अंतहीन अंत ऐ सोचनीक होइए
भासो नै बनैए नै चित्र पूर होइए
ऐ रंग आ तरंगक नै भेटैए बाट
सोचैत भँसियाइत मगज फटैए
नै बाजैए बाट जे छोड़ि चललौं कतऽ
आँखि बाजैए बिनु बजने बुझबैए
आदति जे लागल वेदना सहबाक
गेंठ बनैए से सोहनगर लगैए
ई गुमकी बढ़ल खत्म हएत की
खरचण्डाली प्रेम पिसीमाल भेलैए
भाव आ मात्रा दूनू बैसल |
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