गजल - 10
खेती अगता आइ बुझलियै
करमक झटहा आइ बुझलियै
असगर जिनगी मगन रही धरि
लोकक खगता आइ बुझलियै
अनकर तीमन नीक लगै छल
बारिक पटुआ आइ बुझलियै
बापक टाका खूब उरेलहुँ
अप्पन बटुआ आइ बुझलियै
शहरी जिनगी मिट्ठ लगै छल
गामक कुटिया आइ बुझलियै
सभ पाँतिमे मात्राक्रम –2222 21 122
© राम कुमार मिश्र
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