसँ काज चलत नै
आत्म प्रशंसे बात बनत नै
भौकीसँ हम नै घबड़ाएब
पथमे प्रतिकार करब नै
भार मिलि- कऽ सभ उठबै छी
उठल नै आ की गुड़कल नै
खतम करू बात बड्ड भेल
ठठा हँसू तँ बात बढ़त नै
देखि छूबि अनुभूतिक क्षण
ई पाँती इतिहास बनत नै9
अकत तीत प्रेमक जे पथिक अदौकालसँ
धतालबूढ़ प्रेमकेँ बोहेलक दुनू हाथसँ
निर्मल आंगुरसँ छूबै जे ओकर पुठपुरी
फरफैसी पसारै निदरदी अगिलकण्ठ जँ
निमरजना प्रेम जे छलै धपोधप निश्छल
बिदोरै लेल प्रेमीकेँ छलै ओ कड़ेकमान तेँ
अकरतब कर्तव्यमे भेद नै बुझलकै जे
जराउ प्रेमक गप्प नै कहियो नुकेलकै जँ
खञ्जखूहर ऐरावत नै बाटक छेँ बाटमे
धांगि बाट बनेबाक दाम अगूबार पेने छेँ 10
अंतहीन अंत ऐ सोचनीक होइए
भासो नै बनैए नै चित्र पूर होइए
ऐ रंग आ तरंगक नै भेटैए बाट
सोचैत भँसियाइत मगज फटैए
नै बाजैए बाट जे छोड़ि चललौं कतऽ
आँखि बाजैए बिनु बजने बुझबैए
आदति जे लागल वेदना सहबाक
गेंठ बनैए से सोहनगर लगैए
ई गुमकी बढ़ल खत्म हएत की
खरचण्डाली प्रेम पिसीमाल भेलैए 11
रातिक इजोरिया देखि रहल तारा कहलक
तरेगन छोट तैयो इजोतक खिस्सा कहलक
चन्द्रमाक इजोतक चर्च तँ बड़ होइ छै
एहि पिरौँछ इजोतक खेरहा कहलक
उज्जर दपदप इजोतक ई इजोरिया
देत संग अन्हरियामे फरिछा कहलक
पिरौँछ सरिसव फूल हँसि रहल अछि
ई इजोरिया पिरौंछ किए ने से कहलक
12
जे ई गप अहाँ हमरासँ ने कहितौं
जे फूसि-फटक हमरासँ ने करितौं
मोनमे रखबाक हमरा जे रहितै
तँ कोनो आन बहन्ना नै बना सकितौं
ई ठोढ़क फुफरी चानिपर पसेना
घाम चुबैत सुगन्धि पाबि सुरकितौं
आरि-धूर बाटे चली आ जा कऽ पहुँची
बीच सड़क ठाढ़ छै रोकि ने सकलौं
जे फूसि-फटक हमरासँ ने करितौं
मोनमे रखबाक हमरा जे रहितै
तँ कोनो आन बहन्ना नै बना सकितौं
ई ठोढ़क फुफरी चानिपर पसेना
घाम चुबैत सुगन्धि पाबि सुरकितौं
आरि-धूर बाटे चली आ जा कऽ पहुँची
बीच सड़क ठाढ़ छै रोकि ने सकलौं
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