ग़ज़ल
कहू कोना ? जे, आम आदमी बनि कय की - की भोगलौं हम
खून - खुनामह भेल करेजा, कोना - कोना क ? जोगलौं हम
बड़ उल्लास भेल बचपन में, हम बड़ सुन्दर, काबिल छी,
गौरव छल जे - बाबू - बौआ बनि, कोरा में झुललौं हम
भेलौं किशोर, मोंन बड़ हुलसल, मुट्ठी में संसार छलय,
धरती सँ आकाश लोक धरि, लहरेलौं और बुललौं हम
जखन वयस्क भेलौं और आयल कंधा पर दुनिया के भार,
यौवन के गौरव में डूबल, अपन शक्ति के खोजलौं हम
देश - समाजक और कुटुम्बक, अनुभव के कड़वाहट में,
बेर - बेर बनि कय अभिमन्यु , चक्र - व्यूह में फँसलौं हम
जाहि घडी तक आन लोक सब दुश्मन छल, मदमस्त छलौं,
बज्र माथ पर बजरल लेकिन, ओकरो सहि कय बचलौं हम
अपन खून सँ चोट जे लागल, सब बुद्धि - बल बिसरायल,
सुनल बात छल एक बेर के, लाख बेर पर मरलौं हम
जीवन सच में बड़ भारी छल, आदर्शक पथ और कठिन,
राम - नाम अवलंब रहल त, कुहरि -कुहरि क कटलौं हम
रचनाकार - अभय दीपराज
बाह दीपराज जी आब मैथिली गज़ल के दिन सुधरि जेतै| आरो आशा अछि हमरा सभ के
जवाब देंहटाएंझमका देलियै दीपराज जी।
जवाब देंहटाएंषी युत प्रशांत मिश्रा जी और गजेन्द्र ठाकुर जी, नमस्कार | अहाँ सब हमर रचना के पढ़लौं और हमारा प्रोत्साहित कयलौं | एहि लेल हम कृतज्ञ छी | - अभय दीपराज
जवाब देंहटाएं